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‘ऑपरेशन महादेव’ में मारे गए पहलगाम हमले के आतंकी पाकिस्तानी नागरिक थे, मिले ठोस सबूत

नई दिल्ली: सुरक्षा एजेंसियों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि 28 जुलाई को श्रीनगर के बाहरी इलाके में ‘ऑपरेशन महादेव’ के दौरान मारे गए तीनों आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे। बायोमेट्रिक डेटा और पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों से यह बात साबित हुई है। समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मारे गए इन आतंकियों की पहचान लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के वरिष्ठ कमांडरों के रूप में हुई है, जो 22 अप्रैल को पहलगाम के बैसारन मैदान में हुए आतंकी हमले के बाद से दाचीगाम-हरवान वन क्षेत्र में छिपे हुए थे। इस हमले में 26 नागरिकों की मौत हो गई थी। जांच में यह भी पुष्टि हुई है कि इसमें कोई भी स्थानीय कश्मीरी शामिल नहीं था।

सुरक्षा एजेंसियों द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों ने उनकी पाकिस्तानी पहचान को निर्णायक रूप से स्थापित किया है। यह पहली बार है जब पहलगाम हमले के हमलावरों की नागरिकता साबित करने वाले पाकिस्तानी सरकार द्वारा जारी किए गए दस्तावेज मिले हैं। मारे गए आतंकियों से पाकिस्तान के चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए दो लैमिनेटेड वोटर स्लिप बरामद हुए, जो लाहौर (NA-125) और गुजरांवाला (NA-79) की मतदाता सूचियों से मेल खाते हैं।

इसके अलावा, एक क्षतिग्रस्त सैटेलाइट फोन से एक माइक्रो-एसडी कार्ड मिला, जिसमें पाकिस्तान के नेशनल डेटाबेस और रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (NADRA) से जुड़ा डेटा था। इसमें उंगलियों के निशान, चेहरे के स्कैन और परिवार के सदस्यों की जानकारी थी, जिससे पाकिस्तान के कसूर जिले के चंगा मंगा और पीओके के कोइयां गांव में उनके पते की पुष्टि हुई। उनके पास से कराची में बनी ‘कैंडीलैंड’ और ‘चोकोमैक्स’ चॉकलेट के रैपर भी मिले, जिनका लॉट नंबर मई 2024 में पीओके के मुजफ्फराबाद भेजी गई एक खेप से मेल खाता था।

मारे गए आतंकियों की पहचान

मारे गए आतंकियों की पहचान सुलेमान शाह उर्फ फैजल जट्ट, अबू हमजा उर्फ अफगान और यासीर उर्फ जिब्रान के रूप में हुई। सुलेमान शाह हमले का मास्टरमाइंड और मुख्य शूटर था, जबकि बाकी दोनों भी ए-ग्रेड कमांडर थे। जांच से पता चला है कि ये तीनों आतंकी मई 2022 में उत्तरी कश्मीर के गुरेज सेक्टर से भारत में घुसपैठ कर गए थे। 21 अप्रैल को, उन्होंने बैसारन से 2 किमी दूर एक मौसमी झोपड़ी में शरण ली। पूछताछ में पकड़े गए दो स्थानीय लोगों, परवेज और बशीर अहमद जोथर ने हमलावरों को रात में आश्रय और भोजन देने की बात कबूल की है। जीपीएस डेटा से पता चला कि आतंकियों ने हमला करने के बाद दाचीगाम के जंगलों की ओर भागकर वहीं शरण ली थी, जहां 28 जुलाई को वे सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए।

फॉरेंसिक और तकनीकी सबूतों से भी इसकी पुष्टि हुई। बैलस्टिक विश्लेषण में यह साबित हुआ कि बैसारन हमले की जगह से बरामद 7.62×39 मिमी के खोल का मिलान आतंकियों के पास से मिली तीन एके-103 राइफलों से हुआ। इसके साथ ही, पहलगाम में मिली एक फटी हुई शर्ट पर खून का डीएनए, मारे गए तीनों आतंकियों के डीएनए प्रोफाइल से पूरी तरह मेल खाता है। हमलावरों द्वारा इस्तेमाल किया गया एक सैटेलाइट फोन हर रात एक सैटेलाइट के साथ संपर्क में था, जिससे उनकी छिपी हुई जगह को ट्रैक किया जा सका।

जांच में यह भी सामने आया है कि लश्कर के दक्षिण कश्मीर ऑपरेशंस का प्रमुख साजिद सैफुल्लाह जट्ट पाकिस्तान से इन आतंकियों का हैंडलर था, जिसके वॉइस सैंपल, सैटेलाइट फोन से मिली बातचीत से मेल खाते हैं। 29 जुलाई को लश्कर के रावलकोट प्रमुख रिजवान अनीस ने मारे गए आतंकियों के परिवारों से मुलाकात की और उनकी ग़ाएबाना नमाज़-ए-जनाज़ा का आयोजन किया। इस घटना के फुटेज को भारत के आधिकारिक डोजियर में शामिल किया गया है। शुरू में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कुछ अलग लोगों के स्केच जारी किए थे, लेकिन बाद में एनआईए ने स्पष्ट किया कि वे स्केच एक असंबद्ध मुठभेड़ से मिली तस्वीरों पर आधारित थे, और असली हमलावर वे तीन लोग थे जिन्हें ऑपरेशन महादेव में मार गिराया गया।

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