Friday, October 10, 2025
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बिना पति की सहमति के खुला से तलाक ले सकती है मुस्लिम महिला, हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

तेलंगाना हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला चाहे तो पति से एकतरफा तौर पर भी तलाक ले सकती है। फिर चाहे उसके पति की रजामंदी तलाक के लिए न हो, लेकिन पत्नी अलगाव चाहती है तो खुला के माध्यम से ऐसा हो सकता है। दरअसल, मंगलवार को तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। बता दें कि खुला मुस्लिम महिलाओं को मिला एक अधिकार है, जिसके तहत वे तलाक की अर्जी दाखिल कर सकती हैं। पुरुष जब शादी तोड़ने की पहल करते हैं तो मुस्लिम लॉ में उसे तलाक कहा जाता है, जबकि महिलाओं की ओर से किए गए आवेदन को खुला कहा जाता है। जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस मधुसूदन राव की बेंच ने कहा कि महिला के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि वह किसी मुफ्ती से खुलानामा हासिल करे।

तेलंगाना हाई कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने कहा कि खुला से तलाक लेने के मामले में मुफ्ती की राय सिर्फ सलाह के लिए है। उसकी कोई भी बात फैसले के तौर पर नहीं ली जा सकती। बेंच ने कहा कि निजी मामलों में किसी का भी दखल गलत है। अगर कोई महिला खुला के लिए आवेदन करती है तो फिर उसकी प्रक्रिया तत्काल शुरू हो सकती है। बेंच ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को मिला खुला का अधिकार अपने आप में पूर्ण है और उसमें पति या फिर अदालत की सहमति की भी एक सीमा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालत की भूमिका यही है कि वह तलाक पर मुहर लगा दे ताकि दोनों पक्षों के लिए कानूनी राह आसान हो जाए।

क्या है ये मामला?

इस मामले में एक मुस्लिम महिला ने 2020 में इस्लामी संस्था ‘सदा-ए-हक शरई काउंसिल’ से ‘खुला’ के जरिए तलाक लिया था। महिला के पति ने इसे चुनौती देते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी और कहा था कि उसने खुला के लिए सहमति नहीं दी थी। फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। पति ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, जिसे अब तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दिया है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी धार्मिक संस्था या मौलवी ‘खुला’ को कानूनी रूप से प्रमाणित नहीं कर सकते। वे केवल सलाह दे सकते हैं। उनका ‘फतवा’ कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता।कोर्ट ने यह भी कहा कि मुस्लिम पुरुषों को ‘तलाक’ देने का जो अधिकार है, उसी तरह मुस्लिम महिलाओं को ‘खुला’ का समान अधिकार है। यह अधिकार पूर्ण, स्वतःसिद्ध और पति की मर्जी से स्वतंत्र है। पति केवल ‘मेहर’ की वापसी पर चर्चा कर सकता है, पर पत्नी को विवाह में बने रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

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