नई दिल्ली: भारत अगले साल यानी 2026 में स्वदेशी एयर और मिसाइल डिफेंस शिल्ड के लिए नए इंटरसेप्टर मिसाइल का परीक्षण शुरू करेगा। ‘प्रोजेक्ट कुशा’ के तहत यह किया जाना है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित महत्वकांक्षी ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ (MSC) के लिहाज से भी यह परीक्षण अहम होगा। मिशन सुदर्शन चक्र का लक्ष्य 2035 तक देश के सामरिक और महत्वपूर्ण नागरिक क्षेत्रों के लिए सुरक्षा इंतजाम तैयार करना है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले साल M1 मिसाइल की टेस्टिंग करने की योजना है। इसकी इंटरसेप्शन रेंज 150 किलोमीटर होगी, जो दुश्मन देशों के विमानों, स्टील्थ लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल, ड्रोन और गाइडेड हथियारों को रोकेगी। रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद साल 2027 में एम2 (250 किलोमीटर रेंज) और फिर 2028 में एम3 (350 किलोमीटर रेंज) का परीक्षण किया जाएगा।
2028 तक टेस्ट पूरा कर लेने का लक्ष्य
इस मिसाइल आधारित स्तरीय डिफेंस सिस्टम को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित किया जा रहा है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि ‘प्रोजेक्ट कुशा’ के तहत ये लक्ष्य है कि इन तीन लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (एलआर-एसएएम) और संबंधित प्रणालियों का विकास 2028 तक पूरा कर लिया जाए। इससे संभावना है कि 2030 से इन्हें सुरक्षा में शामिल करने का रास्ता खुल जाएगा।
यह पूरी तरह से स्वचालित एलआर-एसएएम प्रणाली से लैस होगा। भारतीय वायुसेना द्वारा फिलहाल सीमित संख्या में तैनात की गई महंगी रूसी निर्मित एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम का भी यह विकल्प बन सकेगा। यह प्रणाली देश में प्रमुख स्थानों के आसपास एक बहुस्तरीय एयर एंड मिसाइल रक्षा कवच तैयार करने के एमएससी योजना का एक हिस्सा होगी। एक तरह से यह अमेरिका की प्रस्तावित ‘गोल्डन डोम’ मिसाइल रक्षा पहल या इजराइली ‘आयरन डोम’ जैसा होगा।
अमेरिकी प्रस्तावित गोल्डन डोम में दुश्मन के मिसाइल को अंतरिक्ष में भी मार गिराने की क्षमता होगी। अनुमान के अनुसार इसकी लागत अगले 20 साल में करीब 500 बिलियन डॉलर होगी।
भारत अपना ‘गोल्डन डोम’ करेगा तैयार
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को महू में आयोजित ‘रण संवाद’ सम्मेलन में कहा कि उन्हें विश्वास है कि भारत एमएससी के तहत कम लागत पर अपना ‘आयरन या गोल्डन डोम’ बना सकता है। सीडीएस ने कहा, ‘यह ढाल और तलवार दोनों का काम करेगा।’
इससे साफ संकेत मिलता है कि भारत अपनी पारंपरिक (गैर-परमाणु) मिसाइलों जैसे प्रलय (500 किलोमीटर की मारक क्षमता), ब्रह्मोस (450 किलोमीटर से बढ़कर 800 किलोमीटर की मारक क्षमता) और लैंड अटैक वाली क्रूज मिसाइलों (1,000 किलोमीटर की मारक क्षमता) के भंडार का व्यापक विस्तार आने वाले दिनों में करने जा रहा है।
डीआरडीओ ने सफल परीक्षण के साथ पिछले हफ्ते की शुरुआत
भारत ने अपने एयर डिफेंस सिस्टम को तैयार करने के लिए कदम बढ़ा चुका है। पिछले ही हफ्ते 23 अगस्त को डीआरडीओ ने एयर डिफेंस विपन सिस्टम (आईएडीडब्ल्यूएस) के पहले परीक्षण के साथ एक छोटी सी शुरुआत की।
आईएडब्ल्यूएस एक बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली है जिसमें पूरी तरह स्वदेशी क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल (क्यूआरएसएएम), एडवांस्ड वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम मिसाइलें और एक उच्च शक्ति वाला लेजर आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियार शामिल है।