नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार उत्तर भारत के राज्यों की जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक बड़ी योजना पर काम कर रही है। इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली में बड़े बदलाव करने की तैयारी की जा रही है। पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद एक रणनीतिक कदम उठाते हुए सरकार अब यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले यह परियोजना पूरी हो जाए।
सामने आई जानकारी के अनुसार पिछले शुक्रवार को वरिष्ठ मंत्रियों की एक समीक्षा बैठक में बताया गया कि सिंधु नदी को व्यास नदी से जोड़ने वाली 14 किलोमीटर लंबी सुरंग के निर्माण के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जा रही है। दोनों ही सिंधु नदी प्रणाली का हिस्सा हैं।
इसके लिए बहुराष्ट्रीय निर्माण कंपनी L&T को परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया है। इसके अगले साल तक तैयार होने की उम्मीद है। सूत्रों ने बताया कि बैठक में उत्तरी राज्यों तक सिंधु नदी के पानी को पहुँचाने वाली प्रस्तावित 113 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण कार्य की भी समीक्षा की गई।
14 किलोमीटर सुरंग का निर्माण सबसे चुनौतीपूर्ण
सूत्रों के अनुसार इस परियोजना का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा 14 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण है। इस सुरंग के निर्माण के लिए पहाड़ी चट्टानों का विस्तृत अध्ययन जरूरी होगा और कमजोर चट्टानों की स्थिति में, सुरंग को पाइपों के माध्यम से बिछाया जाएगा। सरकार के पास डीपीआर रिपोर्ट आने के बाद इसका निर्माण शुरू किया जा सकेगा।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार काम में तेजी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुरंग खोदने वाली मशीनों और रॉक शील्ड तकनीक के उपयोग का प्रस्ताव सरकार के पास रखा गया है। यह सुरंग जम्मू और कश्मीर के कठुआ जिले में उझ बहुउद्देशीय परियोजना से भी जुड़ी होगी ताकि रावी की सहायक नदी उझ से व्यास बेसिन तक पानी पहुँचाया जा सके।
इस सुरंग के पूरा होने से रावी-व्यास-सतलज प्रणाली सिंधु बेसिन से जुड़ जाएगी, जिससे भारत अपने हिस्से के पानी का अधिकतम उपयोग कर सकेगा। सूत्रों का अनुमान है कि इसके निर्माण में तीन से चार साल लगेंगे और यह 2028 तक बनकर तैयार हो जाएगा। इसकी अनुमानित लागत लगभग 4,000-5,000 करोड़ रुपये हो सकती है। शुक्रवार की बैठक में यह भी बताया गया कि सुरंग का निर्माण अलग-अलग खंड में किया जाएगा।
उत्तर भारत के किन राज्यों को होगा फायदा?
इस परियोजना का उद्देश्य इंदिरा गांधी नहर में पानी पहुँचाकर राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता बढ़ाना है। इस परियोजना से जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों को भी लाभ पहुंचेगा। चिनाब नदी को रावी-व्यास-सतलज प्रणाली से जोड़ने के लिए एक नहर बनाई जाएगी। इसे फिर इन राज्यों की मौजूदा नहर प्रणालियों से जोड़ा जाएगा ताकि पानी सीधे इंदिरा गांधी नहर तक पहुँच सके और राजस्थान के श्री गंगानगर तक पहुँचाया जा सके।
इसके अलावा, यह परियोजना दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पेयजल की उपलब्धता भी बढ़ाएगी और गर्मियों के दिनों में अक्सर होने वाले जल संकट को कम करने में मदद करेगी।
साथ ही यह परियोजना भारत के हिस्से के अतिरिक्त पानी को पाकिस्तान जाने से रोकेगी, जिससे देश की जल सुरक्षा मजबूत होगी। यह मौजूदा 13 नहर प्रणालियों को मजबूत करने के अलावा, जलवायु परिवर्तन और बदलते वर्षा पैटर्न के प्रभावों से निपटने में भी मदद करेगी।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद रद्द हुआ था सिंधु जल समझौता
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 1960 में हुई थी। हालांकि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने इस संधि को स्थगित कर दिया था। भारत सरकार ने घटना के बाद जोर देकर कहा था कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते। इसके बाद से ही नरेंद्र मोदी सरकार सिंधु नदी के जल को भारत के लिए ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल की विस्तृत योजना पर काम कर रही है।
सिंधु जल संधि के तहत जम्मू-कश्मीर में पूर्वी नदी कही जाने वाली सतलज, ब्यास और रावी को पूरी तरह से भारत के उपयोग के लिए दी गई थीं। वहीं, पश्चिमी नदियां चिनाब, झेलम और सिंधु को पाकिस्तान को दी गई। भारत के पास पाकिस्तान को मिली पश्चिमी नदियों पर भी रन ऑफ रिवर (RoR) हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स लगाने का अधिकार मिला था, क्योंकि ये नदियां भारत से ही होकर पाकिस्तान की ओर बहती है। हालांकि, पाकिस्तान संधि का इस्तेमाल करते हुए लगातार भारत की परियोजनाओं को बाधित करता रहा है।