Friday, October 10, 2025
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7 मरीजों की मौत के बाद मिशन अस्पताल के पकड़े गए फर्जी डॉक्टर से जुड़ी और क्या बातें सामने आई हैं?

दमोह: मध्य प्रदेश दमोह के एक ईसाई मिशनरी के मिशन अस्पताल से जुड़े रहे फर्जी डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ जॉन कैम के कारनामे अब सामने आ रहे हैं। उसी इसी हफ्ते फर्जी कागजात और मेडिकल डिग्री दिखाकर नौकरी हासिल करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। जॉन कैम असल नाम नहीं है और आरोपों के अनुसार ब्रिटेन के एक चर्चित डॉक्टर का चुराया हुआ नाम है।

नरेंद्र विक्रमादित्य यादव पर खुद को ब्रिटेन के एक कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर पेश करने का आरोप है। मिशन अस्पताल में विक्रमादित्य की देखरेख में सात मरीजों की मौत के दावों के बाद इस फर्जी डॉक्टर की कलई खुल रही है और एक के बाद एक हैरान करने वाली बातें सामने आने लगी हैं।

इस बीच मिशन अस्पताल भी चर्चा में है। अस्पताल के संचालक अजय लाल पर पूर्व में मानव तस्करी और धर्म परिवर्तन कराने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। हाई कोर्ट ने हालांकि, इसे लेकर दर्ज केस को खारिज कर दिया था।

बहरहाल, सामने आई जानकारी के अनुसार विक्रमादित्य यादव ने 1990 के दशक में अपना नाम बदलने की कोशिश की और यहां तक ​​कि एक फर्जी परिवार भी बना लिया था। जांच अधिकारी उन दावों की भी जांच कर रहे हैं जिसमें कहा जा रहा है कि विक्रमादित्य ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के एक पूर्व स्पीकर का भी इलाज किया था, जिनकी 2006 में सर्जरी के तुरंत बाद मौत हो गई थी।

यूके के कार्डियोलॉजिस्ट का नाम चुराया

जांचकर्ताओं के अनुसार, विक्रमादित्य ने कथित तौर पर यूके स्थित कार्डियोलॉजिस्ट और प्रोफेसर जॉन कैम की पहचान चुराते हुए डॉ. नरेंद्र जॉन कैम नाम अपना लिया था।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार दमोह की एसपी श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने बताया, ‘उसने दावा किया है कि वह 1999 में लंदन गया था और मेडिकल कोर्स किया, जिससे भारत में प्रैक्टिस करने की योग्यता नहीं मिलती है। इसलिए उसने एमडी की जाली डिग्री बनाई। वह 1999 से ही अपना नाम बदलकर यूके से प्रोफेसर जॉन कैम के नाम पर रखने की कोशिश कर रहा था। उसने कानपुर में संबंधित अधिकारियों को अपना नाम बदलने के लिए दस्तावेज भी सौंपे, लेकिन बाद में उसने इसे छोड़ दिया।’

सोमवंशी ने आगे कहा, ‘आरोपी ने अपनी पहचान बदलने की कोशिश की ताकि वह अंग्रेजी जैसा दिखने वाला ईसाई नाम रख सके ताकि भारतीयों में उसका सम्मान बढ़े और उसे बेहतर नौकरी मिल सके।’ 

पुलिस के अनुसार यादव ने उन्हें बताया कि 2004 में लंदन से लौटने के बाद उसने दिल्ली के कई अस्पतालों में काम किया, फिर हैदराबाद में प्रैक्टिस करने से पहले एक कोर्स के लिए शिकागो गया। यादव का दावा है कि 2010 के आसपास वह एक और कोर्स के लिए जर्मनी के नूरेमबर्ग गया और 2013 के आसपास भारत लौट आया।

वहीं, मंगलवार को असली डॉ. कैम ने अखबार को बताया, ‘पहचान की चोरी की घटना की जानकारी सबसे पहले करीब पांच साल पहले मुझे मिली, कम से कम मेरी जानकारी में तो यही है। यह बहुत ही परेशान करने वाली बात थी।’ 

