Friday, October 10, 2025
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माकपा के मोदी सरकार को ‘फासीवादी’ नहीं बताने पर भड़के सीपीआई और कांग्रेस

नई दिल्ली: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नरेंद्र मोदी सरकार या भारतीय राज व्यवस्था (इंडियन स्टेट) को ‘नव-फासीवादी’ नहीं मानने वाले बयान ने केरल में सियासत तेज हो गई है। इसके बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सीपीआई (एम) संघ परिवार के प्रति वफादार बने रहने की कोशिश का हिस्सा है। दरअसल, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा है कि वह नरेंद्र मोदी सरकार या भारतीय राज व्यवस्था (इंडियन स्टेट) को ‘‘नव-फासीवादी’’ नहीं मानती है, हालांकि इनमें ‘‘नव-फासीवादी’’ पहलुओं का प्रकटीकरण होता है। वापमंथी पार्टी ने आगामी सम्मेलन के लिए राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे को लेकर अपनी प्रदेश इकाइयों को भेजे गए नोट में यह बात कही।

माकपा का इस नोट में उसका यह पक्ष भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन जैसे अन्य वाम दलों के रुख से अलग है। भाकपा का रुख है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार फासीवादी है, जबकि भाकपा (माले) ने भी कहा है कि एक ‘‘भारतीय फासीवाद’’ स्थापित हो गया है।

मोदी सरकार ‘नव-फासीवादी’ नहीं: माकपा

माकपा के नोट में कहा गया कि राजनीतिक प्रस्ताव में इस बात का उल्लेख है कि अगर भाजपा-आरएसएस से मुकाबला नहीं किया गया और उन्हें रोका नहीं गया तो देश के हिंदुत्व-कॉरपोरेट अधिनायकवाद के नव-फासीवाद की ओर बढ़ने के खतरा है। साथ ही, इसने इस बात पर जोर दिया कि पार्टी मोदी सरकार को ‘‘नव-फासीवादी’’ नहीं कह रही है। नोट में कहा गया, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि मोदी सरकार फासीवादी या नव-फासीवादी सरकार है। न ही हम भारतीय राज व्यवस्था को नव-फासीवादी व्यवस्था बता रहे हैं।’’

माकपा के राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे पर अप्रैल में तमिलनाडु के मदुरै में पार्टी की बैठक में चर्चा की जाएगी। इसे 17 जनवरी से 19 जनवरी तक कोलकाता में पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में अनुमोदित किया गया था। मसौदा प्रस्ताव में कहा गया कि मोदी सरकार के प्रतिनिधित्व वाली हिंदुत्व-कॉरपोरेट शासन की ताकतों और इसकी विरोधी धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक ताकतों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। इसमें कहा गया, ‘‘प्रतिक्रियावादी हिंदुत्व एजेंडे को लागू करने का प्रयास और विपक्ष तथा लोकतंत्र को दबाने के लिए सत्तावादी अभियान नव-फासीवादी के पहलुओं को प्रदर्शित करता है।’’

वहीं, भाकपा की पार्टी कांग्रेस के पिछले सत्रों का जिक्र करते हुए नोट में कहा गया है, ’22वीं कांग्रेस (2018 में हैदराबाद में आयोजित) में हमने कहा था कि अति-सत्तावादी हिंदुत्व द्वारा किए गए हमले ‘उभरती फासीवादी प्रवृत्ति’ का संकेत थे। 23वीं कांग्रेस (2022 में कन्नूर में आयोजित) में हमने यह भी कहा कि मोदी सरकार आरएसएस के फासीवादी एजेंडे को लागू कर रही है।’

कथित तौर पर माकपा नेतृत्व ने यह नोट अपनी राज्य इकाइयों को भी भेजा है। नोट का हवाला देते हुए माकपा केंद्रीय समिति के सदस्य एके बालन ने सोमवार को कहा, ‘हमारी पार्टी ने कभी भी फासीवादी शासन के रूप में बीजेपी सरकार का मूल्यांकन नहीं किया है। हमने कभी नहीं कहा कि फासीवाद आ गया है। यदि फासीवाद हमारे देश में पहुंच गया तो इसका राजनीतिक ढांचा बदल जाएगा। हमें नहीं लगता कि हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं। सीपीआई और सीपीआई (एमएल) का मानना ​​है कि देश में फासीवाद आ गया है।’

कांग्रेस का माकपा पर हमला

इस मुद्दे को लपकते हुए कांग्रेस ने माकपा पर हमला बोल दिया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि माकपा का नोट अप्रैल 2026 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी समर्थकों के वोट हासिल करने के लिए पार्टी की रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने कहा, ‘साल 2021 के चुनावों में माकपा ने बीजेपी के वोटों के साथ केरल में सत्ता बरकरार रखी थी। यह संदर्भ कि मोदी शासन फासीवादी या नव-फासीवादी नहीं है, आगामी चुनाव में भाजपा के वोट सुरक्षित करने के एजेंडे का हिस्सा है। माकपा का यह निष्कर्ष कि भाजपा और आरएसएस फासीवादी नहीं हैं, चौंकाने वाला है और यह माकपा और संघ परिवार के बीच की अंतर्धारा को उजागर करता है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने अब तक भाजपा या मोदी की आलोचना नहीं की है।’

वहीं, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) वी डी सतीसन भी इस मुद्दे में माकपा पर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि माकपा ने हमेशा संघ परिवार के साथ समझौता किया है। उन्होंने दावा किया कि माकपा का नया दस्तावेज़ संघ परिवार के सामने आत्मसमर्पण करने के निर्णय का हिस्सा है। केरल के पोलित ब्यूरो सदस्य संघ परिवार के साथ समझौता चाहते हैं। वे इस नोट के पीछे हैं कि मोदी शासन न तो फासीवादी है और न ही नव-फासीवादी है।

बता दें कि साल 2021 के चुनावों में विजयन के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ की 41 सीटों के मुकाबले 140 में से 99 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की। हालांकि, माकपा को साल 2024 के लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा, जिसमें एलडीएफ को यूडीएफ की 18 और भाजपा की एक सीट के मुकाबले 20 में से सिर्फ एक सीट मिली।

 

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