लखनऊ: करीब नौ साल के अंतराल के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने गुरुवार को लखनऊ में एक बड़ी रैली के जरिए राजनीतिक मंच पर फिर से सक्रिय तौर जोरदार वापसी के संकेत दिए। मायावती ने पार्टी संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि के अवसर पर अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया और बड़ी संख्या में जमा हुए अपने समर्थकों को संबोधित किया।
लखनऊ के अंबेडकर पार्क में गुरुवार कई राज्यों से बसपा के समर्थक इकट्ठा हुए थे। विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए मायावती ने जहां एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा की वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस की तीखी आलोचना भी की। साथ ही मायावती ने ऐलान किया बसपा 2027 में बिना किसी से गठबंधन किए अकेले चुनावी मैदान में उतरेगी और अपने दम पर सरकार बनाएगी।
मायावती की मेगा रैली
अपने खास क्रीम रंग के सलवार सूट में पहुंची मायावती ने अपने भाषण की शुरुआत समर्थकों की भीड़ का आभार व्यक्त करते हुए की। उन्होंने कहा कि लोगों की इस भीड़ ने ‘पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।’ तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मायावती ने कहा, ‘लोगों की भारी उपस्थिति दर्शाती है कि बसपा की जड़ें गहरी और जीवंत हैं। पार्टी इस विश्वास को यूँ ही बेकार नहीं जाने देगी।’
रैली की शुरुआत मायावती ने बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ की। इसके बाद वह अपने भतीजे आकाश आनंद के साथ मंच पर आईं, जिन्हें औपचारिक रूप से पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित किया गया। यह एक तरह से स्पष्ट संकेत है कि बसपा प्रमुख अगली पीढ़ी का नेतृत्व तैयार कर रही हैं। उन्होंने कांशीराम की विचारधारा को दोहराते हुए कहा, ‘सत्ता वह कुंजी है जिसके माध्यम से दलित और पिछड़े वर्ग उत्थान प्राप्त कर सकते हैं।’
सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा, सपा पर निशाना
इस रैली में मायावती ने एक ऐसा बयान भी दिया जो राजनीतिक हलकों में चर्चा में है। मायावती ने दरअसल अपने कार्यकाल के दौरान बनाए गए स्मारकों और पार्कों के रखरखाव के लिए मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की खूब सराहना की। उन्होंने कहा, ‘मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि इन स्थलों पर आने वाले पर्यटकों से मिलने वाली टिकट की आय का उपयोग इनके रखरखाव के लिए किया जाए। भाजपा सरकार ने सकारात्मक रुख अपनाया और रखरखाव का खर्च खुद उठाया। इसके लिए मैं उनका आभार व्यक्त करती हूँ।’
उन्होंने कहा कि सपा के कार्यकाल में इन्हें अनदेखा किया गया और ये स्मारक और पार्क बुरी हाल में पहुंचने लगे थे। समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए मायावती ने उन पर पाखंड और ‘दोहरे मापदंड’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘जब वे सत्ता में होते हैं, तो कांशीराम जी और पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) एजेंडा भूल जाते हैं। लेकिन सत्ता से बाहर होने पर, उन्हें दोनों याद आ जाते हैं। ऐसे दोमुँहे लोगों को दूर रखना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘अगर सपा कांशीराम जी का इतना सम्मान करती थी, तो उनकी सरकार ने अलीगढ़ मंडल में उनके नाम पर रखे गए जिले का नाम क्यों बदल दिया?’ उन्होंने सपा पर कांशीराम के नाम पर बनाई गई संस्थाओं और कल्याणकारी योजनाओं को खत्म करने का आरोप लगाया और इसे उनकी ‘दलित विरोधी और जातिवादी मानसिकता’ का सबूत बताया।
कांग्रेस पर भी बरसीं मायावती
मायावती ने रैली में अपने भाषण के दौरान कांग्रेस को भी नहीं बख्शा और उसे नौटंकी पार्टी करार दिया। मायावती ने कहा कि कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से दलितों के हितों की अनदेखी की है। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस ने बाबासाहेब अंबेडकर को कभी भारत रत्न नहीं दिया। यहां तक कि जब कांशीराम जी का निधन हुआ, तब भी न तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और न ही उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने राष्ट्रीय शोक का एक दिन घोषित किया। यह उनकी असली मानसिकता को दर्शाता है।’
