नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वसंयसेवक संघ (RSS) के अस्तित्व में आए 100 साल पूरे हो गए हैं। आजादी से पहले 1925 में इसकी स्थापना की गई थी और 100 साल की यात्रा में यह संगठन कई बार सवालों के घेरे में भी आया, प्रतिबंध भी झेलने पड़े। हालांकि इसके बावजूद इसकी यात्रा जारी है। खासकर साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के बेहद मजबूती से सत्ता में आने के बाद आज आरएसएस देश में और अहम संगठन के तौर पर उभरा है। कैसे शुरू हुई थी आरएसएस की ये यात्रा, कैसे करता है ये संगठन काम और इसकी फंडिंग कैसे होती है…आईए 10 प्वाइंट में जानने की कोशिश करते हैं।
RSS के 100 साल: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े 10 तथ्य
- विजयादशमी के दिन स्थापना: आरएसएस की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई। उस दिन तारीख थी- 27 सितंबर। विजयादशमी के अवसर पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और उन्हीं की तरह 17 समान विचारधारा वाले लोगों द्वारा आरएसएस की नींव रखी गई। आरएसएस आज खुद को देश का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन बताता है।
- हजारों शाखाएं, लाखों स्वयंसेवकं: करीब 83,000 से ज्यादा शाखाओं और लाखों स्वयंसेवकों के साथ RSS लगभग पूरे देश में फैला हुआ है। इसकी शुरुआत नागपुर के महल स्थित नवीन शुक्रवारी स्थित हेडगेवार वाड़ा से हुई थी। देश भर में आरएसएस के कितने स्वयंसेवक हैं, इसकी ठीक गिनती मौजूद नहीं है।
- नागपुर में लगी थी पहली शाखा: नागपुर में RSS की स्थापना हुई थी और यही आज इसका मुख्यालय भी है। आरएसएस की पहली शाखा भी नागपुर में ही लगी थी।
- RSS के लिए कौन-कौन लोग आए थे साथ: हेडगेवार की भूमिका इसमें सबसे अहम रही है। तब मूल रूप से हिंदू समाज को एक साथ लाने, अपने सदस्यों में अच्छे आचरण सहित तब कांग्रेस से इतर विचार रखने वालों को एक साथ लाना इसका अहम मकसद था। इसी लक्ष्य से हेडगेवार ने विश्वनाथराव केलकर, भाऊजी कावरे, डॉ. एलवी परांजपे, रघुनाथराव बंदे, भय्याजी दानी, बापू भेदी, अन्ना वैद्य, कृष्णराव मोह्रिल, नरहर पालेकर, दादाराव परमार्थ, अन्नाजी गायकवाड़, देवघरे, बाबूराव तेलंग, तात्या तेलंग, बालासाहेब अठालये, बालाजी हुद्दार, अन्ना सोहोनी जैसे लोगों के साथ अपने विचारों को लेकर बातचीत शुरू की।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम कैसे पड़ा: डॉ. हेडगेवार ने 17 अप्रैल, 1926 को संगठन का नाम तय करने के लिए एक बैठक बुलाई। वहां उपस्थित 26 सदस्यों ने अपनी राय के अनुसार नाम सुझाए। प्रत्येक नाम पर विचार-विमर्श के बाद, तीन नाम चुने गए। पहला था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दूसरा जरीपटका मंडल, और तीसरा भारतोद्धारक मंडल। अब इन तीन में से कोई एक नाम चुनने के लिए मतदान किया गया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम के पक्ष में 20 वोट पड़े। जरीपटका मंडल के पक्ष में पाँच वोट पड़े। इस तरह संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तय हुआ।
- आरएसएस की पहली शाखा: आरएसएस की पहली शाखा नागपुर में इतवार दरवाजा स्कूल के सामने के एक मैदान में लगी। इसके बाद कई और शाखाएं यहां लगाई गई। 1926 में जब स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ गई और जगह कम पड़ने लगी, तो शाखा मोहिते वाड़ा में लगने लगी। इसके बाद 18 फरवरी, 1926 को वर्धा में एक शाखा शुरू हुई, जो नागपुर के बाहर लगने वाली पहली शाखा बनी। यहां से शुरू हुआ आरएसएस का विस्तार आज भी जारी है।
- आरएसएस की फंडिंग: RSS कहीं व्यक्ति-केंद्रित न हो जाए, इस आशंका को देखते हुए संगठन के भगवा ध्वज को ‘गुरु’ माना गया। साल 1927 में गुरु पूर्णिमा के दिन स्वयंसेवकों ने पहली बार भगवा ध्वज के समक्ष गुरु दक्षिणा अर्पित की। आरएसएस के रिकॉर्ड के अनुसार उस दिन 84 रुपये एकत्र हुए थे। गुरु पूर्णिमा पर ध्वज के सामने दक्षिणा अर्पित करने की यही परंपरा आज भी जारी है। यही उस समय संगठन की फंडिंग का मुख्य स्रोत बना। इससे आरएसएस को अपने सामाजिक कार्यों के लिए धन मिलता है। बाद में संघ को कई सामाजिक कार्यों के लिए समाज से भी सहायता मिलने लगी। कई स्वयंसेवकों ने सामाजिक कार्यों के ठीक-ठीक संचालन के लिए ट्रस्ट भी बनाए हुए हैं, जो कानूनी तौर-तरीकों से पैसे इकट्ठा करते हुए कामकाज करते हैं।
- संगठनात्मक ढाँचा: आरएसएस में सर्वोच्च पद सरसंघचालक का है। इसके बाद सरकार्यवाह आते हैं, जो एक तरह से संघ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को आरएसएस की स्थापना के बाद पहला सरसंघचालक कहा जाता है। वैसे, बता दें कि संघ की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को हुई थी, लेकिन हेडगेवार चार साल बाद, 10 नवंबर, 1929 को सरसंघचालक बने। हेडगेवार के बाद पांच सरसंघचालक बने हैं। मौजूदा मोहन भागवत संघ के छठे सरसंघचालक हैं।
- RSS का सदस्य कोई कैसे बन सकता है: इसे लेकर कोई औपचारिक तरीका नहीं है। कोई भी हिंदू आरएसएस की शाखाओं में नियमित तौर पर हिस्सा लेते हुए इससे जुड़ सकता है। इसके लिए कोई शुल्क भी नहीं देना पड़ता और न ही कोई औपचारिक आवेदन या फॉर्म भरना पड़ता है। संघ के अनुसार कोई भी व्यक्ति सुबह या शाम दैनिक लगने वाली शाखा में हिस्सा लेकर स्वयंसेवक बन सकता है।
- आरएसएस क्या करता है: संघ के अनुसार संगठन का असल लक्ष्य भारतीय संस्कृति, परंपराओं को बढ़ावा देना, राष्ट्र सेवा, समाज को मजबूत करना और हिंदुओं की एकता के लिए काम करना है। संघ ये भी कहता है कि वह दलीय राजनीति में नहीं उतरना चाहता, हालांकि ये भी एक तथ्य है कि पिछले दरवाजे से संगठन राजनीति से जुड़ा रहा है। खासकर भाजपा का आरएसएस से जुड़ाव स्पष्ट नजर आता है। संघ के कई लोग भाजपा में शामिल हुए हैं और राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शुरुआती दिनों में आरएसएस का हिस्सा रहे हैं।