Friday, October 10, 2025
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कर्नाटक सरकार ने कैबिनेट में पेश की जाति जनगणना रिपोर्ट, 17 अप्रैल को होगी अहम बैठक

बेंगलुरुः कर्नाटक सरकार ने 2015 में कराई गई जाति जनगणना (सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण) की रिपोर्ट को राज्य कैबिनेट की बैठक में प्रस्तुत कर दिया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बताया कि रिपोर्ट में कई सिफारिशें शामिल हैं, जिन पर आगे गहराई से विचार किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा, “रिपोर्ट आज कैबिनेट में पेश की गई। इसमें कुछ सिफारिशें हैं, जिनका अध्ययन आवश्यक है। कुछ मंत्रियों ने सिफारिशों की समीक्षा की मांग की है। हम अगली कैबिनेट बैठक में 17 अप्रैल को इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे और निर्णय लेंगे।”

रिपोर्ट में क्या है?

संस्कृति मंत्री शिवराज थंगड़गी ने कहा कि यह सर्वेक्षण कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के तहत किया गया था और अब आयोग के वर्तमान अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े द्वारा इसकी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट को दो अलग-अलग बक्सों में पेश किया गया, जिनमें विभिन्न स्वरूपों में आंकड़े और विश्लेषण शामिल हैं।

पहले बॉक्स में 2015 की जाति जनगणना की पूरी रिपोर्ट शामिल है। इसमें जाति-वार जनसंख्या डेटा का एक खंड, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख विशेषताओं से संबंधित एक-एक खंड, अन्य जातियों और समुदायों की प्रमुख विशेषताओं पर आधारित आठ खंड, विधानसभा क्षेत्रवार जाति डेटा की दो सीडी और 2015 के आंकड़ों पर आधारित 2024 में प्रकाशित एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट शामिल है।

वहीं, दूसरे बॉक्स में गैर-अनुसूचित जातियों और जनजातियों से संबंधित सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक आंकड़ों के चार खंड, अनुसूचित जाति और जनजातियों पर एक खंड, तालुका-वार जाति और जनसंख्या डेटा के 30 खंड और माध्यमिक स्रोतों से शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर आधारित एक संकलित खंड शामिल है। इस प्रकार कुल मिलाकर 50 खंड कैबिनेट के सामने प्रस्तुत किए गए हैं।

जाति सर्वेक्षण में 5.98 करोड़ शामिल

सरकार के अनुसार, इस जाति सर्वेक्षण का उद्देश्य कर्नाटक की 6.35 करोड़ की कुल जनसंख्या को कवर करना था। इसमें लगभग 5.98 करोड़ लोगों को शामिल किया गया, जो राज्य की कुल आबादी का करीब 94.16 प्रतिशत है। अनुमानित रूप से करीब 37 लाख लोग इस गणना से छूट गए।

इस कार्य में 1.60 लाख अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया, जिनमें डिप्टी कमिश्नर, कमिश्नर और जिला पंचायतों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शामिल थे। यह सर्वेक्षण सरकार द्वारा जारी 54 संकेतकों पर आधारित था और इसमें छह विशेषज्ञों की एक समिति ने मार्गदर्शन किया। सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ों का प्रबंधन और संकलन भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बेल) द्वारा किया गया जिसके लिए उसे 43 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।

कानून मंत्री एचके पाटिल ने बताया कि यह सर्वेक्षण सामाजिक, शैक्षिक और पिछड़ेपन के आधार पर किया गया है। उन्होंने कहा, “रिपोर्ट को कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया है। अगली बैठक में इस पर गहन चर्चा की जाएगी और अंतिम निर्णय लिया जाएगा।”

अब सबकी निगाहें 17 अप्रैल को होने वाली विशेष कैबिनेट बैठक पर हैं, जिसमें इस सर्वेक्षण की सिफारिशों के कार्यान्वयन और कर्नाटक की सामाजिक न्याय नीतियों व आरक्षण ढांचे पर इसके प्रभाव को लेकर अहम फैसला लिया जा सकता है।

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