Friday, October 10, 2025
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नान घोटालाः छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से राहत, अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी नहीं

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित ‘नागरिक आपूर्ति निगम’ (NAN) घोटाले में फंसे राज्य के पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। राज्य सरकार ने शुक्रवार को शीर्ष अदालत को आश्वस्त किया कि 28 फरवरी तक वर्मा के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और 28 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

क्या हैं आरोप?

पूर्व महाधिवक्ता वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने अपने संवैधानिक पद का दुरुपयोग कर नान घोटाले के मुख्य आरोपी अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को न्यायिक राहत दिलाने में मदद की। यह घोटाला घटिया गुणवत्ता के चावल, चना, नमक आदि की आपूर्ति से जुड़ा है और इसमें कई नौकरशाहों समेत बड़े अधिकारियों की संलिप्तता बताई जा रही है।

नागरिका आपूर्ति निगम (नान) घोटाला फरवरी 2015 में तब सामने आया, जब एसीबी और ईओडब्ल्यू ने नान के 25 परिसरों पर एक साथ छापेमारी की। नान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के सुचारू संचालन के लिए नोडल एजेंसी थी, लेकिन इस छापेमारी में भारी अनियमितताएं उजागर हुईं।

जांच के दौरान 3.64 करोड़ रुपये नकद बरामद किए गए, जिससे भ्रष्टाचार का संकेत मिला। इसके अलावा, जब्त किए गए चावल और नमक के नमूनों की जांच में पाया गया कि वे मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त और घटिया गुणवत्ता के थे।

शराब घोटाले में टुटेजा की गिरफ्तारी

2019 में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस घोटाले में एसीबी/ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज प्राथमिकी और आरोप-पत्र के आधार पर धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मामला दर्ज किया। अनिल टुटेजा, जो नान के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं, और आलोक शुक्ला, जो इसके पूर्व प्रबंध निदेशक थे, दोनों पर घोटाले में शामिल होने के गंभीर आरोप लगे।

पिछले साल अप्रैल में, ईडी ने अनिल टुटेजा को छत्तीसगढ़ में कथित 2000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी दर्शाती है कि राज्य में भ्रष्टाचार के बड़े नेटवर्क की जांच अब भी जारी है और इसके अन्य पहलुओं की भी गहन जांच की जा रही है।

वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी ने वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनके मुवक्किल को राजनीतिक कारणों से फंसाया जा रहा है।

रोहतगी ने कहा कि महाधिवक्ता कभी भी आरोपियों के जवाब तैयार नहीं करते। उन्हें केवल इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि राज्य में सरकार बदल गई है। उन्होंने तर्क दिया कि आरोपी को 2019 में जमानत मिल चुकी थी, जिसे सरकार ने कभी चुनौती नहीं दी। अब जाकर इसे मुद्दा बनाया जा रहा है। इसके अलावा, नान घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में आरोपी को पांच साल पहले जमानत मिल चुकी थी।

राज्य सरकार का पक्ष

राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एजी रवि शर्मा और स्थायी अधिवक्ता अपूर्व शुक्ला ने वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका का विरोध किया।

सरकारी वकील शर्मा ने कोर्ट को बताया कि व्हाट्सएप चैट्स को देखने मात्र से अपराध की गंभीरता साफ हो जाती है। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने और संवैधानिक पद के दुरुपयोग से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि फिलहाल, वर्मा को गिरफ्तार नहीं किया गया है, जो यह दर्शाता है कि सरकार निष्पक्ष कार्रवाई कर रही है।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को यह भी आश्वासन दिया कि व्हाट्सएप चैट के रिकॉर्ड को तीन दिनों में अदालत में प्रस्तुत किया जाएगा, और जब तक यह नहीं होता, तब तक वर्मा को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा की याचिका पर 28 फरवरी तक राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके बाद इस मामले की सुनवाई होगी। 13 फरवरी को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इससे पहले, निचली अदालत भी उनकी याचिका खारिज कर चुकी थी।

 

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