गयाजी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को बिहार में गंगा नदी पर बने एशिया के सबसे चौड़े छह लेन वाले औंटा-सिमरिया पुल का उद्घाटन किया। राज्य के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों को जोड़ने वाले इस नए पुल से उन लोगों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है जो लंबे समय से पुराने दो लेन वाले राजेंद्र सेतु पर निर्भर थे। इस दौरान उन्हें अत्यधिक जाम जैसी परेशानी यात्रा में देरी आदि से जूझना पड़ता था।
अब राष्ट्रीय राजमार्ग-31 पर बने औंटा-सिमरिया केबल ब्रिज से लाखों लोगों की यात्रा आसान होने और लगभग 100 किलोमीटर का लंबा चक्कर कम होने की उम्मीद है। जाहिर तौर पर इससे गंगा पार यात्रा तेज और आसान हो जाएगी। यह पुल न केवल यात्रियों के लिए मददगार होगा, बल्कि दोनों क्षेत्रों में व्यापार और उद्योग को भी बेहतर बनाएगा। इससे बिहार में संपर्क और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। साल 2017 में इस पुल की आधारशिला रखी गई थी।
औंटा-सिमरिया केबल ब्रिज, जानिए इसके बारे में
- करीब 1,870 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से निर्मित 1.86 किलोमीटर लंबे औंटा-सिमरिया पुल को भारत का सबसे चौड़ा एक्सट्राडोज्ड केबल-स्टेड पुल बताया जा रहा है।
- करीब 34 मीटर की चौड़ाई लिए, 57 से 115 मीटर के बीच खंडों की लंबाई और 70 मीटर तक फैले कैंटिलीवर आर्म्स के साथ, यह पुल उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच यातायात की भीड़ को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा। इसकी कुल लंबाई 8.15 किलोमीटर है। इसमें 1.86 किलोमीटर छह लेन गंगा नदी के ऊपर बना है।
- पुराने दो-लेन राजेंद्र सेतु के समानांतर निर्मित नए छह-लेन पुल से माल ढुलाई में 100 किलोमीटर से अधिक का लंबा चक्कर बचेगा। वैसे, राजेंद्र सेतु को अब भारी वाहनों के लिए बंद कर दिया गया है।
- इससे पहले दशकों तक लोग राजेंद्र सेतु पर निर्भर रहे। यह रेल-सह-सड़क पुल का 1959 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्घाटन किया गया था। 1950 के दशक में निर्मित, इस पुल ने दक्षिण बिहार के लिए एक महत्वपूर्ण जीवनरेखा के रूप में काम किया। हालांकि, बढ़ते यातायात और भारी भार के कारण, यह पुल आज की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं रह गया है।
- नए पुल यानी औंटा-सिमरिया छह लेन ब्रिज का निर्माण आसान नहीं था। इस परियोजना में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा क्योंकि पूरा पुल निचले और बाढ़ वाले क्षेत्र में स्थित है। ईटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार एक अधिकारी ने कहा, ‘पुल का निर्माण कार्य साल के केवल 7-8 महीनों के दौरान ही संभव था जब बाढ़ जैसी स्थिति न हो।’
- इन चुनौतियों के बावजूद, इंजीनियरों ने परियोजना को पूरा करने के लिए आज की उन्नत तरीकों का सहारा लिया। एनएचएआई के परियोजना प्रबंधक अभिषेक ने बताया कि पुल का निर्माण आधुनिक एक्स्ट्रा-डोज्ड तकनीक का इस्तेमाल करके किया गया है।
- अभिषेक ने कहा कि एक मजबूत संरचना होने के साथ-साथ यह पुल आधुनिक इंजीनियरिंग का भी एक बेहतरीन उदाहरण है। प्रसिद्ध सिमरिया धाम जैसे धार्मिक स्थलों तक पहुँचना अब लोगों के लिए और आसान हो जाएगा। किसानों और व्यापारियों को भी इससे फायदा होगा।
आर्थिक विकास, व्यापार का आसान रास्ता खुलेगा
माना जा रहा है कि इस पुल से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। खासकर उत्तरी बिहार में, जो अक्सर कच्चे माल के लिए दक्षिण बिहार और झारखंड पर निर्भर रहता है। इसके अलावा मखाना उत्पादकों सहित किसानों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक त्वरित पहुँच का लाभ मिलने की भी उम्मीद है। बरौनी जैसे औद्योगिक केंद्रों में भी माल का सुगम परिवहन होने की संभावना है।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट अनुसार बिहार के सड़क निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने इस परियोजना को राज्य के लिए एक मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा, ‘2017 में इसकी आधारशिला रखने से लेकर इसके उद्घाटन तक, माननीय प्रधानमंत्री ने बिहार की कनेक्टिविटी और विकास को मजबूत करने के लिए अपनी अटूट प्रतिबद्धता और स्थायी दृष्टिकोण को दिखाया है।’ उन्होंने आगे कहा कि यह पुल बिहार की प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना बन कर उभरेगा।