Friday, October 10, 2025
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मालेगांव बम ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित समेत सभी 7 आरोपी बरी

नई दिल्ली: मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने फैसला सुनाया। सबूत के अभाव में कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। इस बम धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी। कोर्ट ने फैसले में कहा कि प्रत्येक मृतक को 2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये का मुआवजा दिया जाए।

कोर्ट ने कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में काफी अंतर है। सात आरोपियों पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी और समीर कुलकर्णी के नाम शामिल थे।

कोर्ट के अनुसार अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल में था। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे सप्लाई किया। यह भी साबित नहीं हुआ कि बम किसने लगाया। घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई।

कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ। साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी सिद्ध नहीं हो पाया।

‘आतंक का कोई धर्म नहीं होता…’, कोर्ट ने और क्या कहा?

अदालत ने कहा कि घटना में पीड़ितों को लगी चोटों की पुष्टि आंशिक रूप से हुई, लेकिन घायलों की संख्या 95 पाई गई, न कि 101, जैसा कि पहले दावा किया गया था। अदालत ने कहा कि उसे ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे पता चले कि लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने अपने घर पर आरडीएक्स जमा किया था, उसे कश्मीर से लाया था, या अपने घर पर बम बनाया था। जज ने आगे कहा, ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का समर्थन नहीं कर सकता।’

इस मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा गया था।

दरअसल, 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ। इस धमाके में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए। शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी। हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई।

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