Homeवीडियोसंविधान पर बर्बरता की याद दिलाएगा संविधान हत्या दिवस!

संविधान पर बर्बरता की याद दिलाएगा संविधान हत्या दिवस!

संविधान की किताब भारत के किसी गरीब, फटेहाल आम आदमी के झोले से निकलकर अब सियासतदानों के झोले में चली आई है। हर दल का दावा है कि संविधान की रक्षा वही करता है। ये राजनीति अब इस बात पर उतर आई है कि संविधान की हत्या किसने की।

भारत सरकार, जिसका नेतृत्व बीजेपी के नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, उसने तय किया है कि 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा। इसके लिए सरकार की तरफ से बाकायदा एक अधिसूचना जारी की गई।

अधिसूचना के साए में ये भी तय किया गया है कि हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा। कांग्रेस ने इसका विरोध किया, विरोध समाजवादी पार्टी समेत दूसरे विपक्षी दलों ने भी किया।

इस समर्थन और विरोध के परिप्रेक्ष्य में ही ये जानना भी जरूरी है कि 25 जून को ही मोदी सरकार ने संविधान हत्या दिवस के लिए क्यों चुना और कैसे संविधान की हत्या की साजिश एक दिन में नहीं बल्कि कुचक्र की लंबी प्रक्रिया के तहत रची गई।

पहले 25 जून का इतिहास समझ लीजिए। 25 जून 1975 को संविधान को सत्ता की जूतियों तले धूल में कुचल दिया गया था। साथ ही इसका ऐलान इमरजेंसी लगाकर किया गया।

इस फैसले के साथ ही भारत के हर नागरिक की स्वतंत्रता, उसके मौलिक अधिकार, उसकी मानवीय गरिमा, सब कुछ धराध्वस्त कर दिया गया। बिना कहे भी ये बात साफ साफ परिलक्षित होती थी कि लोगों को अघोषित गुलामी का शिकार बना दिया गया था।

अब सरकार ये तय कर रही थी कि लोकसभा का कार्यकाल कितना होगा। सरकार तय कर रही थी कि लोगों के कितने बच्चे होंगे। लोग कितने बच्चे पैदा करेंगे। सरकार ही ये भी तय कर रही थी कि किसको जेल में ठूसना है, किसको इस आशंका में जीने देना है कि कब उसके हाथों में हथकड़ियां लग जाएंगी।

ये सारा काम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। सामने से वो दिखती थीं और परदे के पीछे से उनके छोटे बेटे संजय गांधी के हाथों में तानाशाही की बागडोर थी।

यह भी देखें- अल जज़ीरा का एंटी इंडिया कैंपेन पार्ट 2!

इस बेलगाम सत्ता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 72 साल के बूढ़े और बीमार जयप्रकाश नारायण को भी जेल में डाल दिया गया। विपक्ष के सारे बड़े नेता- मोरारजी देसाई, चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, पीलू मोदी, बीजू पटनायक, इन सबको जेल में डाल दिया गया।

ये तो विरोधी दल के नेता थे। कांग्रेस के भीतर ही इंदिरा गांधी की तानाशाही पर सवाल उठाने वाले चंद्रशेखर जैसे नेता भी जेल में डाल दिए गए।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने जाने वाले मीडिया में सेंसरशिप लागू हो गई। अखबारों को स्पष्ट निर्देश था कि वही छपेगा जो सरकार चाहेगी। रेडियो को आदेश जा चुका था कि वही बोला जाएगा जो सरकार कहेगी।

क्या संसद, क्या अदालत, क्या मीडिया, क्या जनशक्ति, सब कुछ इंदिरा गांधी की आपातकालीन वाली शक्ति के आगे नतमस्तक कर दिए गए। 19 महीने के लिए देश मानो देश नहीं, जेल बना दिया गया।

उन कटु स्मृतियों के साए में मोदी सरकार ने तय किया है कि लोगों को याद रहना चाहिए कि सत्ता के लिए कैसे संविधान का राम नाम सत्य किया जाता है और इसीलिए केंद्र सरकार ने संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला किया है 25 जून को।

यानी अगले साल 2025 में जब इमरजेंसी के 50 साल पूरे होंगे तो पहला संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा। इस बीच 15 अगस्त से 26 जनवरी यानी स्वतंत्रता दिवस से अगले गणतंत्र दिवस के बीच संविधान को लेकर चेतना जगाने की बात हो रही है जिसका मकसद है कि लोग संविधान के बारे में जानें।

इसके बाद जो पहला 25 जून आएगा, उस दिन सरकार संविधान हत्या दिवस मनाएगी। आइए एक बार फिर याद करते हैं कि आखिर 25 जून को क्या हुआ था जिसका वास्ता संविधान की हत्या से जुड़ गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Comments

मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा
Exit mobile version