नई दिल्ली: वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को साल 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है। नोबेल समिति की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 2025 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार मारिया कोरिना मचाडो को ‘वेनेजुएला के लोगों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने के उनके अथक कार्य और देश को शांतिपूर्ण तरीके से तानाशाही से लोकतंत्र की ओर ले जाने के उनके संघर्ष के लिए’ देने का निर्णय लिया है।
इसमें आगे कहा गया है, ‘पिछले सालों में मचाडो को छिपकर रहने पर मजबूर होना पड़ा है। अपनी जान को गंभीर खतरों के बावजूद, वह देश में ही रहीं। इस फैसले ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है। उन्होंने अपने देश के विपक्ष को एकजुट किया है। वे वेनेजुएला के समाज के सैन्यीकरण का विरोध करने में कभी पीछे नहीं हटीं। वे देश के लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण कदम के अपने समर्थन में अडिग रही हैं।’
मचाडो को दरअसल वेनेजुएला में पिछले वर्ष के चुनाव के बाद से छुपना पड़ा था, जिसमें कथित तौर पर वर्तमान राष्ट्रपति निकोलस मादुरो द्वारा धांधली करने के आरोप लगे थे।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 58 साल की मचाडो वेनेजुएला के पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान राजनीतिक क्षेत्र में अपनी अलग आवाज के लिए जानी जाती हैं। टाइम मैगजीन ने 2025 में दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में इन्हें शामिल किया है।
मारिया कोरिना मचाडो कौन हैं?
7 अक्टूबर, 1967 को जन्मी मारिया कोरिना मचाडो ‘वेंटे वेनेजुएला पार्टी’ की नेता हैं। वह एक इंडस्ट्रियल इंजीनियर हैं और वेनेजुएला में विपक्ष की वर्तमान नेता हैं। फोर्ब्स के अनुसार, वेनेजुएला की यह नेता और कार्यकर्ता खुद को मारिया कोरिना कहलाना पसंद करती है। राजनीति में कदम रखने से पहले मारिया एक एनजीओ- ‘सुमाते’ की संस्थापकों में से एक थीं।
मारिया कोरिना 2013 में स्थापित उदार विचारधारा माने जाने वाले राजनीतिक संगठन- ‘वेंटे वेनेजुएला’ की राष्ट्रीय समन्वयक हैं और इसकी संस्थापक सदस्य भी हैं। वे 2011 से 2014 तक नेशनल असेंबली की सदस्य भी रहीं। अपने पूरे करियर के दौरान मचाडो मानवाधिकारों की प्रबल समर्थक रही हैं और वेनेजुएला में सत्तावादी शासन को चुनौती देने के उनके प्रयासों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है।
2024 का वेनेजुएला का राष्ट्रपति चुनाव
साल 2024 के वेनेजुएला राष्ट्रपति चुनाव में मारिया कोरिना मचाडो को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। हालाँकि उन्हें विपक्षी प्राइमरी में 92% से ज्यादा वोट मिले थे। अयोग्य ठहराए जाने के बाद, उन्होंने एक अन्य विपक्षी नेता एडमंडो गोंजालेज का समर्थन किया। इसके बाद सभी विपक्षी दल और लाखों लोगों ने निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जमकर मेहनत की। उत्पीड़न, गिरफ्तारी और तमाम तरह की यातना के जोखिम के बावजूद देश भर के नागरिकों और कार्यकर्ताओं ने ही खुद मतदान केंद्रों पर नजर रखी ताकि कोई धांधली नहीं हो सके। इनकी कोशिश थी कि अंतिम नतीजों तक हेरफेर करने की किसी भी कोशिश को खत्म किया जाए।
नोबेल समिति के अनुसार चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान, सामूहिक विपक्ष के प्रयास साहसिक, शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक थे। विपक्ष को अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी तब मिला जब उसके नेताओं ने देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित मतों की गणना और नतीजों को सामने रखा, जिसमें दिखाया गया था कि विपक्ष स्पष्ट अंतर से जीत गया है। हालांकि शासन ने चुनाव परिणाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सत्ता नहीं छोड़ी।
नोबेल समिति ने अपने बयान में कहा है कि ‘वेनेजुएला एक लोकतांत्रिक और समृद्ध देश से अब एक क्रूर, सत्तावादी राज्य में बदल गया है जो अब मानवीय और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। अधिकांश वेनेजुएलावासी घोर गरीबी में जी रहे हैं, जबकि शीर्ष पर बैठे कुछ लोग खुद को समृद्ध बनाए जा रहे हैं। राज्य की हिंसक मशीनरी देश के अपने ही नागरिकों के खिलाफ काम कर रही है। लगभग 80 लाख लोग देश छोड़ चुके हैं। चुनाव में धांधली, कानूनी मुकदमे और जेल के माध्यम से विपक्ष को व्यवस्थित रूप से दबाया गया है।’