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‘लेटरल एंट्री’ पर विवाद क्यों है और क्यों नहीं है इसमें आरक्षण का प्रावधान?

नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा केंद्र सरकार के 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के पदों पर ‘लेटरल एंट्री’ के लिए आवेदन मांगे जाने के विज्ञापन के बाद विपक्ष ने इसे लेकर सवाल उठाए हैं। ये ऐसे पद हैं जिन पर आमतौर पर आईएएस रैंक के अधिकारी तैनात किए जाते हैं। ऐसे में लेटरल एंट्री (सीधी भर्ती) के जरिए एक तरह से बिना यूपीएससी की परीक्षा और केवल इंटरव्यू की बदौलत ऐसे बड़े पदों पर भर्ती की जाती है। विज्ञापन में 45 पदों पर लैटरल भर्तियों की बात कही गई है।

विज्ञापन में कहा गया है कि राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों, पीएसयू, वैधानिक संगठनों, अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों और यहां तक ​​कि प्राइवेट से उचित योग्यता और अनुभव रखने वाले व्यक्ति इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं।

हालांकि, कांग्रेस पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी दल के नेताओं ने इन भर्तियों में ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण नहीं होने की नीति को लेकर आलोचना की है।

ब्यूरोक्रेसी में ‘लेटरल एंट्री’

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में नीति आयोग और सेक्टोरल ग्रुप ऑफ सेक्रेट्रीज (एसजीओएस) ने अपनी एक रिपोर्ट में केंद्र सरकार में मध्य और वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कर्मियों को शामिल करने की सिफारिश की थी। इनके लिए ‘सीधी भर्ती’ की बात कही गई थी। इसमें कहा गया था कि ऐसी नियुक्तियां तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर होेंगी और इसे कुल मिलाकर 5 साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है।

इन्हीं सिफारिशों के आधार पर ‘लेटरल एंट्री’ के लिए पहली भर्तियां 2018 में निकली थी। हालांकि, उस समय केवल संयुक्त सचिव स्तर के पदों के लिए ये भर्तियां थी। बाद में निदेशक और उप सचिव स्तर के पद के लिए भी इसी तरह से भर्तियां खोली गईं।

कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) द्वारा नियुक्त किया जाने वाला संयुक्त सचिव किसी विभाग में तीसरा सबसे बड़ा पद (सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद) होता है। वह विभाग में एक विंग के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है। वहीं, निदेशक संयुक्त सचिव से एक रैंक नीचे होते हैं, और उप सचिव निदेशक से एक रैंक नीचे होते हैं। हालांकि अधिकांश मंत्रालयों में वे एक जैसी ही जिम्मेदारियां निभाते हैं। निदेशक/उप सचिवों को किसी विभाग में मध्य स्तर का अधिकारी माना जाता है। वहीं, संयुक्त सचिव वह स्तर होता जहां से अहम फैसलों को लेने की पहल होती है।

‘लेटरल एंट्री’ क्यों…सरकार का क्या तर्क है?

साल 2019 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा को बताया कि ‘लेटरल एंट्री का उद्देश्य नई प्रतिभाओं को लाने के साथ-साथ और लोगों की उपलब्धता को बढ़ाने की है।’

इसी महीने राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, सिंह ने कहा था, ‘डोमेन क्षेत्र में उनके विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर लेटरल भर्तियां की जाएगी। इसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट कार्यों के लिए व्यक्तियों को नियुक्त करना है।’

लेटरल एंट्री से कितने लोगों की नियुक्ति हुई है?

साल 2018 से यह सिलसिला शुरू हुआ। उस साल संयुक्त सचिव स्तर के पदों के लिए कुल 6,077 आवेदन आए। यूपीएससी द्वारा चयन प्रक्रिया के बाद, 2019 में नौ अलग-अलग मंत्रालयों/विभागों में नियुक्ति के लिए 9 लोगों की सिफारिश की गई थी।

लेटरल एंट्री के लिए एक और विज्ञापन फिर 2021 में निकला था। मई 2023 में भी भर्तियां निकली। सरकार ने संसद में बताया है कि कुल मिलाकर अभी तक पिछले पांच वर्षों में लेटरल एंट्री के माध्यम से 63 नियुक्तियाँ की गई हैं। वर्तमान में 57 अधिकारी विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं।

लेटरल एंट्री में आरक्षण क्यों नहीं है?

लेटरल एंट्री के जरिए ब्यूरोक्रेसी में नियुक्ति को लेकर अभी सबसे बड़ा विवाद यही है कि जो वेकैंसी निकली है, उसमें आरक्षण नहीं है। कांग्रेस से लेकर राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के नेताओं ने लेटरल एंट्री के आधार पर होने वाली ताजा भर्तियों में आरक्षण की व्यवस्था नहीं होने को लेकर आलोचना की है। अब सवाल है कि इसमें आरक्षण क्यों नहीं है।

दरअसल, सार्वजनिक नौकरियों और विश्वविद्यालयों में जो आरक्षण नीति लागू होती है, उसे ’13-पॉइंट रॉस्टर’ कहा जाता है। इस नीति के अनुसार जब किसी विभाग या कैडर में तीन तक रिक्तियां होती हैं, तो वहां आरक्षण लागू नहीं होता है। इस लिहाज से देखें तो यूपीएससी ने 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया है। हालांकि, ये रिक्तियां प्रत्येक विभाग में अलग-अलग पदों के लिए हैं। हर विभाग के लिए अलग से विज्ञापन भी दिया गया है, इसलिए इन्हें सिंगल पोस्ट वैकेंसी ही माना जाएगा और आरक्षण लागू नहीं हो सकेगा।

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