मायानती ने कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी दलितों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कहा कि सभी जाति-आधारित दलों ने बसपा के उदय को रोकने के लिए साजिश रची थी। उन्होंने कहा, ‘वे जानते थे कि अगर बसपा राज्यों में अपने दम पर सत्ता में आई, तो वह एक दिन केंद्र तक पहुंच जाएगी।’ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी को कमजोर करने के लिए ईवीएम में हेरफेर और सुविधानुसार गठबंधन का इस्तेमाल किया गया था।
आजम खान और सांसद चंद्रशेखर आजाद पर निशाना
मायावती ने नाम लिए बगैर आजम खान और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ का भी इशारों-इशारों में जिक्र किया और संभावित गठबंधन की अफवाहों पर अपनी चुप्पी तोड़ी। आजम खान के बसपा में शामिल होने की अटकलों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं किसी से छिपकर नहीं मिलती। जब भी मिलती हूँ, खुलेआम मिलती हूँ।’
चंद्रशेखर पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘बसपा के वोट काटने के लिए विपक्ष ने स्वार्थी और बिकाऊ लोगों का इस्तेमाल करके छोटे-छोटे संगठन बनाए हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं को सतर्क रहना चाहिए और इन जाल में नहीं फँसना चाहिए। ऐसी पार्टियों को एक भी वोट न दें।’
2027 के चुनाव में अकेले उतरने का ऐलान
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी 2027 में होने वाले अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरेगी। लखनऊ में एक रैली को संबोधित करते हुए मायावती ने कहा कि अतीत में हुए गठबंधनों से केवल सहयोगी दलों को ही मदद मिली है।
उन्होंने कहा, ‘अब तक के अपने अनुभव के आधार पर, मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूँ कि जब भी हमारी पार्टी ने गठबंधन करके विधानसभा चुनाव लड़ा है, खासकर उत्तर प्रदेश में, तो हमें कोई खास फायदा नहीं हुआ है।’

बसपा प्रमुख ने कहा, ‘हमारी पार्टी के वोट एकतरफा गठबंधन सहयोगी को मिल जाते हैं, लेकिन उनकी जातिवादी मानसिकता के कारण ऊंची जाति के वोट बसपा उम्मीदवारों को नहीं मिलते। यही वास्तविकता है। ऐसे में हमारे उम्मीदवार कम सीटें जीतते हैं, और हमारा कुल वोट प्रतिशत गिर जाता है।’
मायावती ने यह भी कहा कि बसपा की गठबंधन सरकारें कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं। उन्होंने कहा, ‘जब भी हमने (उत्तर प्रदेश में) गठबंधन सरकार बनाई है, वह अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गई है। जब हम गठबंधन के जरिए चुनाव लड़ते हैं, तो हमारा वोट प्रतिशत गिर जाता है, और जब हम गठबंधन के जरिए सरकार बनाते हैं, तो वह समय से पहले ही गिर जाती है।’
‘हर गठबंधन से हुआ नुकसान…’
बसपा सुप्रीमो ने इस दौरान पिछले गठबंधनों और उनके परिणामों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘1993 में, जब बसपा ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, तब हमें केवल 67 सीटें मिली थीं। फिर, 1996 में जब हमने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, तब भी हमें केवल 67 सीटें ही मिलीं, जो पहले जितनी ही थीं।’
उन्होंने कहा कि 2002 में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करने पर पार्टी को फायदा हुआ। मायावती ने कहा, ‘2002 में, जब हमने अकेले विधानसभा चुनाव लड़ा था, तो बसपा ने लगभग 100 सीटें जीती थीं, जिनमें दो निर्दलीय उम्मीदवार भी शामिल थे, जिन्हें समय पर पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं मिल पाया था। इस प्रदर्शन ने हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बहुत बढ़ाया।’
बसपा प्रमुख ने कहा कि जब पार्टी ने 2007 में फिर से अकेले चुनाव लड़ा, तो उसे ऐतिहासिक सफलता मिली। मायावती ने कहा, ‘2007 में, जब हमने फिर से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा, तो हमने 200 से ज्यादा सीटें जीतीं और पहली बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। हमारी सरकार ने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया और समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए कई ऐतिहासिक कार्य किए।’
उन्होंने तर्क दिया कि गठबंधन न केवल बसपा को मजबूत करने में विफल रहे, बल्कि समावेशी विकास में भी बाधा बने। उन्होंने कहा, ‘यह हमारे आंदोलन और हमारे मिशन को कमजोर करता है।’