Friday, October 10, 2025
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राज्य विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका को लेकर SC के फैसले पर पुनर्विचार की तैयारी में गृह मंत्रालय

नई दिल्ली: गृह मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी में है। यह आदेश तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ दायर याचिका पर आया था। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने रविवार को बताया कि इस आदेश में कुछ कानूनी पहलुओं पर ‘गंभीर त्रुटियां’ पाई गई हैं, जिस कारण पुनर्विचार जरूरी हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में राष्ट्रपति को यह निर्देश दिया गया है कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर वह तीन महीने के भीतर निर्णय लें। चूंकि गृह मंत्रालय ही ऐसा नोडल एजेंसी है जो इन विधेयकों को राष्ट्रपति तक पहुंचाता है और राज्यों को उनकी मंजूरी की सूचना देता है, इसलिए यह आदेश मंत्रालय के कार्यक्षेत्र को सीधे प्रभावित करता है।

‘निष्क्रिय विधेयकों के लागू करने का रास्ता खुला’

अधिकारियों ने यह भी कहा कि अदालत के आदेश ने उन विधेयकों को दुबारा लागू करने का रास्ता खोल दिया है जिन्हें अब तक ‘लैप्स’ (अस्वीकृत या निष्क्रिय) मान लिया गया था।

संविधान के अनुसार, यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को स्वीकृति नहीं देते हैं, तो वह विधेयक निष्क्रिय हो जाता है। ऐसे विधेयक को फिर से केवल राज्य विधानसभा में दोबारा प्रस्तुत कर के ही पुनर्जीवित किया जा सकता है, वह भी मूल रूप में या राष्ट्रपति द्वारा सुझाए गए संशोधनों के साथ।

संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला

अधिकारियों के अनुसार पुनर्विचार याचिका इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अदालत में बहस के दौरान केंद्र सरकार की स्थिति और तर्कों को समुचित रूप से नहीं रखा जा सका। गृह मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला देते हुए कहा कि राज्यों के विधेयकों पर राष्ट्रपति का अंतिम निर्णय लेने और उसे राज्यों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मंत्रालय की है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तमिलनाडु सरकार ने शनिवार को 10 विधेयकों को “स्वीकृत माने जाने” की स्थिति में राजपत्र में अधिसूचित कर दिया। इनमें से कई विधेयक 2020 से लंबित थे, जिन्हें राज्यपाल ने बिना किसी निर्णय के रोक रखा था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?

8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना “अवैध और त्रुटिपूर्ण” था। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि राज्यपाल केवल उन्हीं परिस्थितियों में विवेकाधिकार का उपयोग कर सकते हैं जो संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं।

कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्देश दिया कि जिन विधेयकों को दोबारा राज्यपाल के पास भेजा गया था, उन्हें स्वीकृति प्राप्त माना जाए। 

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। साथ ही, यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को स्वीकृति नहीं देते, तो संबंधित राज्य सरकार सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है।

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