Wednesday, September 10, 2025
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चीन के दौरे से लौटे थे ओली, इसी महीने भारत आना था…नेपाल में बवाल के पीछे बाहरी ताकतों का भी हाथ?

नेपाल को देखा जाए तो ये भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। पिछले एक साल में नेपाल दरअसल भारत के पड़ोसियों में दूसरा ऐसा देश बन गया है जो राजनीतिक अशांति का सामना कर रहा है।

नेपाल में Gen Z यानी युवाओं के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर सोमवार से जारी विरोध प्रदर्शन ने भयावह रूप ले लिया है। प्रधानमंत्री केपी ओली से लेकर राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल को इस्तीफा देना पड़ा है। प्रदर्शनकारी संसद से लेकर कई सरकारी इमारतों में घुस आए हैं। हालांकि, जिस तरह विरोध प्रदर्शन फैला है, उसकी टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। देशव्यापी विरोध प्रदर्शन दूसरे दिन भी जारी रहा।

सोमवार को यह प्रदर्शन मुख्य रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंधों तक नजर आ रहा था लेकिन अब एक तरह से यह प्रदर्शन इस्तीफा दे चुके नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ लक्षित नजर आ रही हैं। वे अभी कुछ दिन पहले ही चीन से लौटे हैं और सितंबर के अंत में भारत की यात्रा पर आने वाले थे। सोमवार को हुए विरोध प्रदर्शनों में कम से कम 20 लोग मारे गए थे। कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। नेपाली मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार ओली एक सर्वदलीय बैठक भी मंगलवार शाम करने जा रहे है।

इस पूरे प्रदर्शन का बड़ा रूप लेने के पीछे अहम कारण ओली सरकार द्वारा सोशल मीडिया एप पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय था। लेकिन इन हंगामों के बीच यह जानना भी दिलचस्प है कि ‘नेपो किड्स’ और ‘नेपो बेबीज’ जैसे शब्द भी पिछले लगभग एक सप्ताह तक यहां ट्रेंड करते रहे थे। यह एक तरह से संकेत भी है कि ऐसे हंगामे और प्रदर्शन की एक जमीन तैयार हो रही थी।

Kathmandu: Smoke billows out from a building as people protest against corruption and the government’s ban on social media platforms in Kathmandu, Nepal, on Tuesday, September 9, 2025. (Photo: IANS)

नेपाल में हंगामे के लिए कोई दूसरा देश जिम्मेदार?

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार नेपाल, सार्क और चीन-तिब्बत मामलों को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार केशव प्रधान ने कहा, ‘ये विरोध प्रदर्शन फिलहाल खुद से शुरू हुए प्रतीत होते हैं और फिलहाल यह अनुमान लगाना समझदारी नहीं होगी कि इनमें कोई तीसरी शक्ति शामिल है या नहीं। लेकिन नेपाल में लंबे समय से चल रही अस्थिर स्थिति का फायदा विभिन्न आंतरिक और बाहरी ताकतों द्वारा उठाया जा सकता है।’

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प्रधान नेपाल में प्रदर्शनकारियों द्वारा लिए गए तख्तियों और नारों की ओर भी इशारा करते हैं। वे कहते हैं, ‘वे भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, बेरोजगारी और भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर बड़े पैमाने पर पलायन के बारे में ज्यादा बात कर रहे हैं। गुस्सा पनप रहा था और यह अचानक नहीं हुआ।’ उन्होंने आगे कहा, ‘नेपाल के कई युवा यूट्यूबर गड्ढों से लेकर पलायन तक के मुद्दों पर ओली सरकार की पोल खोल रहे थे।’

हालांकि, प्रधान इसका भी जिक्र करते हैं कि विरोध प्रदर्शन का समय ओली के चीन से लौटने और सितंबर में उनकी प्रस्तावित भारत यात्रा से ठीक पहले का है। प्रधान नेपाल पर करीब से नजर रखने वाले पत्रकार रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘ओली इस महीने के अंत में भारत आने वाले थे और उस यात्रा से पहले भारत के विदेश सचिव नेपाल में थे। ओली अभी हाल में तियानजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद चीन से लौटे हैं।’

नेपाल में बांग्लादेश जैसे हालात

नेपाल को देखा जाए तो ये भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। पिछले एक साल में नेपाल दरअसल भारत के पड़ोसियों में दूसरा ऐसा देश बन गया है जो राजनीतिक अशांति का सामना कर रहा है। पिछले साल यानी जुलाई-अगस्त-2024 में बांग्लादेश में छात्रों के व्यापक विरोध प्रदर्शन के बाद भारत समर्थक नेता मानी जाने वाली प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को हटना पड़ा था। शेख हसीना को बांग्लादेश से छोड़ना पड़ा।

बांग्लादेश की तरह नेपाल भी उसी राह पर जाता नजर आ रहा है। वैसे नेपाल में विभिन्न बाहरी ताकतों के बीच रस्साकशी नई बात नहीं है। ओली के नेतृत्व में, नेपाल ने दिसंबर 2024 में चीन की बेल्ट एंड रोड्स पहल में शामिल होने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किया था। यह तब हुआ जब अमेरिका मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) के नेपाल कॉम्पैक्ट के माध्यम से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में लगभग 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है।

Kathmandu: Youth take part in a protest against corruption and the government’s ban on social media platforms at the Nepal Parliament in Kathmandu, Nepal, Tuesday, September 09, 2025. (Photo: IANS)

पिछले महीने भारत और चीन की ओर से उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होकर व्यापार मार्ग खोलने के बाद प्रधानमंत्री ओली ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कहा था कि यह नेपाली क्षेत्र है। जबकि, यह भारतीय क्षेत्र में आता है और भारत का अभिन्न अंग है। 2015 के बाद से किसी नेपाली नेता द्वारा चीनी राष्ट्रपति के समक्ष इस तरह का ऐसा पहला बयान था।

ओली का यह विरोध उत्तराखंड में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा पर उनके 2020 में आए विरोध के बाद फिर आया है। उन्होंने 1816 की सुगौली संधि के आधार पर इन इलाकों को नेपाली क्षेत्र होने का दावा किया था। तब भारत और नेपाल के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे।

ओली इसी महीने आने वाले थे भारत

जुलाई 2024 में नेपाल के प्रधानमंत्री का पदभार संभालने वाले ओली मुख्य रूप से चीन समर्थक माने जाते रहे हैं। कम्युनिस्ट नेता हैं। यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि पदभार ग्रहण करने के एक साल से भी ज्यादा समय बाद भी, ओली ने अभी तक भारत का दौरा नहीं किया है।

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विशेषज्ञों का मानना ​​है कि प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए ओली का चीन को चुनना, परंपरा से हटकर रहा। इससे पहले नेपाली प्रधानमंत्री पारंपरिक रूप से सबसे पहले भारत का दौरा करते रहे हैं। यह साफ तौर पर ओली के बीजिंग के प्रति उनके झुकाव को दिखाता है।

अभी हाल में भारतीय विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, 17 अगस्त को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने नेपाल का दौरा किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से प्रधानमंत्री ओली को पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तिथियों पर भारत आने का औपचारिक निमंत्रण सौंपा।

रिपोर्टों के अनुसार ओली की भारत यात्रा 16 सितंबर को निर्धारित थी। वरिष्ठ पत्रकार प्रधान के अनुसार, ‘जब भी नेपाल में कोई राजनीतिक संकट शुरू होता है, तो लोग उसे भारत या चीन से जोड़ने की कोशिश करते हैं। इस साल की शुरुआत में हुए राजशाही समर्थक विरोध प्रदर्शनों को भारत से जोड़ने की चर्चा खूब चल रही थी।’

Kathmandu: Gen Z group clashes with police near the Federal Parliament building during a protest against corruption and the government’s ban on social media platforms, in Kathmandu, Nepal, on Monday, September 8, 2025. (Photo: IANS)

विशेषज्ञों के अनुसार ओली अक्सर भारत-नेपाल संबंधों की तुलना चीन के साथ संबंधों से करने की कोशिश करते हैं। जबकि नेपाल और भारत के रिश्ते सदियों पुराने और कहीं गहरे हैं। वैसे भी ऐतिहासिक रूप से नेपाल की सीमा भारत और तिब्बत से लगती थी, चीन से नहीं।

फिर नेपाल में अभी जारी बवाल के पीछे कौन?

नेपाल में प्रदर्शनकारियों के पीछे कौन है, इस बारे में हर किसी की अपनी थ्योरी है। चीजें स्पष्ट नहीं हैं। कुछ लोग ओली को चीन समर्थक मानते हैं और बांग्लादेश की तरह इसमें भी अमेरिका की भूमिका देखते हैं, तो वहीं कुछ का मानना है कि वाशिंगटन के एमसीसी निवेश के कारण बीजिंग विरोध प्रदर्शनों को हवा दे रहा है।

इसके अलावा कुछ लोग नेपाली नेपो किड्स (प्रभावशाली लोगों के परिवार) के खिलाफ जेन-जी प्रोटेस्ट को राजशाही समर्थक आंदोलनकारियों से जोड़ रहे हैं, जिन्हें भारत समर्थक भी माना जाता है। नेपाल एक ऐसा क्षेत्र भी बन गया है जहाँ चीन के बीआरआई और अमेरिका के एमसीसी फंडिंग के कारण अंतरराष्ट्रीय टकराव जैसी स्थिति बनती रही हैं।

बताते चलें कि 2008 में नेपाल में राजशाही के अंत के बाद से यहां 13 सरकारें आ चुकी हैं। अभी तक सभी सरकारों ने आम जनता को निराश ही किया। भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा रहा है। वैसे ये भी कहा जाता रहा है कि नेपाल में कई बार हुए सत्ता परिवर्तन न केवल घरेलू संकट से, बल्कि बाहरी ताकतों से भी जुड़े रहे हैं। अभी ओली के खिलाफ प्रदर्शनों का व्यापक रूप लेना और देखते ही देखते पूरे देश में उग्र तरीके से फैल जाना, जाहिर तौर पर कई सवाल खड़े करता है।

यह भी पढ़ें- नेपाल का जेन-जी प्रोटेस्ट क्या है? 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन से देश में उबाल, क्या है पूरा मामला

विनीत कुमार
विनीत कुमार
पूर्व में IANS, आज तक, न्यूज नेशन और लोकमत मीडिया जैसी मीडिया संस्थानों लिए काम कर चुके हैं। सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची से मास कम्यूनिकेशन एंड वीडियो प्रोडक्शन की डिग्री। मीडिया प्रबंधन का डिप्लोमा कोर्स। जिंदगी का साथ निभाते चले जाने और हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाली फिलॉसफी में गहरा भरोसा...
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