Thursday, October 9, 2025
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विरासतनामा: नाजी वास्तुकला- जब इमारतें बोलती थीं राजनीति की भाषा

नाजी दौर की वास्तुकला के अवशेष आज इतिहास की एक गूंज की तरह खड़े हैं। ये भव्य संरचनाएँ दिखाती हैं कि पत्थर और इस्पात केवल सौंदर्य या उपयोगिता ही नहीं, बल्कि विचारधारा और सत्ता के प्रतीक भी बन सकते हैं।

नाज़ी वास्तुकला, एडॉल्फ हिटलर के नाज़ी शासन द्वारा 1933 से 1945 में नाज़ियों के पतन तक प्रचारित वास्तुकला और शहरी नियोजन को दिया गया नाम है।

यह दिलचस्प है कि हिटलर ने वास्तुकला को नाज़ी विचारों के प्रचार के एक साधन के रूप में कैसे इस्तेमाल किया। वास्तुकला में हिटलर की रुचि उसकी शिक्षा के दिनों से ही थी। वियना स्थित चित्रकला अकादमी में प्रवेश परीक्षा में असफल होने के बाद, उसने सितंबर 1907 में वास्तुकला विद्यालय में दाखिला लेने की कोशिश की, लेकिन फिर भी उसे सफलता नहीं मिली।

लेकिन वर्षों बाद, एक तानाशाह के रूप में, हिटलर ने अपनी अंतर्निहित वास्तुकला कौशल का इस्तेमाल किया, यह अच्छी तरह जानते हुए कि केवल शक्तिशाली लोग ही वास्तुकला को शक्ति के साधन के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। एक बार उसने युद्ध से पहले स्वीकार किया था, “अगर जर्मनी युद्ध नहीं हारता, तो मैं एक महान वास्तुकार बन जाता : एक राजनेता के बजाय माइकलेंजेलो जैसा कुछ।” हालाँकि हिटलर एक अनुभवी वास्तुकार नहीं था, लेकिन तानाशाह सरकार के मुखिया के रूप में, वह अपनी प्रतिभा के अनुकूल परियोजनाओं का आदेश देने और उन्हें साकार करने की स्थिति में था। उसे बस उन्हें क्रियान्वित करने के लिए एक वास्तुकार की आवश्यकता थी।

उसने अपने कई विचारों को साकार करने के लिए एक ‘निर्माण कार्यालय’ भी बनाया। हिटलर ने यह सुनिश्चित किया कि नए जर्मनी के लिए एक शाही वास्तुकला के निर्माण में जनशक्ति, सामग्री और वित्तीय संसाधनों की कोई कमी न हो।

नाज़ी वास्तुकला की शैली

नाज़ीवादी इमारतों की वास्तुकला दो मुख्य विचारों पर आधारित थी : राष्ट्रवाद और सामूहिकता (कम्युनिटी)।

हिटलर के प्रमुख वास्तुकार अल्बर्ट श्पीयर के डिज़ाइन इस शैली से प्रेरित भी थे। इन पर जर्मन नव-शास्त्रीय वास्तुकला (Neoclassicism) और प्राचीन यूनान की इमारतों का गहरा असर था।

नाज़ी वास्तुकला एक ऐसा प्रयोग था, जो नाज़ी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए भी बनाया गया था। इसमें भव्यता के साथ सादगी मगर शक्ति का प्रदर्शन होता था। इसका उद्देश्य आम इंसान में डर और चमत्कार, दोनों पैदा करना था ताकि व्यक्ति खुद को छोटा और नाज़ी शासन को विशाल महसूस करे।

श्पीयर की इमारतों में बहुत बड़े पैमाने पर नव-शास्त्रीय तत्व (neoclassical elements) शामिल किए जाते थे, ताकि यह दिखाया जा सके कि नाज़ी राज्य चिरस्थाई और बेहद ताक़तवर है। दूसरी तरफ़, कुछ प्रोजेक्ट्स के लिए साधारण और कामकाजी (यूटिलिटेरियन) शैली भी अपनाई जाती थी।

हिटलर चाहता था कि इमारतें न केवल लंबे समय तक काम आएँ, बल्कि शासन खत्म होने के बाद भी उनके खंडहर (ruins) देखकर लोग उसकी विरासत याद रखें।

नाज़ी वास्तुकला में बहुत बड़े आकार, स्टील, पत्थर, कंक्रीट और रोशनी का उपयोग होता था, लेकिन सजावट लगभग न के बराबर होती थी। श्पीयर और हिटलर मानते थे कि वास्तुकला में “आकार काम के हिसाब से होना चाहिए” (Form Follows Function), इसलिए इमारतों में सजावट नहीं की जाती थी। बस कभी-कभी स्वस्तिक का चिन्ह इस्तेमाल होता था। इस शैली को “Stripped Architecture” भी कहा जाता है। इस तरह, नाज़ी इमारतों ने यूनानी और रोमन शैली की भव्यता तो उधार ली, लेकिन देवताओं और राजाओं की मूर्तियों जैसी सजावट हटा दी।

हिटलर की शहरी परियोजना (Urban Planning)

