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कर्नाटक HC ने वक्फ बोर्ड के विवाह और तलाक प्रमाण पत्र जारी करने के अधिकार पर उठाए सवाल

बेंगलुरुः कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा मुस्लिम जोड़ों को विवाह और तलाक प्रमाण पत्र जारी करने के अधिकार पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या वक्फ अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान है।

मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया और न्यायमूर्ति एमआई अरुण की खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। याचिका में वक्फ बोर्ड को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति देने वाले सरकारी आदेश (जीओ) को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि बोर्ड को इस तरह की प्रमाणन प्रक्रिया के लिए कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है।

वक्फ के पास ऐसा कोई अधिकार नहींः हाईकोर्ट

खंडपीठ ने कहा, “क्या वक्फ बोर्ड विवाह और तलाक प्रमाण पत्र भी जारी कर रहा है? यह एक महत्वपूर्ण मामला है, इसलिए हम जवाब देने के लिए अधिक समय नहीं देंगे। आपके पास वक्फ अधिनियम के तहत ऐसा कोई अधिकार नहीं है।” 

पिछले वर्ष नवंबर में हाईकोर्ट ने 30 अगस्त 2023 को जारी उस सरकारी आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसे अल्पसंख्यक, वक्फ और हज विभाग के अवर सचिव द्वारा जारी किया गया था। इस आदेश के तहत कर्नाटक के विभिन्न जिला वक्फ बोर्डों को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति दी गई थी। बाद में इस आदेश को आलम पाशा नामक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) के माध्यम से चुनौती दी गई।

याचिकाकर्ता ने क्या कहा था?

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पहले मुस्लिम विवाहों को संपन्न कराने वाले काजी, काजी अधिनियम, 1988 के तहत विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत थे। हालांकि, यह अधिनियम 2013 में निरस्त कर दिया गया, जिसके बाद राज्य सरकार ने वक्फ बोर्ड को प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति देने वाला सरकारी आदेश जारी किया।

याचिका में कहा गया कि वक्फ अधिनियम, 1995 मुख्य रूप से वक्फ संस्थानों से जुड़ी चल-अचल संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है और इसमें विवाह या तलाक प्रमाण पत्र जारी करने का कोई प्रावधान नहीं है।

नवंबर 2024 की पिछली सुनवाई में सरकार ने अदालत को बताया था कि यह आदेश इसलिए जारी किया गया था क्योंकि विदेश यात्रा करने वाले मुस्लिम जोड़ों को विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त करने में कठिनाई हो रही थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने तब इस आदेश पर रोक लगा दी थी और आगे की सुनवाई लंबित रखी थी।

सोमवार को सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार का पक्ष रखने वाले वकील अनुपस्थित हैं, जिसके चलते मामले की सुनवाई 19 फरवरी तक के लिए टाल दी गई।

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