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नौसेना में पहला एंटी-सबमरीन शैलो वॉटर क्राफ्ट युद्धपोत ‘अर्नाला’ शामिल, क्या है इसकी खासियत?

नई दिल्लीः भारतीय नौसेना में पहला एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट ‘आईएनएस अर्नाला’ बुधवार को औपचारिक रूप से शामिल हो गया। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान की मौजूदगी में विशाखापत्तनम के नेवल डॉकयार्ड में इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया।  

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने इस ऐतिहासिक समारोह की अध्यक्षता की। नौसेना के मुताबिक यह युद्धपोत अंडरवॉटर अकॉस्टिक कम्युनिकेशन सिस्टम व लो-फ्रीक्वेंसी वैरिएबल डेप्थ सोनार युक्त है। इस युद्धपोत में लाइटवेट टॉरपीडो, रॉकेट, एंटी-टॉरपीडो डिकॉय और माइन बिछाने के सिस्टम जैसे अत्याधुनिक हथियार लगे हैं।

क्या है ‘आईएनएस अर्नाला’ की खासियत?

आईएनएस अर्नाला 77 मीटर लंबा व 1,490 टन से अधिक वजन वाला युद्धपोत है। इसे डीजल इंजन-वॉटरजेट संयोजन द्वारा संचालित किया जाता है, जो इसे अपनी श्रेणी का सबसे बड़ा भारतीय नौसैनिक युद्धपोत बनाता है। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने भारतीय नौसेना के “खरीदार नौसेना” से “निर्माता नौसेना” बनने की ऐतिहासिक यात्रा को रेखांकित किया।

उन्होंने बताया कि आज बड़ी संख्या में युद्धपोत और सहायक पोत भारत में ही निर्माणाधीन हैं। इससे भारत एक सशक्त पोत निर्माण राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। स्वदेशी युद्धपोतों में आज उन्नत स्वदेशी तकनीकें, स्टील्थ क्षमताएं, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और अत्याधुनिक सेंसर लगे हुए हैं, जो भारत की युद्ध तैयारी को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि आईएनएस अर्नाला की यह तैनाती भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी क्षमताओं को मजबूती प्रदान करेगी। विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों और कम गहराई वाले जल क्षेत्रों में यह काफी उपयोगी हो सकता है। आईएनएस अर्नाला उन्नत तकनीकों और आधुनिक सेंसरों से सुसज्जित है। यही कारण है कि आईएनएस अर्नाला दुश्मन की पनडुब्बियों की पहचान और उन पर निगरानी रखने में पूरी तरह से सक्षम है।

अर्नाला नाम क्यों?

आईएनएस अर्नाला को नौसेना में शामिल करने के अवसर पर नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी, रक्षा उद्योग के प्रतिनिधि और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। विशाखापत्तनम में आयोजित इस समारोह की मेजबानी ईस्टर्न नेवल कमांड के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ ने की।

आईएनएस अर्नाला का नाम महाराष्ट्र के ऐतिहासिक तटीय किले पर रखा गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए भारतीय नौसेना की रणनीतिक क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

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