सन 2015 की बात है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बराक ओबामा हैदराबाद हाउस के बगीचे में चाय पर बातचीत कर रहे हैं। एक शामियाने के नीचे बैठे हुए प्रधानमंत्री मोदी, तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा को चाय परोसते हैं और दोनों नेता चर्चा जारी रखते हैं। न्यूजचैनल और अखबारों में सुर्खियां चलती हैं: “हैदराबाद हाउस में दो विश्वशक्तियों की चाय पर चर्चा।” लेकिन दिल्ली के लुटियन्स ज़ोन में हैदराबाद हाउस क्या कर रहा है? और तो और, इसी तरह पटियाला हाउस, दरभंगा हाउस और बीकानेर हाउस जैसे भवनों को दिल्ली आने वाले लोग अक्सर देखकर यही सोचते हैं कि अलग अलग रियासतों के नाम पर बने इन भव्य भवनों को किसने, कब और क्यों बनाया होगा!
सबसे प्रसिद्ध हाउस इंडिया गेट के आसपास बने हैं- हैदराबाद, बड़ौदा, पटियाला, जयपुर और बीकानेर। इसके अलावा लुटियंस दिल्ली की हरी-भरी सड़कों पर और भी हाउस हैं, जैसे धौलपुर हाउस और मंडी हाउस। इन नामों से साफ है कि ये सब उन रियासतों (Princely States) से जुड़े थे, जो आज़ादी से पहले अस्तित्व में थीं। दरअसल ये हाउस, ब्रिटिश साम्राज्य की नई राजधानी नई दिल्ली में उन रियासतों के दूतावास की तरह थे।
1911 में अंग्रेज़ों ने राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने का फैसला किया। इसके बाद वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के पास रियासतों को जमीन दी गई, ताकि वे वहां अपने दूतावास जैसी इमारतें बना सकें क्योंकि भारत की कुल 565 रियासतें ब्रिटिश शासनकाल में भी स्वायत्त थीं। कुल 34 प्लॉट दिए गए, जिनका आकार और जगह उस रियासत के दर्जे के अनुसार तय किया गया। ज्यादातर प्रिंसली हाउस बनाए 1920 से 1940 के बीच गए। कुछ नहीं बने, कुछ बने लेकिन इस्तेमाल नहीं हुए। आज़ादी के बाद इनमें से ज्यादातर को भारत सरकार ने अपने अधीन कर लिया।
शान, सत्ता और इतिहास के गवाह रियासती भवन
इन भवनों में हैदराबाद हाउस को सबसे भव्य कहा जा सकता है। इसे वास्तुकार एडवर्ड लुटियंस ने निज़ाम के लिए बनाया था। यह भवन “गांधी” और “संगम” जैसी फिल्मों में भी दिखा। यह भवन आज विदेश मंत्रालय के अधीन है और प्रधानमंत्री की औपचारिक बैठकों के लिए इस्तेमाल होता है।
बड़ौदा हाउस भी बड़ौदा रियासत के महाराजा गायकवाड़ के लिए एडवर्ड लुटियंस ने ही बनाया। यह भवन सादा पर खूबसूरत है। आज यहां से उत्तर रेलवे का दफ्तर चल रहा है।
पटियाला हाउस को महाराजा भूपिंदर और यादविंद्र सिंह ने बनवाया था। यह भवन कभी WHO का दफ्तर रहा और पहली एशियाई खेलों की बैठक यहीं हुई। आज दिल्ली जिला अदालत यहां स्थित है और पटियाला हाउस कोर्ट का नाम सुर्खियों में आता रहता है।
जयपुर हाउस, जयपुर रियासत को मुफ्त में दिया गया, जिसके बदले में जयपुर रियासत की जयसिंहपुरा नाम की जमीन ली गई, जिसपर आज दिल्ली का दिल “कनॉट प्लेस” बना है। आज जयपुर हाउस में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट स्थित है।
लुटियन्स की धुरी में बसा बीकानेर हाउस वास्तुकार चार्ल्स ब्लॉमफील्ड द्वारा निर्मित है। आजादी से पहले चेंबर ऑफ प्रिंसेज़ की बैठकें यहां होती थीं। अब यह भवन राजस्थान टूरिज्म के पैनलों, कला प्रदर्शनियों और बसों के लिए मशहूर है।
शाहजहां रोड पर बना धौलपुर हाउस आज UPSC का मुख्यालय है, जो सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले हर अभ्यार्थी के लिए तीर्थ समान है।
भगवान दास रोड पर स्थित है बहावलपुर हाउस जो कभी अमेरिका का पहला दूतावास हुआ करता था। आज यहां नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा स्थित है और यह पता आज रंगकर्मियों और कलाकारों के ठिकाने के तौर पर भी जाना जाता है।
भारत सरकार द्वारा अधिग्रहित किए जाने के बाद कोचिन हाउस शुरू में सरदार सोभा सिंह का घर हुआ करता था। बाद में यह ILO का दफ्तर हुआ। आज इसका नियंत्रण केरल सरकार के पास है।
मान सिंह रोड पर स्थित दरभंगा हाउस आज गृह मंत्रालय के दफ्तर के तौर पर जाना जाता है।
कोपर्निकस मार्ग पर बसा फरीदकोट हाउस कभी कनाडा हाई कमीशन रहा और आज नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का मुख्यालय है।
मंडी हाउस आज दिल्ली का एक मशहूर इलाका है लेकिन असली भवन अब यहां नहीं है। इस इलाके में अब दूरदर्शन, आकाशवाणी आदि के भवन हैं। हिमाचल के किए चलने वाली वोल्वो बसें भी यहां से चलती हैं।
जींद हाउस कभी चीन का पहला दूतावास रहा। आज यह भवन पंजाब भवन का ही हिस्सा है।
कश्मीर हाउस आज रक्षा मंत्रालय का दफ्तर है।
केजी मार्ग पर स्थित त्रावणकोर हाउस कभी रूस का दूतावास हुआ करता था।
तिलक मार्ग पर स्थित कनिका हाउस कभी बी.आर. अंबेडकर का आवास था, जिसे इंसाफ की कोठी भी नाम दिया गया था। इसे मूलतः वास्तुकार कार्ल माल्ट वॉन हाइन्ज़ ने 1930 के दशक में डिज़ाइन किया था और यह ओडिशा की पूर्ववर्ती रियासत के लिए बनाया गया था। आज यह पोलैंड के राजदूत का निवास है।
रियासतों से गणराज्य तक का सफ़र
ये रियासती भवन (प्रिंसली हाउस) आज़ादी पूर्व उभरी दिल्ली की नई शक्ल-ओ-सूरत का अहम हिस्सा रहे हैं। इन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के अंत और भारत की आज़ादी, दोनों का दौर देखा है। साथ ही यह भवन आज़ादी से पहले आज़ाद रही रियासतों की निशानी भी हैं। आज ये दिल्ली की आधुनिक इमारतों और इतिहास के बीच एक पुल की तरह खड़े हैं। यह भवन दिखाते हैं कि भारत का इतिहास एकाश्मिक नहीं था बल्कि बहुआयामी था और इस देश के दिल की मिट्टी में कई प्रांतीय मिट्टियों का मेल भी शामिल है।