Friday, October 10, 2025
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संभल विवाद: 1878 में पहली बार कोर्ट पहुंचा था मामला और फिर 1976 में हत्या की एक घटना…

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के संभल के शाही जामा मस्जिद सर्वे के दौरान 24 नवंबर (रविवार) को भड़की हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई। सर्वे का आदेश चंदौसी में संभल के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत द्वारा पारित किया गया था। संभल के शाही जामा मस्जिद को लेकर ताजा याचिका में दावा किया गया है कि 1526 में मस्जिद बनाने के लिए एक मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था। वैसे, संभल में शाही मस्जिद से पहले वहां मंदिर होने का विवाद नया नही हैं। करीब 150 साल पहले यह मामला पहली बार कोर्ट के दरवाजे तक पहुंचा था लेकिन इसे तब खारिज कर दिया गया था।

संभल शाही जामा मस्जिद पर विवाद और दावे

संभल शाही मस्जिद का विवाद जैसे-जैसे पिछले कुछ दिनों में बढ़ता जा रहा है, हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय की ओर से अपने दावे किए जा रहे हैं। पुराने और लगभग ‘धुंधले पड़ चुके तथ्यों’ को निकाला जा रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार संभल में कई हिंदू समुदाय के सदस्यों का कहना है कि उन्होंने शहर के कोट पूर्वी इलाके में स्थित ‘संरचना’ को हमेशा हरिहर मंदिर कहा है। कई लोग यह भी दावा करते हैं कि उनके दादा-दादी ने उस स्थान पर मौजूद एक मंदिर के बारे में बात की थी।

वहीं, मस्जिद के आसपास रहने वाले कई बुजुर्ग हिंदुओं का कहना है कि वे बचपन में अक्सर इसके अंदर (मस्जिद) जाया करते थे और वहां, बीच वाले गुंबद के नीचे एक जंजीर लटकी रहती थी, जिसमें शायद कभी घंटी रही होगी। इनका यह भी दावा है कि मस्जिद के प्रवेश द्वार के पास एक मौजूद एक कुआँ जिसे ‘पवित्र’ माना गया है और कुछ दशक पहले तक हिंदू वहां पूजा-पाठ करते थे।

वहीं, मस्जिद के आसपास के मुस्लिम निवासी यह मानते हैं कि हिंदू इसे हरिहर मंदिर कहते हैं। इनका कहना है कि ऐसा इस वजह से है क्योंकि काफी सालों पहले मस्जिद के पास एक मंदिर मौजूद था, न कि उस स्थान पर।

1878 में कोर्ट पहुंचा मामला और फिर 1976 का वो मर्डर

संभल शाही मस्जिद का मुद्दा पहली बार अदालत में तब आया जब 1878 में छेड़ा सिंह नाम के एक शख्स ने मुरादाबाद अदालत में ढांचे पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया। यह मुकदमा हालांकि खारिज कर दिया गया था। इसकी पुष्टि जिला प्रशासन के सूत्रों ने भी की है।

इसके बाद 1976 तक मामले को लेकर काफी हद तक शांति बनी रही। इस बीच मस्जिद के मौलाना की एक हिंदू व्यक्ति ने हत्या कर दी। इस वजह से दंगे हुए और करीब एक महीने तक कर्फ्यू लगा रहा।

इसके बाद से ही प्रवेश द्वार पर एक पुलिस पोस्ट बनी हुई है। इस घटना के बाद से वहां जाने वाले हिंदुओं की संख्या में भी गिरावट होने लगी। कई हिंदू दावा करते हैं कि उनका प्रवेश वहां वर्जित है, लेकिन मस्जिद समिति के सदस्यों का कहना है कि ऐसी कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।

अधिकारियों का भी यह कहना है कि हिंदुओं को मस्जिद में प्रवेश करने से रोकने का कोई आदेश नहीं है। एक अधिकारी ने कहा, ‘बात इतनी है कि माहौल अब पहले की तरह मेलजोल के अनुकूल नहीं रह गए थे। मुसलमान भी पहले की तरह स्वागत करने वाले नहीं थे, और हिंदू भी अंदर जाने से डरने लगे।’

इस बीच हिंदू पक्ष की ओर से इस जगह पर दावा किया जाने लगा था। विश्व हिंदू परिषद के संभल प्रभारी अमित वार्ष्णेय के अनुसार हर साल श्रावण माह के दौरान एक हिंदू समूह मस्जिद में ‘भगवान शिव’ को जल चढ़ाने के लिए मुरादाबाद से निकलता है, लेकिन प्रशासन द्वारा उन्हें रोक दिया जाता है। उन्होंने आगे कहा, ‘यह विवाद 150 सालों से चल रहा है। हमारा काम लोगों को जागरूक करना और हिंदू समाज को जागृत करना है, जो हम कर रहे हैं।’

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