North Bengal landslides: दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में लगातार भारी बारिश और भूस्खलन से मरने वालों की संख्या 24 हो गई है जबकि कई लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं। वहीं, हजारों पर्यटक कटे-पड़े पहाड़ी इलाकों में फंसे हुए हैं। राहत और बचाव टीमें लगातार अभियान में जुटी हैं, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि मौतों की वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है।
उत्तर बंगाल विकास मंत्री उदयन गुहा ने बताया कि रविवार रात देर से एक और शव बरामद होने के बाद मौतों की संख्या बढ़ गई। उन्होंने कहा, “स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। कई लोग अब भी लापता हैं और मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है। लगातार बारिश राहत कार्यों में बाधा डाल रही है।”
राज्यपाल ने बनाया रैपिड एक्शन सेल, फंसे पर्यटकों की मदद जारी
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राजभवन में एक रैपिड एक्शन सेल की स्थापना की है। यह सेल प्रभावित इलाकों और फंसे पर्यटकों की शिकायतों और मदद की अपीलों का तुरंत जवाब देने का काम करेगा। इसके लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर और ईमेल आईडी जारी की गई है ताकि लोग सीधे संपर्क कर सकें।
राजभवन के भीतर पहले से मौजूद ‘पीस रूम’ को भी अस्थायी राहत शिविर में बदल दिया गया है, जहां से बचाए गए लोगों को कोलकाता लाया जा रहा है। राज्यपाल ने मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की और लोगों से शांति बनाए रखने और प्रशासन के साथ सहयोग की अपील की।
अधिकारीयों के अनुसार, केवल 12 घंटे में 300 मिलीमीटर से अधिक बारिश ने दार्जिलिंग की पहाड़ियों और उनके तलहटी इलाके डूअर्स में तबाही मचाई। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में मिरिक, सुखियापोखरी और जोरेबंगलो (दार्जिलिंग) और नागरकाटा (जलपाईगुड़ी) शामिल हैं।
राहत कार्यों का नेतृत्व राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) कर रहा है। भारी मशीनरी का उपयोग करते हुए टीमें मलबे के नीचे फंसे लोगों की तलाश कर रही हैं। अधिकारीयों ने बताया कि 40 से अधिक भूस्खलन स्थलों पर सफाई और राहत अभियान जारी है और मिरिक-दार्जिलिंग और सुखियापोखरी मार्गों को खोलने के लिए लगातार काम किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दौरा, पर्यटकों को न छोड़ने के निर्देश
दुर्गा पूजा की छुट्टियों के लिए पहाड़ियों में आए सैकड़ों पर्यटक अब भी फंसे हैं, क्योंकि सिलिगुड़ी से जुड़ी मुख्य सड़कें बाधित हैं। अधिकारियों ने बताया कि उन्हें वैकल्पिक मार्गों से सिलिगुड़ी पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दार्जिलिंग, कालिंपोंग, जलपाईगुड़ी और कूच बिहार जिलों में भारी से बहुत भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। बारिश मंगलवार सुबह तक जारी रहने की संभावना है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को उत्तर बंगाल जाने का कार्यक्रम बनाया है ताकि हालात का जायजा लिया जा सके। उन्होंने बताया कि कई पर्यटक अब भी पहाड़ी इलाकों में फंसे हुए हैं।
उन्होंने कहा, “मैंने पर्यटकों से कहा है कि फिलहाल जहां हैं, वहीं रहें। प्रशासन उन्हें सुरक्षित निकालने की पूरी कोशिश कर रहा है। साथ ही यह भी निर्देश दिया गया है कि होटल और लॉज संचालक संकट के इस समय में उनसे अतिरिक्त शुल्क न वसूलें।”
इस बीच तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे राहत कार्यों में प्रशासन की मदद करें और प्रभावित परिवारों को हरसंभव सहयोग दें।
जिला प्रशासन ने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) और स्थानीय एनजीओ के सहयोग से राहत शिविर स्थापित किए हैं। सभी विस्थापित परिवारों को खाद्य सामग्री, कंबल, दवाइयां और पीने का पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।
जीटीए के एक अधिकारी ने बताया कि कई गांवों तक सड़क संपर्क अभी भी बाधित है। पूरे ढलान धंस गए हैं, पुल बह गए हैं और बड़ी सड़कें कीचड़ में दब गई हैं। कुछ आंतरिक गांवों तक पहुंचने के लिए हेलीकॉप्टर की आवश्यकता पड़ सकती है।
दार्जिलिंग की त्रासदी की पुरानी कहानी
दार्जिलिंग की सुंदरता और मौसम जितने प्रसिद्ध हैं, प्राकृतिक आपदाओं का उसका इतिहास भी उतना ही पुराना है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रिकॉर्ड बताते हैं कि 1899, 1934, 1950, 1968, 1975, 1980, 1991, 2011 और 2015 में बड़े भूस्खलन हुए। 1968 की अक्टूबर बाढ़ में एक हजार से अधिक लोगों की जान गई थी। ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ की 1991 की रिपोर्ट के मुताबिक, 1902 से 1978 के बीच तीस्ता घाटी में नौ बार बादल फटने की घटनाएं हुईं।
विशेषज्ञों के मुताबिक आज आपदाओं का जोखिम पहले से कहीं ज्यादा है, क्योंकि प्राकृतिक और मानव-निर्मित दोनों कारण मिलकर खतरे को ज्यादा बढ़ा रहे हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो मैदानों और पड़ोसी देशों से भारी पलायन हुआ है, जिससे पहाड़ों की जमीन पर बेतहाशा निर्माण हुआ। पहले बारिश मई से सितंबर तक फैलती थी, अब कुछ ही दिनों में तेज़ और लगातार मूसलाधार बारिश होती है, जिसे स्थानीय लोग ‘मूसलधारे वर्षा’ कहते हैं।
नदियों और झरनों का रुख बदल गया है, जिससे पानी नई जगहों पर घुस रहा है और बस्तियों को नुकसान पहुंचा रहा है। हाइड्रोपावर, रेल और होटल जैसी परियोजनाओं ने पहाड़ों की वहन क्षमता पर भारी दबाव डाला है। अनियोजित और अवैध निर्माणों ने नदी किनारों और जलधाराओं को पाट दिया है, जिससे जल निकासी रुक जाती है और हर साल तबाही बढ़ती जा रही है।