जम्मू क्षेत्र में कई जगहों पर हुई भारी तबाही के लिए अनियंत्रित अतिक्रमण, रेत और पत्थरों के अवैध खनन के अलावा नदियों और नालों के बिल्कुल पास घरों के निर्माण को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह सच है कि कुछ लोगों ने नदियों और मौसमी नालों के बाढ़ वाले इलाकों पर कब्जा करके घर बना लिए हैं, जिससे उनके पानी के बहाव का रास्ता रुक गया है। एक वॉट्सएप ग्रुप में एक बात बहुत कही गई- जब नदी नाले अपनी जमीन वापस लेते हैं, तो पटवारी नहीं बुलाते।
पिछले हफ्ते, जम्मू संभाग के रियासी और रामबन जिलों में भूस्खलन और बादल फटने की दो अलग-अलग घटनाओं में 15 लोगों की जान चली गई। रियासी में हुए पहले हादसे में, लगातार बारिश के कारण एक घर ढह गया, जिससे एक ही परिवार के सात लोग मारे गए। रामबन जिले में, शनिवार तड़के राजगढ़ गाँव में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ में कम से कम आठ लोग मारे गए और दो लापता हो गए।
रामबन शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर सुदूर पहाड़ी इलाके में अचानक बादल फटने से कई निवासी बह गए। बचावकर्मियों ने अब तक तीन शव बरामद किए हैं, जबकि लापता लोगों की तलाश अब भी जारी है। अधिकारियों ने बताया कि यह घटना सुबह-सुबह हुई, जिससे पूरा गाँव मलबे और उफनती नदियों की चपेट में आ गया। स्थानीय प्रशासन, पुलिस और आपदा राहत दल तुरंत मौके पर पहुँचे।
रियासी जिले में एक ही परिवार के 7 लोगों की मौत
रियासी जिले के महोर के बद्दर इलाके में एक दुखद हादसा हुआ। यहां भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन में एक कच्चा घर मलबे में दबा गया। इस हादसे में एक ही परिवार के 5 बच्चों समेत सात लोगों की मौत हो गई। मृतकों की पहचान बद्दर निवासी नजीर अहमद (38), उनकी पत्नी वजीरा बेगम (35) और उनके पाँच बच्चों – बिलाल अहमद (13), मोहम्मद मुस्तफा (11), मोहम्मद आदिल (8), मोहम्मद मुबारक (6) और मोहम्मद वसीम (5) के रूप में हुई।
इससे पहले माता वैष्णो देवी यात्रा के दौरान अर्ध कुंवारी के पास 30 से ज्यादा तीर्थयात्रियों की जान चली गई थी और यात्रा कई दिनों तक बाधित रही थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेताओं ने खराब मौसम की चेतावनी के बावजूद यात्रा रोकने में कथित विफलता के लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (एसएमवीडीएसबी) के अध्यक्ष और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा पर निशाना साधा था।
इस मुश्किल घड़ी में एक अच्छी बात यह रही कि कटरा के कुछ होटल व्यवसायी फंसे हुए तीर्थयात्रियों की मदद के लिए आगे आए। उन्होंने अपने परिसर में मुफ्त आवास की पेशकश की और कई होटलों ने इसके लिए हाथ मिलाया। हालांकि यह साफ नहीं है कि कितने फंसे हुए तीर्थयात्री इसका लाभ उठा पाए, लेकिन सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा थी।
उधर, जम्मू शहर में सेना ने बड़ी कार्रवाइयों में सराहनीय कार्य किया। पहला उन्होंने SKUAST जम्मू परिसर में सैकड़ों फंसे हुए छात्रों को बचाया। एक स्थानीय इकाई के राहत दल ने छात्रों और फैकल्टी सदस्यों को जानलेवा स्थिति से बाहर निकाला। दूसरी घटना यह कि सेना के इंजीनियरों ने चौथे पुल पर संपर्क बहाल करने के लिए तुरंत ही 110 फीट का एक पुल बना डाला।

पीने के पानी का संकट
पिछले कुछ दिनों में जम्मू क्षेत्र में हुई भारी बारिश ने अब एक नई समस्या पैदा कर दी है जिसका समाधान करने के लिए अधिकारी जूझ रहे हैं। सभी 10 जिलों के कुछ इलाकों में पीने के पानी की भारी कमी है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पानी सप्लाई करने वाली ज्यादातर व्यवस्थाएं, जो नदियों और नालों के पास थीं, बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। इसे देखते हुए, जल शक्ति विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय ने नागरिकों को पानी बचाने और सोच-समझकर इस्तेमाल करने की सलाह जारी की है।
नोटिस में कहा गया कि “हाल ही में आई अचानक बाढ़ के कारण, कई इलाकों में पानी की सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। हालांकि मरम्मत का काम प्राथमिकता पर किया जा रहा है, फिर भी लोगों को पीने का पानी मिले, इसके लिए अस्थायी व्यवस्था की गई है। इस मुश्किल समय में लोगों की मदद के लिए, क्षेत्र-वार अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। जनता से अनुरोध है कि वे अपनी जरूरत के लिए संबंधित अधिकारी से संपर्क करें।” इस नोटिस में जल शक्ति विभाग के दर्जनों इंजीनियरों के नाम, पद और मोबाइल नंबर भी दिए गए हैं।
मौसम अभी भी खराब रहने का अनुमान
मौसम विभाग का कहना है कि अभी भी भारी बारिश और कुछ इलाकों में बादल फटने जैसी घटनाएँ हो सकती हैं। मौसम विशेषज्ञों ने लोगों को सतर्क रहने और नदियों-तालाबों के पास न जाने की चेतावनी दी है। अगले कुछ दिनों, यानी 3 सितंबर की शाम तक, मौसम के साफ होने की संभावना कम है।
जम्मू को श्रीनगर से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर पिछले पाँच दिनों से सैकड़ों मालवाहक ट्रक फँसे हुए हैं। सड़क के कई हिस्से धंस गए हैं और कड़ी मेहनत के बावजूद मरम्मत का काम पूरा नहीं हो पाया है। फिलहाल कश्मीर घाटी में सामान की कमी की कोई खबर नहीं है। लेकिन पिछले तीन दिनों की भारी बारिश ने एक समय बाढ़ का खतरा बढ़ा दिया था। अच्छी बात यह है कि झेलम नदी का जलस्तर कम होने लगा है। जलस्तर बढ़ने से अनंतनाग जिले के कई इलाके हो गए थे।