पटनाः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने खुद को भ्रष्टाचार पर “जीरो टॉलरेंस” की छवि के साथ स्थापित किया था, अब अपनी साख पर गहरी चोट झेल रहे हैं। जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने उनकी कैबिनेट के तीन वरिष्ठ मंत्रियों पर सीधे-सीधे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं।
प्रशांत किशोर, जो कभी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद सलाहकार और जेडीयू के उपाध्यक्ष रह चुके हैं और जिन्हें कैबिनेट रैंक का दर्जा भी मिला था, ने दावा किया कि उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने अपनी शैक्षिक योग्यता में धोखाधड़ी की है। किशोर ने बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड का एक दस्तावेज दिखाते हुए आरोप लगाया कि “सम्राट मैट्रिक परीक्षा में फेल हो गए थे, लेकिन उन्होंने खुद को कैलिफोर्निया से डी-लिट बताकर पेश किया।”
जेडीयू के वरिष्ठ नेता और ग्रामीण विकास मंत्री अशोक कुमार चौधरी पर भी किशोर ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया। उन्हें “सबसे भ्रष्ट मंत्री” करार देते हुए किशोर ने कहा कि पिछले दो साल में उन्होंने 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन अलग-अलग जगह खरीदी। उन्होंने अशोक चौधरी की तुलना आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद से की, जो आजकल “लैंड-फॉर-रेलवे-जॉब्स” मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। किशोर ने आरोप लगाया कि अशोक चौधरी ने विक्रम (पटना के बाहरी इलाके) में 35 लाख रुपये में एक प्लॉट अपने निजी सहायक के नाम खरीदा, जिसे बाद में अपनी बेटी को मात्र 10 लाख रुपये में ट्रांसफर कर दिया। किशोर ने यह भी कहा कि इनकम टैक्स विभाग की नोटिस के बाद मंत्री को 25 अप्रैल 2025 को खजाने में अतिरिक्त 25 लाख रुपये जमा करने पड़े।
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे पर भी उन्होंने सवाल उठाए। किशोर ने आरोप लगाया कि कोविड महामारी की चरम स्थिति के दौरान पांडे ने दिल्ली में 4.50 करोड़ रुपये का फ्लैट खरीदा और कहा कि इसके लिए उन्होंने उस समय के राज्य अध्यक्ष से 10 लाख रुपये का कर्ज लिया था। किशोर ने यह भी दावा किया कि उनकी पत्नी, जो गृहिणी हैं, के खाते में उस समय 2.24 करोड़ रुपये जमा थे, जिसका बैंक स्टेटमेंट भी उन्होंने जारी किया।
दो दशक में पहली बार नीतीश कुमार की “भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस” वाली विश्वसनीयता पर इतनी सीधी चुनौती आई है। जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने रविवार को कहा, “यह नीतीश कुमार के लिए अग्निपरीक्षा है, क्योंकि अब उनकी छवि पर गंभीर आंच आई है।” उन्होंने संबंधित मंत्रियों से सफाई मांगी और याद दिलाया कि 2017 में नीतीश ने उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से भी यही पूछा था, जब प्रवर्तन निदेशालय ने उनके घर पर छापा मारा था। तेजस्वी ने कोई जवाब नहीं दिया, जिसके बाद नीतीश ने आरजेडी से गठबंधन तोड़ लिया था।
नीतीश इससे पहले भी आरोप लगते ही अपने मंत्रियों पर कार्रवाई करते रहे हैं। 2005 से लेकर अब तक उन्होंने कई मंत्रियों को तुरंत बर्खास्त किया: जीतन राम मांझी को शपथ लेने के अगले ही दिन हटा दिया गया था, राम नारायण सिंह को सतर्कता जांच में गड़बड़ी पाए जाने पर दो दिन में ही बाहर कर दिया और कार्तिकेय सिंह को एक हफ्ते में पद से हटा दिया गया। पहले भी ललन सिंह और पी.के. शाही जैसे वरिष्ठ मंत्रियों को नीतीश कुमार की सिफारिश पर राज्यपाल ने बर्खास्त किया था।
बिहार की राजनीति में मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों का इतिहास भी पुराना है। 1970 के दशक में तत्कालीन राज्यपाल आर.डी. भंडारे ने अब्दुल गफूर की कैबिनेट के तीन मंत्रियों को खुलेआम भ्रष्ट बताया था। इसके बाद दो न्यायिक जांच आयोग—जस्टिस अय्यर आयोग और जस्टिस मुद्होलकर आयोग—गठित हुए। इससे पहले के.बी. सहाय की सरकार के पांच और बाद में महमाया प्रसाद सिन्हा की कैबिनेट के सात मंत्री भ्रष्टाचार जांच के घेरे में आए थे।