Tuesday, August 26, 2025
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पीएम मोदी ने ट्रंप के चार फोन कॉल का नहीं दिया जवाब, जर्मन अखबार का दावा

अखबार ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने टैरिफ विवाद में अपने सभी विरोधियों को हरा दिया है। भारत को नहीं। इसके बजाय, देश अपने शक्तिशाली पड़ोसी चीन की ओर रुख कर रहा है और पुराने जख्मों को नजरअंदाज कर रहा है।

नई दिल्ली: जर्मनी के एक अखबार ने दावा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी को चार बार फोन किया लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने एक भी कॉल का जवाब नहीं दिया। यह खबर ऐसे समय आई है जब अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के चलते नए शुल्क लगाए हैं और आगे और कड़े कदम उठाने की धमकी दी है।

भारत-अमेरिका टैरिफ विवाद को लेकर जर्मन अखबार ‘फ्रैंकफर्टर अल्जेमाइन साइटुंग’ (एफ.ए.जेड.) ने रिपोर्ट में कहा है कि ट्रंप ने पिछले कुछ हफ्तों में मोदी से चार बार फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। हालांकि, कॉल कब किए गए, इस बारे में अखबार ने स्पष्ट तारीखें नहीं दीं। भारतीय सरकार ने भी इस दावे पर अभी तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। जर्मन अखबार का कहना है कि मोदी का यह रवैया केवल नाराजगी का संकेत नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति भी हो सकती है।

ट्रंप चाहते हैं कि भारत अपने बाजार अमेरिकी कृषि कंपनियों के लिए खोले और रूस से तेल की खरीद बंद करे। उनका आरोप है कि रूस का तेल खरीदकर भारत ‘पुतिन की युद्ध मशीन’ को मजबूत कर रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने साफ संकेत दिया है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और व्यापारिक हितों के आधार पर ही फैसले करेगा।

टैरिफ की तलवार और मीडिया स्टंट से दूरी

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर हालात नहीं बदले, तो भारत को अमेरिका के 50 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। इसमें 25 प्रतिशत शुल्क व्यापार असंतुलन के आधार पर और 25 प्रतिशत रूस से तेल आयात करने की वजह से लगाया जाएगा। ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने यहां तक कह दिया कि राष्ट्रपति “भारत को अब और कोई रियायत नहीं देंगे।”

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मोदी ट्रंप की ‘मीडिया पॉलिटिक्स’ का हिस्सा नहीं बनना चाहते। उदाहरण के तौर पर वियतनाम का जिक्र किया गया, जहां ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक व्यापार समझौते का ऐलान कर दिया था, जबकि कोई औपचारिक समझौता हुआ ही नहीं था। मोदी नहीं चाहते कि भारत को भी इसी तरह की स्थिति में दिखाया जाए।

इंडो-पैसिफिक रणनीति और भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर?

अखबार ने विश्लेषक मार्क फ्रेजियर के हवाले से रिपोर्ट में यह भी कहा है कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति, जिसमें चीन को घेरने के लिए भारत को अहम किरदार माना गया था, अब कमजोर पड़ती दिख रही है। अगर भारत और अमेरिका के रिश्तों में दूरी बढ़ी, तो यह रणनीति गंभीर संकट में पड़ सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के करीब 20 प्रतिशत निर्यात अमेरिका जाते हैं। अगर नए टैरिफ लागू हुए, तो भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर अनुमानित 6.5 प्रतिशत से घटकर 5.5 प्रतिशत रह सकती है। हालांकि, भारत में जनता का मूड बदल रहा है। कुछ महीने पहले तक जहां आधे भारतीय ट्रंप पर भरोसा जताते थे, वहीं अब उनके बयानों और फैसलों के खिलाफ सोशल मीडिया पर नाराजगी साफ दिख रही है।

रिपोर्ट में बताया गया कि ट्रंप के कुछ हालिया बयान भारत में गुस्से का कारण बने। उदाहरण के लिए, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच शांति कराई है, जबकि भारतीय सोशल मीडिया पर इसे “हस्तक्षेप” माना गया। इसके अलावा उनका यह कहना कि भारत भविष्य में पाकिस्तान से तेल खरीद सकता है, भी विवाद का कारण बना। ट्रंप का पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के साथ व्हाइट हाउस में लंच करना भी भारत में नकारात्मक रूप से देखा गया।

चीन के साथ नई रणनीति?

रिपोर्ट में दावा किया गया कि मोदी अब नई रणनीतिक दिशा अपना रहे हैं। वे इस हफ्ते तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि भारत और चीन वैश्विक संस्थाओं में अधिक प्रभाव हासिल करने में साझा हित रखते हैं। इसके अलावा, चीन की तकनीक और निवेश भारतीय उद्योग को भी फायदा पहुंचा सकते हैं।

लेख में फ्रेजियर का हवाला देते हुए कहा गया है कि वैश्विक संस्थानों में अधिक प्रभाव प्राप्त करने में भारत के “चीन के साथ सामान्य रणनीतिक हित” हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि चीनी निवेश और प्रौद्योगिकी भारतीय उद्योग को आगे विकसित करने में मदद कर सकती है। यह रिपोर्ट भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को रेखांकित करती है, जो किसी एक देश के दबाव में आने के बजाय अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने का संकेत देती है।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.in
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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