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पेरिस ओलंपिक: ना जूते थे, ना पैसे थे, ना पिता थे, फिर भी गोल्ड मेडल जीत गई! गजब है जुलियन अल्फ्रेड की कहानी

कैरेबियाई द्वीपों में स्थित एक छोटे से देश सेंट लूसिया जुलियन अल्फ्रेड ने पेरिस ओलंपिक के 100 मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीता है। पहली बार सुनने में भले ही लगे कि इसमें क्या खास है? किसी खेल में हार-जीत तो होती है…लेकिन नहीं ये जीत बेहद खास है। ये जीत मानव जीवन के संघर्ष की वो कहानी है जिसकी अंतिम मंजिल सफलता ही होती है। ये जीत उस आत्मविश्वास की जीत है जिसके सामने 100 मीटर की रेस क्या, ये पूरा ब्रह्मांड छोटा पड़ जाता है। सेंट लूसिया की आबादी मुश्किल से एक लाख अस्सी हजार के आसपास है। पूरे देश में एक स्टेडियम तक नहीं है। स्टेडियम तो बहुत बड़ा ख्वाब हो गया, ढंग की रेसिंग ट्रैक तक नहीं है। पूरा देश गरीबी के अंधेरे में डूबा हुआ है, जहां वर्ल्ड चैंपियन होने का चमकीला ख्वाब किसी आंख में सजता ही नहीं था। इस अंधेरे में कहीं कोई उम्मीद नहीं…लेकिन इसी अंधेरे से जूझती हुई एक बच्ची अपना बचपन गुजारती है और जब ओलंपिक में पहुंचती है और सफलता की नई कहानी लिख देती है। उसका नाम है जुलियन अल्फ्रेड जो आज सौ मीटर की रेस की ओलंपिक चैंपियन है।

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