हिटलर ने बर्लिन को फिर से खड़ा करने का सपना देखा था। उसका इरादा था कि जर्मनी की राजधानी को एक नई वैश्विक राजधानी बनाया जाए, जिसे वह “जर्मानिया, विश्व राजधानी” कहता था। इस योजना के तहत बर्लिन के बड़े हिस्से को पूरी तरह तोड़कर फिर से बनाया जाना था। ब्लॉक दर ब्लॉक और मोहल्ला दर मोहल्ला गिराकर वहाँ चौड़ी सड़कें, विशाल चौक (plaza) और ऐसे खुले मैदान बनाए जाने थे जहाँ आम जनता की ताक़त और नाज़ी सेना की शक्ति का प्रदर्शन किया जा सके।

जगह बनाने के लिए बर्लिन की हज़ारों एकड़ जमीन खाली कराई जानी थी। हिटलर को इसकी लागत या इंसानों की तकलीफ़ की कोई परवाह नहीं थी।

इस योजना की शुरुआत लोगों को हटाने (relocations) से हुई। हज़ारों लोगों को अपने घर और ज़मीन छोड़नी पड़ी। यह काम सामाजिक दर्ज़े और ताक़त के हिसाब से किया गया: अमीर लोग यहूदी मध्यमवर्गीय परिवारों के घरों में बसाए गए, जबकि यहूदियों को निशानज़द करने के लिए पीले डेविड के सितारे पहनने पर मजबूर किया गया और उन्हें यहूदी बस्तियों (ghettos) और फिर कॉन्सेंट्रेशन कैंपों में भेज दिया गया।

लेकिन जर्मनी की द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद, बर्लिन और दुनिया को हिटलर के सपनों के हिसाब से बदलने की नाज़ी परियोजना भी हमेशा के लिए थम गई।

वास्तुकार ली कोर्बुज़िए का नाज़ी कनेक्शन

फ़्रांस की कुछ नवप्रकाशित पुस्तकों में मशहूर वास्तुकार ली कोर्बुज़िए पर आरोप लगाया गया है कि वे फ़ासीवादी विचारधारा से जुड़े थे। कहा जाता है कि उन्होंने फ़्रांस की “Revolutionary Fascist Party” का समर्थन किया और वे नाज़ी विचारों से भी प्रभावित थे।

ली कोर्बुज़िए ने ऐसी इमारतें बनाईं जो कंक्रीट की साधारण लेकिन उपयोगी (utilitarian) शैली की थीं, जो हिटलर के दौर की नाज़ी वास्तुकला से मिलती-जुलती थीं। उनका मानना था कि शहरों में अनुशासन और सफ़ाई होनी चाहिए और अव्यवस्थित तरीके से बने शहरों को “साफ़ और पुनर्निर्मित” करने की ज़रूरत है। उनकी सोच यह थी कि वास्तुकला और शहरी परियोजना (urban planning) इंसानों की ज़िंदगी को तेज़ और ज़्यादा उत्पादक बनाए।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ़्रांस में शहरी योजना पर उनका बड़ा असर रहा। उनके बनाए कार्यात्मक (utilitarian) अपार्टमेंट ब्लॉक्स और आसपास हरे-भरे पार्क वाली डिज़ाइन दशकों तक अपनाई गईं। उनकी सबसे प्रसिद्ध परियोजना थी ला सिते रेडियूज़ (La Cité Radieuse / Radiant City), फ्रांस के मार्से में। यह बाद में ब्रूटलिस्ट शैली (Brutalist architecture) की प्रेरणा बनी, जो 1960 के दशक में बहुत लोकप्रिय हुई।

हालाँकि, उनकी मृत्यु (1965) के लगभग आठ साल बाद यह साफ़ हुआ कि ये इमारतें नीरस और बिना पहचान वाली लगती हैं, जिनकी वजह से लोग शहरों में अलगाव (urban alienation) महसूस करने लगे।

इसके अलावा, ली कोर्बुज़िए ने “मॉड्यूलर” नाम से एक मानव पैमाना (human scale) भी बनाया था, जो उनके “आदर्श मनुष्य” पर आधारित था : एक सुंदर, एथलेटिक और छह फुट लंबा आदमी। माना जाता है कि यह दरअसल नाज़ी “आर्यन आदर्श पुरुष” की छवि पर ही आधारित था।

नाज़ी वास्तुकला के अवशेषों से मिलती सीख

नाज़ी दौर की वास्तुकला के अवशेष आज इतिहास की एक गूंज की तरह खड़े हैं। ये भव्य संरचनाएँ दिखाती हैं कि पत्थर और इस्पात केवल सौंदर्य या उपयोगिता ही नहीं, बल्कि विचारधारा और सत्ता के प्रतीक भी बन सकते हैं।

ये खंडहर हमें याद दिलाते हैं कि वास्तुकला मात्र इमारतें नहीं रचती, बल्कि समाज और मानवीय मूल्यों की दिशा भी तय कर सकती है। भविष्य के लिए यही सीख है कि हमारे शहर और इमारतें ऐसी हों, जो स्वतंत्रता, समानता और मानवीय गरिमा को मजबूत करें।

ऐश्वर्या ठाकुर
ऐश्वर्या ठाकुर
आर्किटेक्ट और लेखक; वास्तुकला, धरोहर और संस्कृति के विषय पर लिखना-बोलना।
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