“तैयब अली प्यार का दुश्मन, हाय हाय”- कश्मीर में उग्रवाद के दौरान रोमांस लगभग नामुमकिन हो गया था।
रानी डिड और राजा खेमगुप्त, नूरी की जमीन पर प्यार के दुश्मन 1990 में सक्रिय हो गए। मैंने चरम आतंक काल में श्रीनगर में टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि के रूप में नौकरी की थी।
मैं श्रीनगर के डाउनटाउन में एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के कुलपति की बेटी की शादी में गया था। वानुन और लज़ीज़ वाज़वान का स्वाद लेकर जैसे ही हम शादी हॉल से बाहर निकले, अतिरिक्त मुख्य सचिव वकाया साहब ने मुझे अफेंदी बाग तक छोड़ने की पेशकश की। हम मुश्किल से दो सौ मीटर आगे बढ़े थे कि एक आर्मी की जिप्सी ने हमारी एम्बेसडर गाड़ी को रोक लिया।
सीनियर आईएएस अफसर के पीएसओ ने कैप्टन को एसीएस की पहचान बताई, पर कोई असर नहीं हुआ। हमें गाड़ी से उतरकर ठंडी रात में लगभग दो सौ मीटर पैदल चलाया गया, तब जाकर वापस कार में बैठने की इजाज़त मिली।
अगले दिन मैंने यह बात मेज़बान कुलपति को बताई। उनके पास भी अपना किस्सा था। उन्होंने कहा- “मेरी नई-नई ब्याही बेटी और दामाद शादी के बाद पहली मंज़िल के कमरे में गए थे। तड़के सुबह दस्तक हुई। हम पहले ही थकान से चूर थे। दरवाज़ा खोला तो एक दर्जन सेना के जवान एक स्थानीय गाइड को साथ लेकर घर में घुसे हुए थे। कैप्टन गुस्से से कह रहा था कि पहली मंज़िल में आतंकी छिपे हैं, क्योंकि रात भर लाइटें ऑन-ऑफ हो रही थीं। उन्हें ये समझाने में हमारी जान निकल गई कि वो तो नवविवाहितों की सुहागरात थी।”
उग्रवाद के शुरुआती दिनों में कश्मीर में रोमांटिक लव का यही हाल था। और यह सिलसिला 2025 तक चला- जब पहलगाम में हनीमून मना रहे नए-नए जोड़ों पर आतंकियों ने हमला किया और पत्नियों के सामने ही युवाओं की हत्या कर दी। उग्रवादी सचमुच प्यार और मोहब्बत के दुश्मन बन चुके थे।
एक आतंकी संगठन का सरगना, जिसने दो दशक से ज़्यादा जेल में बिताए थे, एक बार एक महिला डॉक्टर और उसके पति के बीच वैवाहिक विवाद सुलझाने गया- उसके पिता के बुलावे पर। और अंत में वही उग्रवादी उस महिला से शादी कर बैठा। वो खुद सिर्फ नौवीं पास था।
कश्मीर की हवा में ही मोहब्बत बसी है- लेकिन उग्रवाद ने उस हवा को ज़हरीला कर दिया। हालाँकि मुसलमान ज्योतिष में ज़्यादा यक़ीन नहीं रखते, फिर भी मैंने प्राताप पार्क के एक ज्योतिषी के पास युवाओं की लाइन देखी है। एक मेडिकल कॉलेज की लड़की ने उससे पूछा- “मेरा बॉयफ्रेंड दो हफ्तों से बात नहीं कर रहा। आप कब देखते हैं कि वो मेरे पास लौटेगा?”
जब भी प्रधानमंत्री या गृहमंत्री घाटी आते, या 15 अगस्त–26 जनवरी से पहले, आतंकी संगठन खुद ही कर्फ्यू का ऐलान कर देते। उन दिनों डल झील, लाल चौक और बुलेवार्ड रोड से सिंथेटिक हनीमून मनाने वाले जोड़े बिल्कुल गायब हो जाते थे। सामान्य दिनों में कश्मीर के पार्कों, बागों और पटनीटॉप में हज़ारों कश्मीरी युवा जोड़े दिख जाया करते थे।
शालीमार गार्डन, चश्मे शाही, ट्यूलिप गार्डन और ज़बरवान- सब सुनसान पड़ जाते थे, वो भी टूरिज़्म सीज़न के सबसे रौनक वाले महीनों में, क्योंकि उग्रवादियों को सार्वजनिक रूप से प्यार का इज़हार रत्ती भर गवारा नहीं था।
लाल चौक का पलाडियम सिनेमा 1990 में जला दिया गया, और उसके बाद नौ अन्य थिएटर भी- क्योंकि फ़िल्मों में हीरो-हीरोइन की मोहब्बत उन्हें “मंज़ूर” नहीं थी।
पटना या मुज़फ्फरपुर में बस स्टैंड पर लड़कियाँ अपने बॉयफ्रेंड से गले मिलती दिख जाएँ, ये कल्पना भी मुश्किल है। लेकिन श्रीनगर में कभी ये आम, बेहद प्यारा और खुला-खुला नज़ारा हुआ करता था।

