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कर्नाटक हाईकोर्ट ने निर्मला सीतारमण और अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ जांच पर लगाई रोक, क्या है मामला?

बेंगलुरुः चुनावी बॉन्ड के जरिए जबरन वसूली मामले में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य भाजपा नेताओं को बड़ी राहत मिली है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को मामले की जांच पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा है कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 286 के तहत, जबरन वसूली के आरोपों के लिए कुछ प्रमुख तत्वों का होना अनिवार्य है, जिसमें सीधे धमकी का होना और शिकायतकर्ता से शिकायत शामिल है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई धमकी नहीं दी गई है, और मजिस्ट्रेट का आदेश भी इन तत्वों पर विचार नहीं करता है। इस मामले में अंतरिम आदेश देते हुए कोर्ट ने जांच को अगले सुनवाई तक रोक दिया है, जो 22 अक्टूबर को निर्धारित की गई है।

अगली सुनवाई की तारीख 10 अक्टूबर तय की गई है, जिससे यह मामला अब राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर गर्माता जा रहा है। यह मामला भाजपा के खिलाफ एक नई राजनीतिक विवाद को जन्म दे सकता है, खासकर जब आरोपों में कई प्रमुख पार्टी पदाधिकारी शामिल हैं।

बता दें कि कर्नाटक पुलिस ने शनिवार (28 सितंबर) को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ चुनावी बांड के माध्यम से ‘जबरन वसूली’ के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी। बेंगलुरु की तिलक नगर पुलिस ने एमपी-एमएलए कोर्ट के निर्देशानुसार यह मामला दर्ज किया है।

क्या है मामला?

एफआईआर में वित्त मंत्री सीतारमण को मुख्य आरोपी बनाया गया है। ईडी के अधिकारियों को दूसरे आरोपी के रूप में नामित किया गया है, जबकि भाजपा के केंद्रीय कार्यालय के पदाधिकारियों को तीसरे आरोपी के रूप में शामिल किया गया है।

इसके अलावा, कर्नाटक भाजपा के पूर्व सांसद नलिन कुमार कतील और राज्य भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र को क्रमशः चौथे और पांचवें आरोपी के रूप में नामित किया गया है। प्रदेश भाजपा के अन्य पदाधिकारियों को छठे आरोपी के रूप में शामिल किया गया है।

पुलिस ने आईपीसी की धारा 384 (जबरन वसूली), 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) के तहत एफआईआर दर्ज की है।

शिकायतकर्ता आदर्श आर अय्यर ने आरोप लगाया है कि आरोपियों और संवैधानिक पदों पर बैठे कई अन्य लोगों ने मिलकर चुनावी बांड की आड़ में जबरन वसूली की और 8,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम का लाभ उठाया। आरोप में यह भी शामिल है कि ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने कंपनियों को धमकाया और उन्हें चुनावी बांड खरीदने के लिए मजबूर किया।

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