बैन और फर्जी नाम से ट्विटर अकाउंट

पुलिस ने बताया कि 2013 के आसपास का समय था जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने विक्रमादित्य यादव पर प्रतिबंध लगा दिया था। पुलिस के अनुसार नोएडा में आईटी एक्ट के तहत उस पर मामला दर्ज किया गया था और उसे प्रतिबंधित कर दिया गया था। उसने अपनी खुद की कंपनी शुरू करने की कोशिश की, जो सफल नहीं हो पाई। जब उसे प्रतिबंधित किया गया, तो उसने अपनी पहचान बदलकर जॉन कैम करने के अपने पुराने सपने को पूरा करने का फैसला किया। 

इसी दौरान नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने जॉन कैम के नाम से ट्विटर अकाउंट बनाया और ट्वीट करना शुरू किया। एक ट्वीट में कहा गया था कि फ्रांस में दंगों को नियंत्रित करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा जाना चाहिए। सीएम के अकाउंट से इसे रीट्वीट किए जाने के बाद पोस्ट ने खासा तूल भी पकड़ा था।

पुलिस ने कहा कि विक्रमादित्य अक्सर कुछ महीनों तक एक अस्पताल में काम करता था और फिर नौकरी छोड़कर दूसरे शहर चला जाता था। 2019 में, यादव को चेन्नई के पास से गिरफ्तार किया गया था, जब एक निजी अस्पताल के 100 से अधिक कर्मचारियों ने आरोप लगाया था कि उसने उनका वेतन रोक रखा है।

उस समय एक महिला की पहचान उसकी पत्नी के रूप में की गई थी और उसे भी सह-आरोपी बनाया गया था। अभी वह फरार मानी जा रही है। एसपी सोमवंशी ने कहा, ‘इस महिला ने कभी उससे शादी नहीं की और फिलहाल वह यूके में है। उसकी कोई पत्नी या बच्चा नहीं है। ये सभी जाली दस्तावेजों पर आधारित हैं।’

छत्तीसगढ़ के पूर्व स्पीकर का ऑपरेशन

विक्रमादित्य यादव ने छत्तीसगढ़ में भी प्रैक्टिस की है, जहां उसके कई मरीजों में पूर्व स्पीकर राजेंद्र प्रसाद शुक्ला भी शामिल थे। उनके परिवार के अनुसार, छत्तीसगढ़ के कोटा विधानसभा से तत्कालीन विधायक शुक्ला का 2006 में बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में इलाज हुआ था और सर्जरी के एक महीने से भी कम समय में उनकी मृत्यु हो गई थी। कथित तौर पर संदिग्ध ने अस्पताल में कई लोगों का इलाज किया था, जिन्हें अब नोटिस दिया गया है।

राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के सबसे छोटे बेटे प्रदीप (63), जो एक प्रोफेसर हैं, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को फोन पर बताया कि अगस्त 2006 में अपोलो अस्पताल में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उन्हें 18 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया था। उनका इलाज डॉ. नरेंद्र यादव ने किया था।

प्रदीप के अनुसार उनके पिता, जो छत्तीसगढ़ के पहले स्पीकर थे, को ‘यह विश्वास दिलाया गया कि यह एक आपात स्थिति है।’

उन्होंने कहा, ‘उन लोगों ने कहा कि मेरे पिता को हल्का दिल का दौरा पड़ा है और सर्जरी की गई जो दो घंटे तक चली। मेरे पिता बेहोश हो गए और इसके तुरंत बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। मुझे लग रहा था कि सर्जरी गलत हो गई है, लेकिन मेरे पिता 76 साल के थे और हमने अस्पताल पर भरोसा किया।’

परिवार ने अब जिला प्रशासन को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है। बिलासपुर पुलिस ने पुष्टि की है कि उन्हें शिकायत मिली है। बिलासपुर के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. प्रमोद तिवारी ने भी पुष्टि की कि अस्पताल को नोटिस जारी किया गया है। उन्होंने कहा, ‘हमें समाचारों से उसकी गिरफ़्तारी के बारे में पता चला। हमने अस्पताल को नोटिस जारी कर उनसे कई सवाल पूछे हैं। उन्हें जवाब देने के लिए तीन दिन का समय दिया गया है।’

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