पाकिस्तान लंबे समय से भारत के खिलाफ आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन आखिरकार इसी साल 23 अप्रैल को भारत की ओर से सिंधु जल संधि (IWT) को स्थगित कर दिया गया। यह कदम ‘द रेजिस्टेंस फोर्स’ (TRF) द्वारा बैसरन (पहलगाम) मैदान में दो दर्जन हिंदू पर्यटकों को मारने की आतंकी घटना 24 घंटे के भीतर उठाया गया। यह संधि अब खतरे में है क्योंकि भारत फिलहाल इसकी किसी भी धारा को मानने से इनकार कर रहा है। पिछले हफ्ते, 19 सितंबर (शुक्रवार) को IWT ने 65 साल पूरे कर लिए। अब कोई नहीं जानता कि यह कभी वापस आएगा भी या नहीं, अगर आएगा भी तो कब।
यह पाकिस्तान के लिए एक भयानक दुःस्वप्न है जिसे वह असहाय होकर देख रहा है और भारत पर पानी के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए दहशत में चीख रहा है! उसने पहले कई मौकों पर घोषणा की थी कि IWT के साथ कोई भी छेड़छाड़ युद्ध के समान होगी। लेककिन यथास्थिति बहाल करने के लिए भारत सरकार को बार-बार पत्र लिखने के अलावा पाकिस्तान कुछ भी नहीं कर पाया है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को स्थगित करने के पाँच महीने बाद हमारा पश्चिमी पड़ोसी वास्तव में यह समझने में असमर्थ है कि उसे क्या चोट पहुँची है। आतंकवादियों को बढ़ावा देने और उन्हें जम्मू-कश्मीर में हमले करने के लिए कहने की उसकी अघोषित नीति सफल रही थी। 27 अगस्त, 2012 को, हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम) के आतंकवादियों ने सोपोर के पास आदिपोरा में श्रमिकों पर हमला किया था। श्रमिक वुलर नदी की तलहटी की सफाई में लगे थे लेकिन यह ऐलान किया गया कि यह सिंधु जल संधि के प्रावधानों के विरुद्ध है!
हिजबुल के आतंकवादियों ने कहा कि वे पाकिस्तान के हितों की रक्षा कर रहे हैं! काम बीच में छोड़ दिया गया और आखिरकार पाकिस्तान के आतंकी अपने मंसूबे में सफल रहे। इस वर्ष 22 अप्रैल को, आतंकवादियों ने बैसरन (पहलगाम) में दो दर्जन हिंदू पर्यटकों की हत्या कर दी थी और पाकिस्तान के पास यह मानने का कोई कारण नहीं था कि भारत की प्रतिक्रिया कुछ अलग होगी।
हालाँकि, एक दृढ़निश्चयी भारतीय सरकार ने वह किया जो उस दिन तक अकल्पनीय था। इसने संधि को ही स्थगित कर दिया और ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के कई आतंकी ठिकानों को अपनी इच्छानुसार तबाह कर दिया गया। 6 और 9 मई के बीच जो छोटा-मोटा युद्ध हुआ, वह भारतीय सशस्त्र बलों की विनाशकारी क्षमताओं का एक छोटा-सा ट्रेलर मात्र था।
पहले भी कई मौकों पर भारत सरकार के सतर्क रुख को पाकिस्तान ने कायरता समझकर गलती की। सितंबर 2016 के उरी आतंकवादी हमले के बाद, मोदी ने संधि का विस्तार से और बारीकी से अध्ययन करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया था। ‘रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते’ वाली लाइन उसी दौर की देन है।
14 फरवरी, 2019 को पुलवामा की आतंकी घटना के बाद भारत ने बहुत सावधानी से प्रतिक्रिया व्यक्त की और रावी नदी पर तीन परियोजनाओं की घोषणा की। आठ दिन बाद भारत ने लगभग क्षमाप्रार्थी स्वर में घोषणा की कि वह अपने हिस्से के रावी के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए शाहपुर कंडी बाँध परियोजना सहित दो और परियोजनाएँ बनाएगा! हमारे पड़ोसी ने तो रोक को भी ‘जल आतंकवाद’ घोषित कर दिया! अफसोस, केवल शाहपुर कंडी परियोजना ही पूरी हुई है और बाकी दो परियोजनाओं को शुरू करने के लिए आज तक कुछ नहीं किया गया है।
