Saturday, October 11, 2025
Homeकला-संस्कृतिबोलते बंगलेः सतीश गुजराल के लाजपत नगर के उस घर की कहानी,...

बोलते बंगलेः सतीश गुजराल के लाजपत नगर के उस घर की कहानी, जहां बनीं कालजयी कृतियां

हालांकि सतीश गुजराल को दिवंगत हुए चार साल से ज्यादा हो रहे हैं, पर उनके लाजपत नगर के 16 फिरोज़शाह रोड पर स्थित घर के बाहर से गुजरते हुए उनकी याद आना लाजमी है। सतीश गुजराल ने यहां रहते हुए बेल्जियम एंबेसी को डिजाइन किया और सैकड़ों कालजयी पेंटिंग्स भी बनाईं। आप जानते हैं कि वे सिद्ध मूर्तिकार भी थे। उनके घर के विशाल ड्राइंग रूम की दीवारें सुंदर पेंटिग्स से सजी हुईं थीं। वे मिलने वालों से अपने घर के बगीचे में बैठकर गप-शप करते थे। उनके साथ हमेशा किसी छाया की तरह उनकी पत्नी किरण जी भी हुआ करती थीं। किरण जी अपने पति को सहयोग करती थीं ताकि वे अपनी बात समझा सकें। सतीश गुजराल बहुत छोटी उम्र में तेज बुखार के कारण बोलने और सुनने की क्षमता खो बैठे थे और काफी समय तक बिस्तर पर पड़े रहे। उन्होंने अंततः इलाज के बाद अपनी वाणी वापस पा ली थी, लेकिन सुनने की क्षमता नहीं।

जिक्र बेल्जियम एंबेसी का

सतीश गुजराल को चित्रकार के रूप में भरपूर मकबूलियत मिली पर वे बातचीत के दौरान बेल्जियम एंबेसी का जिक्र छेड़ दिया करते थे। बेल्जियम एंबेसी के डिजाइन का अध्ययन आर्किटेक्चर के स्डुडेंट्स अनिवार्य रूप से करते हैं। बेल्जियम एंबेसी के डिडाइन को इंटरनेशनल फोरम आफ आर्किटेक्चर ने 20वीं सदी की एक हजार श्रेष्ठतम इमारतों में से एक माना है। ये इमारत भारतीय वास्तुकला का शिखर है। राजधानी के शांतिपथ में 1980 में बनकर तैयार हुई बेल्जिम एंबेसी में कई गुंबद हैं। बेल्जियम एंबेसी के प्लाट को अर्ध त्रिकोणीय कह सकते हैं। सतीश गुजराल ने इसके कोनों में एंबेसी की मुख्य इमारत का डिजाइन बनाया। इसमें ईटों के ऊपर सीमेंट का लेप नहीं है। ये शायद दिल्ली की महत्वपूर्ण या कहें कि किसी दफ्तर की पहली इमारत थी, जिसमें ईंटों को ढ़का नहीं गया था। उन्होंने इधर की लैड स्केपिंग करते हुए कई जगह पर छोटे-छोटे टीले बनाए। कहते हैं कि बेल्जियम और स्वीडन दूतावास साथ-साथ बन रहे थे। तब स्वीडन एंबेसी के प्लाट में खुदाई के दौरान बहुत सी मिट्टी को बाहर फेंका जाने लगा। उसी मिट्टी से सतीश गुजराल ने टीले बनाए। चूंकि सतीश गुजराल चोटी के चित्रकार हैं, इसलिए उन्होंने इसे हटकर तो बनाया है। इसके भीतर वे बड़े गलियारे देते हैं। मेन बिल्डिंग में एक भव्य हॉल है। आप कह सकते हैं कि ये बिल्डिंग मूर्तिकला के अंदाज में बनी है।

 Satish Gujral-Designed Embassy Of Belgium
सतीश गुजराल द्वारा डिजाइन किया गया बेल्जियम दूतावास। Photograph: (इंस्टाग्राम/studio_magga)

 

