भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (RBI)ने छोटे कारोबारियों को राहत देते हुए ऋण से जुड़े नियमों में ढील दी है। नई गाइडलाइन के तहत अब बैंकों को लोन पर अतिरिक्त ब्याज दर या स्प्रेड तय करने में अधिक लचीलापन दिया गया है।
गौरतलब है पहले बैंक केवल हर तीन साल में ही उधार लेने वालों की क्रेडिट रिस्क के आधार पर स्प्रेड (ब्याज) में बदलाव कर सकते थे। लेकिन अब बैंक चाहें तो तीन साल से पहले भी स्प्रेड को कम कर सकते हैं। इससे कारोबारियों का ब्याज बोझ कम हो सकता है। इसके अलावा, अब उधार लेने वाले लोग चाहें तो लोन रीसेट के समय फिक्स्ड-रेट लोन (निश्चित ब्याज दर) का विकल्प भी चुन सकेंगे।
सोने से जुड़े व्यवसायों के लिए ऋण हुआ आसान
आरबीआई ने सोने को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करने वाले उद्योगों के लिए भी नियमों में राहत दी है। अब तक बैंकों को सोना या चांदी खरीदने के लिए कर्ज देने पर रोक थी, केवल ज्वैलर्स को वर्किंग कैपिटल लोन की छूट थी। लेकिन नई व्यवस्था में अब किसी भी उद्योग को, जो सोने को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करता है, वर्किंग कैपिटल लोन दिया जा सकेगा। इससे ज्वैलरी सेक्टर से आगे बढ़कर सोने पर आधारित अन्य व्यवसायों को भी सुलभ वित्तीय सहायता मिलेगी।
यहां जानते हैं कि वर्किंग कैपिटल लोन क्या होता है। एचडीएफसी बैंक के अनुसार, वर्किंग कैपिटल लोन एक ऐसा कर्ज होता है जो किसी व्यवसाय को उसकी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए दिया जाता है। यह कर्मचारियों को वेतन देने, कच्चा माल खरीदने, रोजमर्रा का खर्च और बिलों का भुगतान करने जैसे कार्यों में मदद करता है।
अक्सर कारोबार पूरे साल समान रूप से पैसा नहीं कमाते। कुछ कंपनियों की बिक्री सीज़नल होती है या त्योहारों के समय बढ़ जाती है, ऐसे में कामकाज जारी रखने के लिए वर्किंग कैपिटल लोन लिया जाता है। यह लोन सिर्फ रोजमर्रा के खर्च के लिए होता है, बिजनेस बढ़ाने, नई मशीन खरीदने या बड़े निवेश के लिए नहीं लिया जाता।
इस लोन की राशि कारोबार की जरूरत, अनुभव और टर्नओवर पर निर्भर करती है और हर बैंक के नियम अलग हो सकते हैं। ब्याज दर भी बैंक की शर्तों के अनुसार तय होती है। वर्किंग कैपिटल लोन सिक्योर्ड या अनसिक्योर्ड हो सकता है। सिक्योर्ड लोन में प्रॉपर्टी, सोना, निवेश या व्यवसाय गिरवी रखा जाता है, जबकि अनसिक्योर्ड लोन के लिए बैंक व्यक्ति के टैक्स रिटर्न, क्रेडिट स्कोर और वित्तीय स्थिति को देखता है। लोन की किस्तें इस तरह तय की जाती हैं कि व्यवसाय की आमदनी और नकदी के हिसाब से आसानी से चुकाई जा सकें। लोन लेने वाले की उम्र 21 साल से ऊपर और 65 साल से कम होनी चाहिए और बैंक आवेदन पर प्रोसेसिंग फीस लेता है। उद्यमी, साझेदारी फर्म, प्राइवेट या पब्लिक लिमिटेड कंपनी, MSME या स्वरोज़गार करने वाले पेशेवर और गैर-पेशेवर सभी इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।
वर्किंग कैपिटल लोन आमतौर पर 6 महीने से 48 महीने की अवधि के लिए दिया जाता है, लेकिन यह बैंक और शर्तों पर निर्भर करता है। आसान शब्दों में कहें तो, यह लोन कारोबारियों के लिए एक शॉर्ट-टर्म सहारा है। इससे छोटे-मोटे खर्च पूरे हो जाते हैं और व्यापारी अपने बड़े लक्ष्यों पर ध्यान दे सकते हैं।
छोटे शहरी सहकारी बैंकों की भूमिका बढ़ाया गया
आरबीआई ने कुल सात दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनमें से तीन को अनिवार्य बनाया गया है। जबकि चार को परामर्श के लिए रखा गया है। केंद्रीय बैंक ने इन प्रस्तावों पर 20 अक्टूबर तक सुझाव मांगे हैं।
नई गाइडलाइन में छोटे शहरी सहकारी बैंकों की भूमिका को भी बढ़ाया गया है, ताकि क्रेडिट की पहुंच और विस्तृत हो सके। पूंजी नियमों में ढील देते हुए अब बैंकों को विदेशी मुद्रा और ओवरसीज-रुपी बॉन्ड को एडिशनल टियर-1 कैपिटल के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है। इससे बैंकों के लिए वैश्विक बाजार से पूंजी जुटाना आसान होगा।
क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम को भी और तेज किया गया है। अभी तक क्रेडिट इंस्टीट्यूशन्स को हर पखवाड़े में क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनियों को डेटा भेजना पड़ता था, लेकिन अब इसे साप्ताहिक आधार पर करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, डेटा सबमिशन और एरर करेक्शन की प्रक्रिया को भी और तेज व सटीक बनाने पर जोर दिया गया है।
ग्राहकों के लिए तैयार रिपोर्टिंग फॉर्मेट में अब सेंट्रल केवाईसी (सीकेवाईसी) नंबर को अलग से दर्ज करने का प्रावधान भी किया जाएगा, ताकि क्रेडिट जानकारी का समेकन और पारदर्शी हो सके। आरबीआई के अनुसार, इन कदमों का उद्देश्य छोटे व्यवसायों और सोने पर आधारित उद्योगों के लिए कर्ज की उपलब्धता आसान बनाना, पूंजी जुटाने की प्रक्रिया सरल करना और क्रेडिट सिस्टम को अधिक पारदर्शी व तेज बनाना है।