कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य और सांसद शशि थरूर संसद के शीतकालीन सत्र से पहले सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस रणनीतिक समूह की बैठक में शामिल नहीं हुए। इस बैठक में कांग्रेस ने संकेत दिया कि वह संसद के शीतकालीन सत्र में एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाएगी। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाक संबंधों में मध्यस्थता के दावों और दिल्ली में हालिया कार ब्लास्ट पर भी चर्चा की तैयारी है।
कांग्रेस पार्टी दूसरी अहम बैठक से उनकी गैरहाजिरी ने राजनीतिक हलकों में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी के भीतर उनके रुख को लेकर अटकलें तेज हैं, खासकर तब जब हाल के दिनों में उनके बयानों ने कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद की चर्चा को हवा दी है।
हालांकि थरूर के कार्यालय की ओर से बताया गया कि वे केरल में थे और अपनी 90 वर्षीय मां के साथ देर वाली फ्लाइट से लौट रहे थे, जिसकी वजह से वे मीटिंग में नहीं पहुंच सके। थरूर ने भी सोमवार को यही बात दोहराई और कहा कि उन्होंने बैठक स्किप नहीं किया, वे प्लेन में थे और केरल से आ रहे थे।
गौरतलब है कि पार्टी की यह दूसरी ऐसी बैठक थी जिसमें थरूर ने हिस्सा नहीं लिया। इससे पहले भी वे एसआईआर मुद्दे पर हुई कांग्रेस की बैठक से नदारद रहे थे। हालाँकि, इससे ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति ने पार्टी के भीतर कई सवाल खड़े कर दिए थे।
थरूर के हालिया बयानों ने कांग्रेस के अंदर असहजता बढ़ाई है। पिछले महीने, उन्होंने प्रधानमंत्री के रामनाथ गोयनका व्याख्यान की सराहना करते हुए इसे आर्थिक दृष्टिकोण और संस्कृति के लिए एक आह्वान बताया था। एक लंबी सोशल मीडिया पोस्ट में थरूर ने कहा था कि खराब सर्दी और खांसी से जूझने के बावजूद वह दर्शकों में शामिल होकर खुश थे।
यह टिप्पणी तब आई जब कांग्रेस नेता ने कुछ दिन पहले ही यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि वयोवृद्ध भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की वर्षों की सेवा को किसी एक घटना तक सीमित करना अनुचित है। यह टिप्पणी आडवाणी के जन्मदिन पर उनकी बधाई पर हुई आलोचना के जवाब में आई थी।
थरूर ने इससे पहले भी कांग्रेस पार्टी के भीतर तब खलबली मचा दी थी, जब उन्होंने कहा था कि पूरे राजनीतिक स्पेक्ट्रम में वंशवाद की राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है, और भारत के लिए “वंशवाद की जगह योग्यता” अपनाने का समय आ गया है। भाजपा ने थरूर की इन टिप्पणियों का लाभ उठाते हुए गांधी परिवार को निशाना बनाया था और अपने पुराने आरोप को दोहराते हुए कहा था कि भारतीय राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय बन गई है।
थरूर के पीएम मोदी और भाजपा के प्रति झुकाव ने कई कांग्रेस नेताओं की तीखी आलोचना को आमंत्रित किया। पार्टी नेताओं ने इन बयानों को कांग्रेस की विचारधारा से उलट बताया। पार्टी नेता संदीप दीक्षित ने सवाल किया कि यदि थरूर को भाजपा या प्रधानमंत्री की रणनीति बेहतर लगती है तो वह कांग्रेस में क्यों बने हुए हैं, उन्होंने थरूर से स्पष्टीकरण देने या “पाखंडी” कहलाने के लिए तैयार रहने को कहा।
दीक्षित ने कहा, “शशि थरूर की समस्या यह है कि मुझे नहीं लगता कि वह देश के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। यदि आप सच में महसूस करते हैं कि भाजपा या पीएम मोदी की रणनीतियाँ उस पार्टी से बेहतर काम कर रही हैं जिसमें आप हैं, तो आपको स्पष्टीकरण देना चाहिए।”
कांग्रेस नेता उदित राज ने थरूर की गैरमौजूदगी को मीडिया और भाजपा द्वारा अनावश्यक रूप से उठाए जाने का आरोप लगाया है। उदित राज ने कहा कि शशि थरूर के प्रमुख कांग्रेस बैठकों में शामिल न होने को लेकर मीडिया और भाजपा को सबसे बड़ी समस्या होती है। कांग्रेस के पास 100 सांसद हैं, अगर उनमें से एक भी बैठक में शामिल नहीं होता है, तो यह चर्चा का विषय बन जाता है।”
थरूर और कांग्रेस के बीच मतभेद अचानक नहीं उभरे, इसकी पृष्ठभूमि पिछले कुछ वर्षों में तैयार हुई। साल 2020 में वे उस जी-23 समूह का हिस्सा थे, जिसने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी संगठन में बड़े बदलावों की मांग की थी। इसके बाद 2022 में उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इसी साल ‘पहलगाम आतंकी हमले’ और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सरकार के पक्ष में दिए गए उनके बयान भी कई कांग्रेस नेताओं को असहज कर गए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार ने थरूर को एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल का सदस्य भी बनाया, जबकि कांग्रेस ने उनका नाम प्रस्तावित नहीं किया था। यह कदम पार्टी के भीतर नया विवाद खड़ा करने वाला साबित हुआ।
स्थितियां अब उस मोड़ पर पहुंच चुकी हैं जहां सवाल उठ रहा है- क्या शशि थरूर कांग्रेस में रहकर अलग लाइन पर चल सकते हैं, या अगला कदम बड़ा होगा? अटकलों के बीच थरूर ने साफ किया कि वह कांग्रेस छोड़ने का कोई इरादा नहीं रखते। उन्होंने कहा, “सीधे कह रहा हूं- मैंने पार्टी छोड़ने के लिए उंगली तक नहीं उठाई। किसी ने मुझसे ऐसा कहने की भी हिम्मत नहीं की।” हालांकि लगातार दो बैठकों से उनकी गैरहाजिरी और मोदी को लेकर सकारात्मक टिप्पणियों ने पार्टी के भीतर अविश्वास की स्थिति जरूर पैदा कर दी है।