सतीश गुजराल बताते थे कि वे करीब आधी सदी तक लाजपत में रहे। इसी घर में उनकी पत्नी के अलावा आर्किटेक्ट पुत्र मोहित गुजराल, उसका परिवार भी रहते थे। हालांकि मोहित गुजराल पिता के निधन से पहले ही लुटियंस दिल्ली में शिफ्ट हो गया था।

सतीश गुजराल कहते थे कि उनके डिजाइन में मीनमेख भी निकाला गया। कइयों ने कहा कि बेल्जियम एंबेसी में भारतीयता झलकती है। जबकि इसमें बेलिज्यम के जीवन और आर्किटेक्चर की भी खुशबू महसूस होनी चाहिए थी। वे फख्र के साथ बताते थे कि बेल्डिमय सरकार ने उनके काम को हमेशा पसंद किया। उसका तर्क था कि चूंकि ये इमारत भारत में स्थित है, इसलिए इसमें भारतीयता के दर्शन होना जरूरी है।

सतीश गुजराल मानते थे कि दरअसल कोई भी इमारत सिर्फ मिट्टी, गारे, ईंट सीमेंट वगैरह से नहीं बनती। वह आर्किटेक्ट की सारी पर्सनेल्टी की अभिव्यक्ति भी होती है। उन्होंने राजधानी में अमृताशेर गिल मार्ग पर उद्योगपति भूपेन्द्र कुमार मोदी के बंगले को भी डिजाइन किया था।

सतीश गुजराल ने एक बार कहा था- “मैं 1939 में पाकिस्तान के झेलम शहर से दिल्ली आया था और कुछ समय तक यहां रहा। मुझे याद है कि तिलक ब्रिज से दिल्ली गेट के बीच कुछ नहीं होता था। दिल्ली में तब लोग बैलगाड़ी में आते-जाते थे। हुमायूँ का मकबरा देखने के लिए [लोग हुमायूँ के मकबरे को देखने के लिए बैलगाड़ियों में यात्रा करते थे।”

सतीश गुजराल के पड़ोसी और रीयल एस्टेट कंसलटेंट अनिल माखीजानी बताते हैं कि उनके (सतीश गुजराल) के घर में उनके बड़े भाई और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल सपरिवार लगातार आते रहते थे। दोनों भाइयों में खूब प्यार था। सतीश गुजराल के घर में एक वर्कशॉप थी, जहां पर बैठकर वे दिन-रात काम करते थे।

indra kumar gujral, satish gujral,
पूर्व पीएम इंद्रकुमार गुजराल के साथ सतीश गुजराल। Photograph: (इंस्टाग्राम)

 

ओडियन और शास्त्री भवन में सतीश गुजराल

राजधानी में सेंट्रल विस्टा को नया रूप देने का काम रफ्तार से चल रहा है। अब कई इमारतें इतिहास के पन्नों तथा यादों में रह जाएंगी। उनमें शास्त्री भवन भी एक होगी। शास्त्री भवन जब बना तो  सतीश गुजराल ने यहां भित्ति चित्र (म्युरल) बनाए थे। यह 1968 क गुजराली बातें हैं। सतीश गुजराल के भित्ती चित्रों से शास्त्री भवन सुंदर और आकर्षक लगता है। इनमें रंगों का सामंजस्य अतुल्नीय है। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट (1976) के भी भित्तिचित्र बनाए थे। सतीश गुजराल के भित्ति चित्रों को देखने के लिए आप रूकते हैं। ये सब अदभुत हैं। अब सवाल यह है कि शास्त्री भवन के टूटन के क्रम में इन भित्ति चित्रों का क्या होगा? भित्ति चित्र का अर्थ है ऐसा चित्र जो दीवार पर बनाया गया हो। माना जाता है कि इनकी शुरुआत मानव के उन प्रयासों के साथ हुई जब उसने गुफ़ाओं की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से अपने जीवन से जुड़े चित्र बनाए। जैसे-जैसे मानव सुसंस्कृत हुआ, इस शैली में भी सुधार होता गया। भारत की अजंता गुफ़ाओं के भित्ति चित्र ईसा से सौ साल पहले के बताए जाते हैं।