भारत के प्रोजेक्ट में तेजी
भारतीय इंजीनियरों और राजनयिकों के लिए सिंधु जल संधि (IWT) का स्थगित होना एक सुखद अवसर है। उन्होंने इसका उपयोग पश्चिमी नदियों, खासकर चिनाब पर नियोजित या निर्मित हो रही अधिकांश जलविद्युत परियोजनाओं को गति देने के लिए किया है। किश्तवाड़ में 850 मेगावाट की रतले परियोजना पर काम में और तेजी आ गई है।
संधि के स्थगित होने से लाभान्वित होने वाली एक अन्य परियोजना 1,856 मेगावाट की विशाल सवालाकोट परियोजना है। बगलिहार के नीचे और सलाल के ऊपर स्थित इस परियोजना पर 1997 या उससे भी पहले से चर्चा चल रही थी। हालाँकि, पाकिस्तान के अत्यधिक शोर-शराबे के कारण यह परियोजना शुरू नहीं हो सकी। अब, जुलाई के अंतिम सप्ताह में एक वैश्विक निविदा जारी की गई है। इस बार, ऐसा लग रहा है कि इस परियोजना को कोई नहीं रोक सकेगा।
भारत के अडिग रूप से अनसुना रवैया अपनाने के कारण पाकिस्तान अब पश्चिमी नदियों पर बनने वाली किसी भी भारतीय परियोजना को रोकने के लिए सिर्फ शोर-शराबा या नखरे दिखा सकता है और कुछ खास नहीं कर सकता। अतीत में उसने हमारी सभी परियोजनाओं पर कोई न कोई आपत्ति उठाकर भारत को बहुत नुकसान पहुँचाया था। अब ऐसा नहीं है क्योंकि संधि स्थगित है।
तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट
पश्चिमी नदियों पर बनने वाली सभी परियोजनाओं में से तुलबुल नौवहन परियोजना की कल्पना सबसे पहले की गई थी। एक समय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला इसे जल्द पूरा करने के लिए दबाव बना रहे थे। उन्होंने कहा था कि वुलर झील का जलस्तर बढ़ाने से नीचे की ओर नेविगेशन में सुधार होगा। इसे हालांकि, 1984 में शुरू किया जा सका, लेकिन पाकिस्तान की आपत्तियों के कारण यह परियोजना समस्याओं में उलझ गई और 1987 से रुकी रही। मई से श्रीनगर में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) के कार्यालय के संचालन के साथ इस परियोजना ने गति पकड़ ली है।
वर्तमान में सिंधु जल संधि का स्थगित होना एक सुनहरा अवसर है जिसका भारत में नीति नियोजक भरपूर उपयोग कर रहे हैं। पश्चिमी नदियों पर परियोजनाओं के लिए कभी-कभी धन का आवंटन एक समस्या होती थी। अब ऐसा नहीं है क्योंकि उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। शॉर्ट टर्म, मिड टर्म और लॉन्ग टर्म के लिए धन आवंटन और नियोजन इस तरह किया जा रहा है जैसे मानो IWT का अस्तित्व ही नहीं हो!
इस साल पश्चिमी नदियों के सभी जलाशयों में एक से अधिक बार तलछट की सफाई की गई है। इससे इनके ज्यादा जल रखने की क्षमता में और सुधार हुआ है। भारत में पाकिस्तान के छद्म युद्धों और कई आतंकवादी हमलों के बावजूद, सितंबर 1960 से अप्रैल 2025 तक लगभग 65 वर्षों तक चली सिंधु जल संधि को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सका था। जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे स्थगित करने का निर्णय लेकर एक कड़ा प्रहार किया। आतंकवाद पाकिस्तान की ओर से दिया गया प्रश्न था। कम से कम अभी के लिए जल असुरक्षा ही भारत की ओर से दिया गया सटीक उत्तर प्रतीत होता है।