नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित 6 लोगों के खिलाफ नई एफआईआर दर्ज की है। यह एफआईआर प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत के आधार पर 3 अक्टूबर को दर्ज की गई।
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि लगभग 2,000 करोड़ रुपये की संपत्ति वाली एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को Young Indian कंपनी के जरिए धोखे से अपने कब्जे में लेने की एक आपराधिक साजिश रची गई।
किन पर लगे आरोप
एफआईआर में कांग्रेस नेताओं के अलावा सैम पित्रोदा, सुमन दुबे, सुनील भंडारी और कुछ कारोबारी संस्थाओं के नाम भी दर्ज हैं। जांच एजेंसियों के अनुसार Young Indian में गांधी परिवार की लगभग 76 फीसदी हिस्सेदारी है। एफआईआर में कोलकाता स्थित कथित ‘शेल कंपनी’ Dotex Merchandise का भी जिक्र है, जिसके बारे में दावा है कि उसने Young Indian को 1 करोड़ रुपये दिए। इस रकम में से 50 लाख रुपये कांग्रेस को दिए गए ताकि एजेएल का अधिग्रहण पूरा हो सके।
इस केस की शुरुआत 2012 में हुई थी, जब बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने लोकल कोर्ट में शिकायत दर्ज की। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस नेताओं ने धोखे से एजेएल का अधिग्रहण किया, जो पहले नेशनल हेराल्ड अखबार चलाती थी। नेशनल हेराल्ड की स्थापना 1938 में जवाहरलाल नेहरू और स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी। 2008 में वित्तीय संकट के कारण अखबार प्रकाशित होना बंद हो गया और उस समय कंपनी पर 90 करोड़ रुपये का कर्ज था।
कांग्रेस का क्या कहना है?
कांग्रेस का कहना है कि एजेएल को बचाने के लिए पार्टी ने दस वर्षों में करीब 100 किस्तों के जरिए 90 करोड़ रुपये का कर्ज दिया। चूंकि कंपनी यह कर्ज नहीं चुका सकी, इसलिए इसे शेयरों में बदला गया। पार्टी सीधे शेयर नहीं रख सकती थी, इसलिए 2010 में Young Indian नाम की एक नॉन-प्रॉफिट कंपनी बनाई गई और एजेएल के शेयर उसी को आवंटित किए गए।
इस कंपनी में सोनिया और राहुल गांधी की 38–38 फीसदी हिस्सेदारी बताई जाती है, जबकि बाकी शेयरों का स्वामित्व सैम पित्रोदा, मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडिस और सुमन दुबे के पास रहा।
नई एफआईआर दर्ज होने के एक दिन बाद ही दिल्ली की अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाने की तारीख 16 दिसंबर तय की है। ईडी अपनी जांच रिपोर्ट पहले ही दिल्ली पुलिस को सौंप चुकी है और अब आगे की जांच आर्थिक अपराध शाखा कर रही है। कांग्रेस इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है, जबकि एजेंसियां इसे वित्तीय हेरफेर और आपराधिक साज़िश का गंभीर मामला मानते हुए आगे बढ़ा रही हैं।