पहला अहम काम कौन सा

कनॉट प्लेस के ओडियन पिक्चर हॉल को 1951 में देश के आज़ाद होने के बाद रावलपिंडी से दिल्ली आए ईशरदास साहनी ने लीज पर ले लिया। साहनी के रावलपिंडी और पेशावर में भी सिनेमा हॉल थे। उन्हें सिनेमा हॉल चलाने का अनुभव था। साहनी साहब ने ओडियन को लेने के कुछ सालों के बाद इसे नया लुक देने का फैसला किया। पर बात आई-गई हो गई। लेकिन, उन्होंने ओडियन को 1961 में रेनोवेशन के लिए कुछ महीने के लिए बंद रखा। नए ओडियन का श्रीगणेश हुआ तो राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्नन भी फिल्म देखने आए। वे फिल्म को देखने के बाद इसकी दिवारों पर बने म्युरल (भित्ति चित्रों) को देखते ही रह गए। कहते हैं कि उन्होंने साहनी साहब से पूछा कि ‘इन्हें किसने बनाया है?’ जवाब मिला, ‘सतीश गुजराल ने।’ तब तक सतीश गुजराल कला के संसार में बड़े स्तर पर स्थापित नहीं हुए थे। पर राष्ट्रपति जी ने सतीश गुजराल से मिलने की इच्छा जताई। सच में सतीश गुजराल के म्यूरल से ओडियन पहले से कहीं अधिक सुंदर और आकर्षक हो गया । सतीश गुजराल के काम ने ओडियन को अमूल्य बना दिया।  इतना वक्त गुजरने के बाद भी आप ओडियन में जाकर सतीश गुजराल के म्युरल को देखकर ठहर जाते हैं। कुछ पल तो अवश्य रूकते हैं। उनका राजधानी में यह संभवत: पहला महत्वपूर्ण काम था

सतीश गुजराल के घर में एक बड़ी सी लाइब्रेरी भी है। उसमें हजारों किताबें कला, संगीत, साहित्य वगैरह विषयों पर हैं। वे वक्त मिलने पर अपने मन की किताबें पढ़ना पसंद करते थे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री आई.के. गुजराल ने 2006 में मुझे अपने जनपथ स्थित बंगले में एक बातचीत के दौरान बताया था कि सतीश बचपन से ही बहुत तीक्ष्ण बुद्धि वाला बालक था। वह धुन का पक्का है। कई बार किसी प्रोजेक्ट पर लगातार 36-36 घंटे काम करता है।

सतीश गुजराल ने अपने लंबे कलात्मक जीवन में, समकालीन कला को नए आयाम प्रदान किए। उनके कार्यों में न केवल दृश्यों का सौंदर्य, बल्कि गहन भावनात्मकता, दार्शनिक विचार और आध्यात्मिकता का सम्मिश्रण मिलता है।

गुजराल के चित्रों में रंगों की जीवंतता और विविधता, उनकी कला को एक विशिष्ट पहचान देती है। वह अपने चित्रों में रंगों को प्रयोगात्मक तरीके से प्रयोग करते हैं, उन्हें आपस में मिलाते हैं, घोलते हैं और परतों में लगाते हैं।

आई.के. गुजराल कहते थे सतीश गुजराल अपने अमूर्त चित्रों में भी बहुत कुशल हैं। ये चित्र उनके मन की आंतरिक यात्रा और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें वह रंगों का खेल करके, आकृतियों का संगठन करके, और समानांतर रेखाओं का प्रयोग करके, एक सौंदर्य और भावनात्मक गहराई पैदा करते हैं।

सतीश गुजराल के करीबी कहते हैं कि उन्हें अपने लाजपत नगर वाले घर से बेइंतिहा प्यार था। इसकी वजह यह थी उन्हें इधर ही रहकर अपने सारे महत्वपूर्ण काम किए थे। 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा