Noble Prize 2025 Physics: रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने भौतिकी के क्षेत्र में इस साल दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार का ऐलान कर दिया है। अमेरिका के जॉन क्लार्क, मिशेल एच. डेवोरेट और जॉन एम. मार्टिनिस को ‘मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और इलेक्ट्रिक सर्किट में ऊर्जा क्वांटाइजेशन’ के लिए 2025 का फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया गया है। इनके नामों का ऐलान मंगलवार को किया गया। इन्हें 10 दिसंबर को आयोजित एक समारोह में यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
क्यों दिया जा रहा इन्हें नोबेल पुरस्कार?
अगर आपको लगता है कि ‘क्वांटम फिजिक्स’ ऐसा कुछ है जो केवल प्रयोगशाला के अंदर ही हो सकता है तो आप गलत हो सकते हैं। अमेरिका के इन तीन वैज्ञानिकों ने 2025 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार यही साबित करने पर जीता है कि क्वांटम दुनिया के अजीब नियम और क्वांटम इफेक्ट बड़े पैमाने पर भी दिखाई दे सकते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए आपको सबसे पहले क्वांटन टनलिंग के बारे में जानना होगा। ये वो प्रक्रिया है जिसमें कोई कण किसी बैरियर या बाधा के आर-पार होकर निकल जाता है। उदाहरण के तौर पर जब हम कोई गेंद दीवार पर फेंकते हैं तो वो वापस टकराकर आती है, या फिर ऊपर से दीवार पार कर सकती है। लेकिन अगर ये दीवार के आर-पार निकल जाए तो इसे क्वांटम टनलिंग कहते हैं। सामान्य भौतिकी के नियम के अनुसार ये संभव नहीं है, लेकिन क्वांटम मैकेनिक्स की दुनिया में बेहद छोटे कण ऐसा कर सकते हैं।
उस दुनिया में चीजें आम तर्क से नहीं चलतीं। कण एक साथ दो जगहों पर हो सकते हैं, बाधाओं को पारकर निकल सकते हैं या कहीं से भी प्रकट हो सकते हैं। दशकों तक, वैज्ञानिकों का मानना था कि ये सब केवल परमाणुओं और इलेक्ट्रॉनों के लिए ही संभव हैं। बड़ी, मानव निर्मित वस्तुओं के लिए ये नहीं हो सकता। लेकिन जॉन क्लार्क, मिशेल एच. डेवोरेट और जॉन एम. मार्टिनिस ने सुपरकंडक्टर से एक छोटा इलेक्ट्रिक सर्किट बनाया और दिखाया कि यह एक विशाल क्वांटम कण की तरह व्यवहार कर सकता है। उनके प्रयोग ने साबित किया कि क्वांटम प्रभाव केवल कणों या सब-एटोमिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि बड़ी प्रणालियों में भी मौजूद हो सकते हैं।
नोबेल समिति ने इन वैज्ञानिकों की खोज पर और क्या बताया?
क्वांटम मैकेनिक्स टनलिंग नाम की प्रक्रिया का उपयोग करके एक कण किसी बैरियर या अवरोध से होकर सीधी गति से आरपार हो सकता है। जब बड़ी संख्या में कण शामिल होते हैं, तो क्वांटम प्रभाव आमतौर पर महत्वहीन हो जाते हैं। पुरस्कार समिति के अनुसार पुरस्कार विजेताओं के प्रयोगों ने प्रदर्शित किया कि क्वांटम गुणों को बड़े पैमाने पर भी बनाया जा सकता है।
साल 1984 और 1985 में जॉन क्लार्क, मिशेल एच. डेवोरेट और जॉन एम. मार्टिनिस ने सुपरकंडक्टर (ऐसे पदार्थ जो बिना विद्युत प्रतिरोध रुकावट करंट दौड़ा सकते हैं) से बने एक इलेक्ट्रिक सर्किट पर कई प्रयोग किए। सर्किट में, सुपरकंडक्टरों के बीच एक पतली परत रखी गई थी। इसे जोसेफसन जंक्शन कहा गया। दिलचस्प ये रहा कि सर्किट में सभी चार्ज कणों ने मिलकर ऐसा व्यवहार किया कि वे मानों एक ही कण हैं और ये परत पार कर दूसरी ओर जा सकते थे। यह क्वांटम टनलिंग का सबूत था।
भौतिकी के लिए नोबेल समिति के अध्यक्ष ओले एरिक्सन के अनुसार, ‘यह अद्भुत है कि हम इस बात का जश्न मना पा रहे हैं कि सदियों पुरानी क्वांटम मैकेनिक्स किस तरह लगातार नए आश्चर्य प्रस्तुत करती है। यह अत्यंत उपयोगी भी है, क्योंकि क्वांटम मैकेनिक्स सभी डिजिटल प्रौद्योगिकी का आधार है।’
फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज की ओर से दिया जाता है। इसके तहत 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन या 1.2 मिलियन डॉलर (10 करोड़) की राशि शामिल होती है, जो अक्सर कई विजेताओं के बीच बांटी जाती है।