Friday, October 10, 2025
Homeविचार-विमर्शराज की बात: जब 18 मार्च 1974 को पटना जल उठा और...

राज की बात: जब 18 मार्च 1974 को पटना जल उठा और बिहार में क्रांति की ज्वाला भड़की

18 मार्च देश के लिए एक साधारण दिन नहीं था,जब 1974 में आज ही के दिन पटना जल उठा था। स्वतंत्रता संग्राम के बाद पहली बार जगह-जगह पुलिस फायरिंग हुई। सरकारी और निजी संपति को बड़े पैमाने पर आग लगाई गई। 18 मार्च 1974 को बिहार विधान मंडल का बजट सत्र शुरू होना था। राज्यपाल रामचंद्र धोन्दुबा भंडारे के उद्घाटन के बाद, वित्त मंत्री दरोगा प्रसाद राय को बजट पेश करना था। राज्यपाल रामचंद्र धोन्दुबा भंडारे को सत्र का उद्घाटन करना था। राज भवन विधान मंडल के पश्चिम स्थित है,बीच में मुख्य सचिवालय।

बिहार के छात्रों ने गुजरात के मोरबी से शुरू नव निर्माण आंदोलन से प्रेरित होकर महगांई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की समस्या को लेकर बिहार विधान मंडल का घेराव करना चाहते थे। इसके पहले पटना विश्वविद्यालय के व्हीलर सेनेट हाल में देश के निर्वाचित विश्वविद्यालय छात्र संघ के नेताओं का सम्मेलन हुआ, जिसमें दिल्ली से अरुण जेटली भी आए थे। अब्दुल गफूर की सरकार ने विधान मंडल के चारो तरफ, पश्चिम में सचिवालय और हार्डिंग रोड पूर्व में आर ब्लॉक, दक्षिण में यारपुर,उत्तर में मंगलेश रोड पर जबरदस्त बैरीकेडिंग कर दी थी। केंद्रीय रिजर्व पुलिस और मजिस्ट्रेट सभी जगह पोस्ट किए गए थे।

विद्यार्थियों का समूह प्रातः काल से ही चारो तरफ घेरा डाल दिया था और गुरिल्ला अटैक शुरू कर दिया। पलामू से आए अक्षय कुमार सिंह और आरा के छात्र अवधेश कुमार सिंह ने राज्य पथ परिवहन की नगर सेवा की बस पर ड्राइवर को हटाकर कब्जा कर लिया और चार तरफ बस घूमना शुरू कर दिया। 

राज्यपाल के काफिले को लालू ने की रोकने की कोशिश

राज्यपाल का काफिला पश्चिम साइड से सचिवालय प्रवेश करने के लिए निकला, वहीं गेट पर लालू प्रसाद यादव जो पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे, ने रोकने का प्रयास किया। सुरक्षा अधिकारियों ने लाठी चार्ज करवाया,तब महामहिम विधान सभा प्रांगण पहुंच पाए। राज्यपाल ने जैसे ही अभिभाषण शुरू किया, तीनो तरफ से सुरक्षा तोड़कर छात्रों का समूह भी पहुंच गया। सभागृह में प्रवेश करने का प्रयास हुआ, वित्त मंत्री अपने आपको टॉयलेट में बंद कर दिए और राज्यपाल को बिना पढ़े लौटना पड़ा। इस बीच बाहर आगजनी शुरू हो गई। मंत्रियों और विधायकों को बचा कर उनके आवास पहुंचा दिया गया।

उपद्रवी छात्रों ने विधानसभा के सामने स्थित पेट्रोल पंप जो बिहार के एक मुख्य सचिव के पिता का था  जला डाला। मंगलेश रोड और हार्डिंग रोड स्थित सरकारी भवन भी शिकार हुए। स्टेशन के करीब हार्डिंग पार्क स्थित यार्ड में रेल गाड़ी को भी आग के हवाले कर दिया,यह पैसेंजर गाड़ी दीघा घाट जाती थी।

छात्रों ने गार्डिनर रोड पर सर्किट हाउस में भी आग लगा दी। अभी हाल ही विजये शंकर दुबे ट्रांसफर हो कर पटना में जिला जिला अधिकारी होकर आए थे,परिवार सहित रहते थे। वे अन्य जगहों पर हुए आगजनी रोकने की व्यस्था कर रहे थे,की उन्हें वायरलेस से से खबर दी गई सर्किट हाउस के पांच नंबर रूम में भी आग लगा दी गई है।  बाद में छात्रों का समूह बुद्ध मार्ग स्थित एक और पेट्रोल पंप, प्रदीप और सर्कलाइट प्रेस में भी आग लगा दी। फिर वे फ्रेजर रोड में इंडियन नेशन और आर्यावर्त अखबारों के भवन में आग लगाते हुए राजस्थान होटल को भी आग के हवाले कर दिया 

लालू यादव ने फैलाई खुद के मारे जाने की खबर!

इधर शहर में अफवाह फैला दी गई कि लालू प्रसाद यादव भी पुलिस की गोली से मारे गए हैं। छात्र संघ के अध्यक्ष को उस वक्त भी उसके हॉस्टल या निवास में फोन की सुविधा होती थी। तीन बजे दोपहर में मैने उनके नंबर पर फोन किया तो,लालू जी ने फोन उठाया। मैने उनके कुशल क्षेम की जानकारी ली और उनके मारे जाने की अफवाह के बारे में बताया। उन्होंने दावा किया कि खबर तो उन्होंने ही फैलाई थी मारे जाने की। अफवाह के बाद ही बड़े पैमाने पर आग लगी। 
बाद में लालू को शहर के पूर्व में लोहानीपुर से पकड़ा गया। अन्य छात्र नेताओं के साथ फ्रेजर रोड स्थित बांकीपुर केंद्रीय कारा में बंद किया गया। डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स और मीसा की धारा लगाई गई। एक सप्ताह बाद जब जयप्रकाश नारायण वेल्लोर से अपना इलाज कर लौटें तो,अब आंदोलन का रूप ले चुकी संघर्ष का नेतृत्व दे दिया गया,जो कालांतर में जेपी बनाम इंदिरा गांधी हो गया।

मुझे स्मरण है, गंगा नदी किनारे स्थित अनुग्रह नारायण संस्थान में जनवरी 1974 में एक सेमिनार हुआ था। जयप्रकाश नारायण भी आए। हॉल में सौ लोग भी नहीं थे,लेकिन आंदोलन के दौरान इनकी सभा में तिल रखने की भी जगह नहीं मिलती।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा