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खबरों से आगे: जब 2013 में रावी नदी के पास माधोपुर से शुरू हुआ था मोदी का ‘दिल्ली कूच’ का अभियान

17 सितंबर 1950 को जन्मे नरेंद्र मोदी अभी अपने किशोरावस्था में थे, जब जनसंघ के दिग्गज नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी का 23 जून 1953 को श्रीनगर में निधन हो गया था। यह हिरासत में हुई मौत थी। मुखर्जी उस समय 44 दिनों से हिरासत में थे, उन्हें 11 मई को शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के आदेश पर गिरफ्तार किया गया था। मुखर्जी को रावी नदी के पश्चिमी किनारे से गिरफ्तार किया गया था, जब वे तब प्रचलित परमिट प्रणाली की अवहेलना करते हुए जम्मू और कश्मीर में प्रवेश कर गए थे। 

दशकों बाद, मोदी ने 23 जून 2013 को पंजाब के माधोपुर से दिल्ली की अपनी यात्रा शुरू की। मुखर्जी की 60वीं पुण्यतिथि के मौके को मोदी ने यह घोषणा करने के लिए चुना कि वह गुजरात के सीएम पद से आगे जाने के लिए तैयार हैं। तब मोदी को गुजरात के सीएम पद पर रहते हुए एक दशक से अधिक का समय बीत चुका था। राष्ट्रीय राजनीति में यह यात्रा 2014 के लोकसभा चुनावों से कई महीने पहले उसी साल (2013) सितंबर में भाजपा में उनके नंबर एक नेता बनने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुई।

मोदी की अनुच्छेद 370 के खिलाफ लड़ाई छेड़ने की प्रतिबद्धता ने उस दिन आरएसएस और भाजपा दोनों को प्रभावित किया। इसी लड़ाई के लिए तो मुखर्जी ने अपनी जान दे दी थी। 1953 में अनुच्छेद 370 के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करने वाले मुखर्जी को मोदी की ओर से श्रद्धांजलि ने उनके पीछे की खेमेबंदी को बंद कर दिया। भाजपा में केंद्रीय मंच पर आने के लिए यह उनका चतुर कदम था।

उस दिन से लेकर अब तक मोदी ने लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीतकर हैट्रिक बनाई है। अगर यह भाजपा द्वारा जीती गई सीटों की संख्या से मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा लगाते हैं तो इसमें उतार-चढ़ाव देखा गया है। 2014 में 282 सीट जीत हासिल करने वाली उनकी पार्टी ने 2019 में 303 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि, 2024 में यह घटकर 240 हो गया और यह जरूरी बहुमत 272 से कम था। वैसे, सीटों के आंकड़ों के मामले में यह मामूली झटका भी मोदी को नहीं रोक सका है।

पीएम मोदी की पकड़ अब भी मजबूत है…

9 जून, 2024 से, जब उन्होंने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, तब से उन्होंने जो कार्य शुरू किए हैं, वे संकेत देते हैं कि वे उतने ही मजबूत नियंत्रण में हैं, जितने वे पहले के दो कार्यकालों के दौरान थे। चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) से समर्थन मिलना मामूली बात लगती है, जिसे आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है।

मोदी को सबसे ज्यादा मदद उनके दो सबसे कटु आलोचकों या फिर अगर आप चाहें तो कह सकते हैं, दुश्मनों से मिली है। अंदरूनी तौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बाहरी तौर पर पाकिस्तान! मणिशंकर अय्यर की ‘चायवाला’ वाली टिप्पणी ने मोदी को शायद ही कोई नुकसान पहुंचाया क्योंकि उन्होंने इस कटाक्ष का भरपूर फायदा उठाया। कांग्रेस को जब तक इसका एहसास हुआ, पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव हार चुकी थी।

मार्च 2019 में मोदी ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान की टैगलाइन से राहुल के ‘चौकीदार चोर है’ नारे को उलट दिया। राहुल से नाराजगी और मोदी के प्रति सहानुभूति के कारण यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक बड़ा ट्रेंड बन गया। कांग्रेस के पास मोदी के इस रिटर्न गिफ्ट का कोई जवाब नहीं था और 2019 के चुनावों में भी पार्टी की नैया डूब गई। उस समय तक, मोदी अच्छी तरह से जान गए थे कि कांग्रेस में राहुल का शीर्ष पर होना उनकी और भाजपा की सफलता की गारंटी थी। 

पाकिस्तान, जो मोदी से नफरत दिखाने में कोई संकोच नहीं करता, उसने भी 2019 में उनकी जीत में बड़ा योगदान दिया। सितंबर 2016 में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ने मोदी के एक सख्त आदमी होने की छवि को फिर से जीवंत करने में मदद की। छप्पन इंच की छती। ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते’ वाक्य का निर्माण उसी समय से हुआ है और यह आज भी मोदी समर्थकों के दिलों में गूंजता है। 

2019 का पुलवामा का वो आतंकी हमला

जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के आत्मघाती हमलावर आदिल डार ने जब 14 फरवरी, 2019 को श्रीनगर जा रही सीआरपीएफ की बस पर हमला किया, तो मोदी बिजली की गति से आगे बढ़े। उस शाम तक सीआरपीएफ के शहीदों के पार्थिव शरीर पालम पहुंचा दिए गए और पार्टी लाइन से हटकर नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। अरविंद केजरीवाल और राहुल उन लोगों में शामिल थे जो वहां पहुंचे।

इसके दो सप्ताह बाद बालाकोट हवाई हमले ने देश में राष्ट्रवाद की नई लहर पैदा करने में मदद की। इससे भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनावों में 303 सीट मिले। 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, पिछले दो चुनावों जैसा कुछ भी नाटकीय नहीं हुआ, लेकिन भाजपा 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल रही। 

तीसरी बार पीएम बनने के बाद पिछले एक साल में मोदी ने बैसरन (पहलगाम) में दो दर्जन हिंदू पर्यटकों की हत्या से पैदा हुए संकट को जिस तरह से संभाला, उसके कारण उन्हें और अधिक लोकप्रियता मिली है। सितंबर में उनकी उम्र 75 साल पार हो जाएगी, लेकिन इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है। इससे पहले 2015 में उन्होंने दिल्ली में अच्छी तरह से जमे हुए भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन करने के लिए 75 से अधिक उम्र का हवाला दिया था।

यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि 11 मई 1953 को माधोपुर से जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के लखनपुर की ओर बढ़ते समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया था। 2013 से पहले जम्मू-कश्मीर में एक भी जगह ऐसी नहीं थी जहाँ मुखर्जी की मूर्तियाँ स्थापित की गई हों, सिवाय आरएसएस के निजी परिसरों के, या जम्मू-कश्मीर के चुनिंदा भाजपा नेताओं के पास जो मुखर्जी की याद को संजोए रखते थे।

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