मथुराः उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानसून सत्र के तीसरे दिन 13 अगस्त को श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट विधेयक 2025 पेश और पास हुआ। इस विधेयक में बेहतर सुविधाओं, सुव्यवस्थित भीड़ प्रबंधन और अधिक वित्तीय पारदर्शिता का वादा किया गया है। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि सदियों पुराने रीति-रिवाज को बरकरार रखा जाए। विधेयक में मंदिर में आने वाली भारी भीड़ के प्रबंधन के लिए बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है।
क्या है श्री बांके बिहारी ट्रस्ट विधेयक?
इस विधेयक का उद्देश्य मंदिर की संपत्ति, वित्त, भीड़ प्रबंधन और सुविधाओं पर पूर्ण प्रशासनिक अधिकार के साथ एक वैधानिक ट्रस्ट की स्थापना करना है। इसके साथ ही मंदिर की सदियों पुरानी परंपराओं का संरक्षण भी लेना है। दिलचस्प बात यह है कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसी साल मई में जारी किए गए अध्यादेश पर रोक लगाने के बावजूद पेश किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य मंदिर को एक नवगठित ट्रस्ट के अंतर्गत लाना था।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अगस्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज अशोक कुमार की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय समिति का गठन किया था। यह समिति इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा अध्यादेश की वैधता पर निर्णय लेने तक काम करेगी। इस दौरान समिति मंदिर के दैनिक कार्यों की देखरेख करेगी।
सरकार को क्यों लाना पड़ा यह विधेयक?
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विधेयक को पेश करना का उद्देश्य अगस्त 2022 में हुई भगदड़ को बताया गया है। इस दौरान दो भक्तों की मौत हो गई थी जबकि सात अन्य घायल हो गए थे। यह मंदिर लगभग 870 वर्ग मीटर में फैला है। इसमें 365 वर्ग मीटर ही दर्शन प्रांगण के रूप में कार्य करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए संकरा रास्ता है जिससे यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को भीड़ का सामना करना पड़ता है। त्योहारों के दिनों में यहां और भी भारी भीड़ होती है।
सरकार का कहना है कि भगदड़ को देखते हुए इसके प्रबंधन में कुशलता लाने हेतु कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा। सरकार का कहना है कि इसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर बनाया जाएगा जिससे यहां आने वाले यात्रियों को परेशानी न हो।
कानूनी विवाद में घिरा कॉरिडोर
दरअसल, सरकार ने मंदिर के आसपास की पांच एकड़ जमीन अधिग्रहित करने का प्रस्ताव रखा गया था। मंदिर के गोस्वामियों ने इसका विरोध किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कॉरिडोर को बनाने के लिए मंदिर के धन के उपयोग पर रोक लगा दी थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था। इसके बाद राज्य की तरफ से ट्रस्ट बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया गया।
गोस्वामी परिवार ने इस बीच सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले के आदेश में मंदिर के धन का इस्तेमाल करने वाले भाग को हटा लिया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि उसने पुरोहित समुदाय की बात न सुनकर बड़ी गलती की थी। अगस्त की शुरुआत में इस पर रोक लगा दी गई थी।
मंदिर की चल-अचल संपत्ति पर ट्रस्ट का अधिकार
इस विधेयक में श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट विधेयक का प्रस्ताव है जो मंदिर की सभी प्रकार की चल, अचल, संपत्तियों, मूर्तियों, आभूषण, जेवरात और अन्य चीजों का संरक्षण करेगा। ट्रस्ट के पास दर्शन का समय निर्धारित करने, पुजारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति करने, वेतन का निर्धारण करने, श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अभिलेखों के माध्यम से पारदर्शिता बनाए रखने का अधिकार भी प्रदान करता है। इसके साथ ही ट्रस्ट को राज्य की स्वीकृति के बगैर 20 लाख रुपये की चल-अचल संपत्ति अर्जित करने का अधिकार भी देता है।
विधेयक के मुताबिक, ट्रस्ट में 18 सदस्य होंगे जिनमें 11 नामित होंगे और सात पदेन सदस्य होंगे। सभी नामित सदस्यों का सनातनी हिंदू होना अनिवार्य है। इसमें वैष्णव समुदाय के तीन प्रतिष्ठित प्रतिनिधि, सनातन धर्म परंपराओं से तीन और गोस्वामी परंपरा के दो सदस्य शामिल होंगे। इसके अलावा राज भोग और शयन भोग सेवायतों में से एक-एक सदस्य जो कि 16वीं शताब्दी में स्थापित इस मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास जी के वंशज हैं।
वहीं, पदेन सदस्यों में जिला मजिस्ट्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त, ब्रज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद और ट्रस्ट के सीईओ और राज्य सरकार का एक नामित व्यक्ति शामिल होगा।