Wednesday, September 10, 2025
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विरासतनामा: जलमग्न धरोहर: मनुष्य और पानी के द्वंद्व का सबूत

मनुष्य को लगता है कि वह और उसकी बनाई कृतियां अजर हैं लेकिन पानी अपने शिथिल स्वभाव के बावजूद इतना शक्तिशाली होता है कि पथरीली शिलाओं पर भी निशान छोड़ जाता है। अपने रौद्र रूप में मानवनिर्मित धरोहरों को भी अपने वेग में बहाकर ले जाता है।

इस मॉनसून में बारिश ने कुछ ऐसे विकराल रूप लिया कि बड़े बड़े मेट्रो शहर पानी में डूब गए; कई पहाड़ी गांव मलवे में धंस गए और नदियों ने कई पुलों, सड़कों और खेत खलिहानों को लील लिया। पानी का यह प्रचण्ड रूप देखकर हर कोई सकते में है। हमारे सामने जलमग्न होते गांव कस्बे शहर हमें याद दिला रहे हैं इतिहास में मौजूद रही उन सभ्यताओं और शहरों की, जो जलसमाधि ले गए थे और दोबारा खोजे गए, यह बताने के लिए कि जब पानी अपनी निशानदेही करने निकलता है तो कागज़ी रिकॉर्ड या मानवीय वास्तुकला की भव्यता देखकर अपना रास्ता नहीं बदलता।

भारत, संस्कृति और इतिहास की भूमि है। यहाँ सिर्फ़ सभ्यताओं के अवशेष नहीं बल्कि उन सभ्यताओं की डूबी हुई विरासत भी मौजूद है, जो समय के साथ या प्राकृतिक कारणों से पानी में समा गई। यह जलमग्न विरासत हमें हमारे अतीत की गहराईयों तक पहुँचाती है।

भारत में कई ऐसी जगहें हैं जो कभी जीवंत शहर या नगर हुआ करती थीं, लेकिन अब पानी में डूब गई हैं। ये जगहें सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि हमारे संस्कृति और सभ्यता की पहचान भी रही हैं।

द्वारका: मिथकीय और पुरातात्त्विक निशानी

द्वारका, गुजरात के समुद्र तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह नगर हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। पुराणों और महाभारत के अनुसार, द्वारका में भगवान कृष्ण का शासन हुआ करता था। वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों के अनुसार, द्वारका लगभग 5000 साल पहले अरब सागर में समा गया था। समुद्र के भीतर अवशेषों की खोज से पता चला कि यहाँ पत्थर और ईंटों से बनी संरचनाएँ मौजूद थीं। 1983 में समुद्र के नीचे खोज की गई पुरानी इमारतों और बंदरगाह के अवशेषों ने यह सिद्ध कर दिया कि यह नगर कभी जीवंत और समृद्ध था। द्वारका का इतिहास न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पुरातात्विक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें बताता है कि प्राचीन भारत में भी तटीय नगरों में उन्नत निर्माण कला और समुद्री व्यापार हुआ करता था।

टिहरी बांध और उसके पानी में डूबे शहर

टिहरी डैम उत्तराखंड में भगीरथी नदी पर बनाया गया है। यह डैम भारत का सबसे बड़ा जलाशय बनाता है। डैम बनने से पहले यहाँ कई छोटे शहर, गाँव और मंदिर मौजूद थे, जो अब पानी में डूब गए। यहां टिहरी डैम बनने से पहले पुरातन मंदिर और प्राकृतिक स्थल मौजूद थे। यहां के बाशिंदों और ऐतिहासिक स्थलों को विस्थापित तक करना पड़ा था। पुराने गाँवों और शहरों के अवशेष अभी भी डैम के पानी में मौजूद हैं। यह उदाहरण बताता है कि आधुनिक विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना कितना कठिन है। टिहरी की कहानी हमें यह सिखाती है कि भारत में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और ऐतिहासिक विरासत का संरक्षण हमेशा एक चुनौती रही है।

