Friday, October 10, 2025
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बोलते बंगले: इंडिया गेट से कनॉट प्लेस तक…नई दिल्ली को बनाने वाले सोभा सिंह के आशियाने की कहानी

आप जब राजधानी में जनपथ की तरफ बढ़ते हैं, तो आप दस में से नौ बार तीस जनवरी रोड जाने के लिए तीस जनवरी लेन का रास्ता नहीं लेते। वजह यह है कि यहां पर सारे रास्ते साफ-सुथरे हैं। जाम का कोई पंगा नहीं है। इसलिए आप दाएं-बाएं नहीं घूमते। वैसे, अगर आप तीस जनवरी लेन के रास्ते को लेंगे तो आपका इतिहास से साक्षात्कार होगा। यह हमारा आपसे वादा है। आप जैसे ही इधर पहुंचेंगे आपको एक बड़े से बंगले के पिछली तरफ के गेट के बाहर लगी नेम प्लेट आपका ध्यान अपनी तरफ खींचेगी। लकड़ी के गेट पर एक नेम प्लेट पर साफ शब्दों में लिखा है- सर सोभा सिंह। आप इस नेम प्लेट को देखकर ठहरते हैं, ठिठकते हैं। इसका एड्रेस है 1 जनपथ।

सोभा सिंह एंड संस- दिल्ली-लाहौर

क्या कुछ बताने की जरूरत है कि सर सोभा सिंह कौन थे? नई दिल्ली को खड़े करने वालों में उनका नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। आप बंगले के अंदर जाते हुए एक कमरे तक पहुंच जाते हैं। अभी तक आपको कोई नहीं मिलता। कमरे में बल्ब की रोशनी पर्याप्त है। आप कमरे में नजर डालते हैं, तब आप एक गुजरे दौर में पहुंचते हैं।

जरा उस दौर की बानगी देखिए। एक बड़ी सी तस्वीर है राजधानी के मॉडर्न स्कूल की। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर आए हैं। वहां पर बच्चे उनके चरण स्पर्श कर रहे हैं। सोभा सिंह भी वहीं खड़े हैं। भव्य व्यक्तित्व है। यह फोटो 1936 की है।

रवींद्रनाथ टैगोर और सोभा सिंह रवींद्रनाथ टैगोर और सोभा सिंह

यही चित्र आपको स्कूल के मॉडर्न स्कूल की प्रिंसिपल के रूम में भी मिलता है। इसी कमरे में एक बड़ा सा बोर्ड भी दीवार पर टंगा है। उस पर लिखा- ‘सोभा सिंह एंड संस- दिल्ली-लाहौर है।’ हम सारे मंजर को देख रहे हैं। तब ही एक करीब 75-80 साल के सज्जन अंदर आते हैं। हम उन्हें अपना परिचय देते हैं। वे हमें वहां पर रखे सोफे पर बिठाते हैं। उनका नाम भोपाल सिंह है। 1955 में मध्य प्रदेश से आए थे सोभा सिंह के पास काम करने के लिए। तब से फिर कहीं गए ही नहीं।

भोपाल जी बताने लगे कि सोभा सिंह और उनका परिवार 1970 के दशक के अंत तक यहां से सुजान सिंह पार्क चला गया था। उसके बाद इस बंगले का एक बड़ा हिस्सा हंगरी कल्चरल सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। कुछ भाग को सोभा सिंह ट्रस्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

इंडिया गेट से कनॉट प्लेस

सोभा सिंह ने एक अनुमान के मुताबिक राजधानी की दो दर्जन से अधिक इमारतों का निर्माण किया। इनमें साउथ ब्लॉक, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन के बाहर जयपुर स्तंभ, विजय चौक, कनॉट प्लेस, राष्ट्रीय संग्रहालय, राजा बाजार में यूनियन एकेडमी स्कूल और बारखंबा रोड पर स्थित मॉडर्न स्कूल शामिल हैं।

नामवर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर की योजनाओं को साकार करने में सर सोभा सिंह का अहम रोल था। उन्हें “आधी नई दिल्ली दा मालिक” के रूप में जाना जाता था। जानने वाले जानते हैं कि सोभा सिंह के बंगले मे एक दौर में डीसीएम समूह के संस्थापक लाला श्रीराम, उनके पुत्र लाला भरत राम, लाला चरत राम जैसी हस्तियां नियमित रूप से पहुंचती थीं।

सोभा सिंह के बंगले में जिन्ना

सोभा सिंह के इसी बंगले में खुशवंत सिंह की अक्टूबर, 1939 में शादी भी हुई थी। उसमें मोहम्मद अली जिन्ना ने भी शिरकत की थी। जिन्ना का बंगला 10 एपीजे कलाम रोड (पहले 10 औरंगजेब रोड) सोभा सिंह के बंगले के ठीक सामने था। जिन्ना का बंगला अब भी वहीं आबाद है। कहते हैं कि खुशवंत सिंह की शादी में खूब लजीज डिशेज और महंगी शराब परोसी गई थी। खुशवंत सिंह सरदार सोभा सिंह के पुत्र थे।

मोहम्मद अली जिन्ना और शोभा सिंह मोहम्मद अली जिन्ना और सोभा सिंह

मशहूर स्वाधीनता सेनानी अरुणा आसफ अली ने इस नाचीज लेखक को 1988 में बताया था कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे इसी घर में खुशवंत सिंह से एक रात बिताने का आग्रह करने पहुंची थीं। पुलिस उनके पीछे पड़ी हुई थी। खुशवंत सिंह ने उनके आग्रह को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि यह संभव नहीं है क्योंकि यह उनके पिता का घर है।

अब किस हाल में बंगला?

सरदार सोभा सिंह का बंगला ठीक हालत में है। मालूम नहीं कि इधर आने वालों को इस बंगले का इतिहास मालूम है या नहीं। सोभा सिंह के बंगले मे करीब दस कमरे हैं। करीब दो एकड़ में फैले इस बंगले में सुंदर सा बगीचा भी है, जहां पर तमाम फूल लगे हैं। दिल्ली की कड़ाके की सर्दी में बंगले के आगे बगीचे में बैठकर धूप सेकने का अपना ही मजा है।

मशहूर लेखक खुशवंत सिंह अपने पिता के बंगले का जिक्र आने पर बहुत भावुक हो जाते थे। वे कहते थे कि इस बंगले में उन्होंने खूब मजा किया। सारा परिवाऱ एक छत के नीचे रहता था। बंगले में हमेशा ठहाके लगा करते थे। बहरहाल अब तो उस दौर की यादें ही शेष रह गई हैं।

कनॉट प्लेस में सोभा सिंह

कनॉट प्लेस का रीगल ब्लॉक का ‘दि शॉप’। ये शो-रूम अपने आप में इसलिए खास है क्योंकि इसे कनॉट प्लेस के प्रमुख ठेकेदार सरदार सोभा सिंह के पौत्र परमिंदर सिंह चलाते हैं। उन्हें सब पम्मी भी कहते है। दि शॉप को कनॉट प्लेस का पहला बुटिक भी माना जाता है। यह सोभा सिंह के जीवनकाल में चालू हो गया था।

क्या आप बता सकते हैं कि सरदार सोभा सिंह का कौन सा सिनेमा हाउस था कनॉट प्लेस में? अगर आपको उसका नाम नहीं पता तो बता दें कि उन्हीं का था रिवोली। उन्होंने रिवोली को 1940 से 1951 तक चलाया। उसके बाद उसे दे दिया ओडियन चलाने वाले साहनी परिवार को। इधर शुरूआती दौर में श्रेष्ठ इंग्लिश मूवीज प्रदर्शित होती थीं।

डायल एम फार मर्डर (1954), एल्फ्रेड हिचकॉक की 1960 में साइको, स्टोरी आफ वूमन जैसी बड़ी फिल्में लगीं और खूब पसंद की गईं। राजेश खन्ना-शर्मिला टेगौर की मशहूर फिल्म अराधना भी यहां लगी और खूब बड़ी हिट साबित हुई। अराधना की सफलता के बाद रिवोली का चरित्र बदल गया। यहां पर हिन्दी फिल्में लगने लगीं। उसके बाद जूली (1975) में लगी और कामयाबियों की नई इबारत लिखती रही।

सोभा सिंह- रीगल बिल्डिंग और वाल्टर जॉर्ज

देखिए एक बात को समझा जाए कि सारा का सारा रीगल ब्लॉक कनॉट प्लेस क्षेत्र में होते हुए भी उससे अलग है। इस पर सरदार सोभा सिंह का स्वामित्व था। उन्होंने इसे अपने प्रिय डिजाइनर वाल्टर स्काइयज जॉर्ज से डिजाइन करवाया था। वे गुणी और प्रयोगधर्मी आर्किटेक्ट थे। उन्होंने ही मिरांडा हाउस, सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सबसे पुराने छात्रावास ग्वायर हॉल, सुजान सिंह पार्क को भी डिजाइन किया था। वे नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट एडविन लुटियन की टीम में थे।

sujan singh park सुजान सिंह पार्क

इन सभी के डिजाइन में आपको बहुत कुछ समान मिलेगा। उदाहरण के रूप में वे ईंटों पर सीमेंट का लेप करवाने से बचे। वाल्टर जॉर्ज ने रीगल (1932) ग्वायर हॉल (1937), फिर सेंट स्टीफंस कॉलेज (1941 में), सुजान सिंह पार्क (1945) और अंत में मिरांडा हाउस बनवाने में अहम भूमिका निभाई। ये सभी इमारतें अपने समय से आगे की इमारतें हैं।

जंतर- मंतर में भी सोभा सिंह

जंतर- मंतर का जिक्र आते ही जेहन में दो छवियां उभरती हैं। पहली, जंतर–मंतर पर धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों की। दूसरी, उस जंतर मंतर नाम की खगोलीय वेधशाला की जिसका निर्माण महाराजा जयसिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। जंतर- मंतर का परिचय लेकिन इतना भर नहीं है। इस छोटी सी सड़क के आमने-सामने भव्य और विशाल बंगले बनवाए थे उन मुख्य रूप से पांच ठेकेदारों ने जो नई दिल्ली की अहम इमारतों के निर्माण के लिए पिछली सदी के आरंभ में राजधानी में आए थे।

उनमें सोभा सिंह, धरम सिंह सेठी, बैसाखा सिंह, नारायण सिंह भी थे। धरम सिंह ने अपने लिए जिस घर को बनवाया था वह आगे चलकर कांग्रेस का मुख्यालय बना। हालांकि वहां से भी कांग्रेस का मुख्यालय 1970 के दशक में अकबर रोड पर चला गया था। धर्म सिंह को ठेका मिला था कि वे राष्ट्रपति भवन, साउथ और नॉर्थ ब्लॉक के लिए राजस्थान के धौलपुर तथा यूपी के आगरा से पत्थरों की नियमित सप्लाई रखें। सोभा सिंह ने धर्म सिंह के साथ वाले प्लाट पर अपना बंगला बनवाया था। वह बाद में केरल हाउस बन गया। हालांकि वे इधर कभी रहे नहीं।

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