Friday, October 10, 2025
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भारत में अब सैटेलाइट आधारित टोल सिस्टम! FASTag से कितना अलग होगा नया सिस्टम और कैसे काम करेगा?

दिल्ली: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार भारत में जल्द ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) की शुरुआत की जाएगी। इसके लिए भारत सरकार ने दुनियाभर के कंपनियों से EOIs (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) आमंत्रित किया है। सरकार के अनुसार बिना किसी बाधा के टोल टैक्स सुनिश्चित करने और इस पूरे सिस्टम के संचालन में सुधार के लिए ये नई पहल की जा रही है।

इसके जरिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) का लक्ष्य जीएनएसएस-आधारित ईटीसी प्रणाली (इलेक्ट्रोनिक टोल कलेक्शन) को मौजूदा फास्टैग ढांचे (FASTag) के तहत एकीकृत करना है। शुरुआत में एक तरह से ये हाइब्रिड मॉडल होगा जिसमें आरएफआईडी-आधारित और जीएनएसएस-आधारित टोल संग्रह सिस्टम काम करेंगे।

जीएनएसएस-आधारित टोल संग्रह करने का सिस्टम क्या है। ये कैसे काम करेगा और ये मौजूदा FASTag ढांचे से कैसे अलग होगा, आइए समझते हैं।

ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम vs FASTag

टोल कलेक्शन के लिए FASTag का ही ज्यादातर इस्तेमाल आज भारत में होता है। इससे पहले नकदी का इस्तेमाल होता था। डिजिटल दौर में अब FASTag प्रचलन में है। यह RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस) तकनीक का इस्तेमाल करता है। इसके लिए एक खास चिप वाला स्टिकर वाहन की विंडशील्ड पर लगाया जाता है। टोल बूथों पर स्कैनर होते हैं जो FASTag स्टिकर का स्कैन करते हैं और फिर खुद से टोल के पैसे काट लेते हैं।

FASTag तकनीक के तहत स्कैनिंग के लिए टोल बूथों पर गाड़ियों को रोकना पड़ता है। आपके FASTag अकाउंट में पैसे पहले से रहने हैं और ये इसी से कटते हैं। ऐसे में ये कैश के लेनदेन के झंझट की तुलना में तेज है। हालांकि, फिर भी कई बार गाड़ियों की लंबी-लंबी कतारें नजर आ जाती हैं। FASTag से भुगतान के लिए प्री-पेड रिचार्ज की आवश्यकता होती है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि यूजर पर्याप्त बैलेंस बनाए रखे।

ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम कितना अलग होगा फास्टैग से?

दूसरी ओर सैटेलाइट टोलिंग या जीएनएसएस तकनीक में हाईवे पर आभासी यानी वर्चुल टोल बूथ लगाई जाती हैं। ये सीधे सैटेलाइट से संपर्क में होती हैं। टोल की कटौती के लिए ये उनकी ओर आने वाले वाहन के रास्ते को ट्रैक करेंगी और फिर तय की गई दूसरी की गणना करते हुए पैसे कट जाएंगे। इस तकनीक में कई फायदे हैं। मसलन इसकी शुरुआत होने के बाद हाईवे पर टोल बूथ लगाने की जरूरत खत्म हो जाएगी। वर्चुअल टोल बूथ स्थापित किए जाएंगे और ऐसे में वाहनों को रोकने की भी जरूरत नहीं होगी।

इससे एक फायदा ये भी है कि इसके लिए प्री-पेड या बैलेंस बनाए रखने की बाध्यता खत्म हो जाएगी। इस तकनीक के जरिए की गई यात्रा की दूरी के आधार पर प्री-पेड के साथ-साथ पोस्ट-पेड बिलिंग भी की जा सकेगी। यानी दोनों सिस्टम इस तकनीक में काम कर सकते हैं। वैसे भारत में कौन सा सिस्टम इस्तेमाल किया जाएगा, ये अभी साफ नहीं हो सका है।

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