बाथु की लड़ी : दर्शनार्थियों से लुकाछिपी

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बाथु की लड़ी एक अनोखी जगह है। यह झील के पानी में डूबे मंदिरों का समूह है। यह महाराणा प्रताप सागर जलाशय में स्थित है, जो पौंग बांध के निर्माण से बना था। मानसून और सर्दियों में यह पूरा क्षेत्र पानी में डूब जाता है, लेकिन गर्मियों में इसे देखा जा सकता है यानी कि इस मंदिर के दर्शन सिर्फ 4 महीने ही किए जा सकते हैं। यह जगह प्राचीन मंदिरों और स्थानीय स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। यहाँ की मूर्तियाँ, स्तंभ और पत्थरों पर खुदी हुई कलाकृतियाँ हिमाचल की प्राचीन संस्कृति को दर्शाती हैं। बाथु की लड़ी यह साबित करती है कि प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण कई ऐतिहासिक स्थल समय के साथ जलसमाधि ले गए लेकिन पानी के बीच होते हुए भी दर्शनार्थियों के साथ लुकाछिपी करते हैं।

रामसेतु, रामेश्वरम : मिथक और प्रकृति को जोड़ता सेतु

रामसेतु या एडम्स ब्रिज, तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच हिंद महासागर में फैला एक प्राकृतिक पुल है। इसे हिंदू धार्मिक मान्यताओं में भगवान राम के समय का बनाया गया पुल माना जाता है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि यह एक प्राकृतिक चूना पत्थर का पुल है, लेकिन पुराणों के अनुसार इसे वानर सेना ने बनाया था। समुद्र के जल में डूबे हुए पत्थरों और संरचनाओं ने इसे एक ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल बना दिया है। रामसेतु धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यह प्राकृतिक भूगोल और मानव इतिहास के बीच संबंध को भी दर्शाता है।

महाबलीपुरम : समुद्र के बढ़ते कदम

7वीं शताब्दी की पल्लव शैली की मूर्तियों और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध महाबलीपुरम, तमिलनाडु में स्थित है। समुद्र के किनारे स्थित होने के कारण यहां के कुछ मंदिर और शिलाएं अब पानी में डूब गए हैं। महाबलीपुरम के प्राचीन बंदरगाह और रॉक कट मंदिर समुद्र के बढ़ते जल स्तर से प्रभावित हुए हैं। समुद्र के पानी में डूबे स्तंभ और मूर्तियाँ यह दिखाते हैं कि कैसे समुद्र तट के समीप बसे नगर समय के साथ पानी में समा गए। महाबलीपुरम के उदाहरण से हमें यह समझ आता है कि समुद्री स्तर में बदलाव और प्राकृतिक घटनाएँ हमारी सांस्कृतिक विरासत को प्रभावित कर सकती हैं। यह स्थल न केवल पर्यटन के लिए बल्कि अध्ययन और संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है।

जल लीन विरासत

भारत में केवल ये ही नहीं, बल्कि कई अन्य स्थान भी हैं जो पानी में डूब गए या डूबते जा रहे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के शहर लोथल और धौलावीरा में कुछ हिस्से जलस्तर में बढ़ोतरी आने से प्रभावित हुए। अमरीका की साल्ट लेक सिटी भी 1983 की बाढ़ में जलमग्न होते होते रह गई थी। गुजरात के प्राचीन शहर लखपत का संबंध भी एक विनाशकारी भूकंप से है जिसने 1819 में इस व्यापारिक शहर को तबाह कर दिया था, जिसके कारण यह एक सुनसान भूतिया शहर बन गया था। यह शहर, जो सिंधु नदी पर एक प्रमुख बंदरगाह था, इस भूकंप और नदी के मार्ग में हुए बदलाव के कारण वीरान हो गया।

मनुष्य को लगता है कि वह और उसकी बनाई कृतियां अजर हैं लेकिन पानी अपने शिथिल स्वभाव के बावजूद इतना शक्तिशाली होता है कि पथरीली शिलाओं पर भी निशान छोड़ जाता है और अपने रौद्र रूप में मानवनिर्मित धरोहरों को भी अपने वेग में बहाकर ले जाता है। बाद में मनुष्य पानियों में झांक झाँककर अपने अहम के अवशेष तलाशते हैं और जान पाते हैं कि उनकी बनाई भव्य धरोहरों से भी विशालकाय है प्रकृति की शक्ति।

ऐश्वर्या ठाकुर
ऐश्वर्या ठाकुर
आर्किटेक्ट और लेखक; वास्तुकला, धरोहर और संस्कृति के विषय पर लिखना-बोलना।
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