कन्नड़ साहित्य के प्रख्यात लेखक और उपन्यासकार संतेशिवरा लिंगन्नैया भैरप्पा का 24 सितंबर, बुधवार को निधन हो गया। 94 वर्षीय भैरप्पा ने बेंगलुरु में अंतिम सांस ली। वह बेंगलुरु के राष्ट्रोत्थान अस्पताल में भर्ती थे।
अस्पताल द्वारा जारी किए गए बयान के मुताबिक, लेखक को दोपहर करीब ढाई बजे कार्डियक अरेस्ट आया। वह हृदय संबंधी बीमारियों से परेशान थे। छह महीने पहले, सुबह में सैर करने के दौरान उनकी तबियत बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें बेंगलुरु के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बेंगलुरु में वह एक गेस्टहाउस में एक अभिभावक की देखरेख में रह रहे थे।
पीएम मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शोक व्यक्त किया
हासन जिले के चन्नारायपटना तालुका के संथेशिवारा के मूल निवासी भैरप्पा ने हासन और मैसूर जिले से अपनी शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने गुजरात और नई दिल्ली सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।
इसके अलावा भैरप्पा ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) के सदस्य के रूप में भी काम किया। मैसूर के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान से वह प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए।
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उनके निधन पर पीएम मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शोक व्यक्त किया। इसके अलावा कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। वहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए एक्स पर एक पोस्ट लिखा।
कन्नड़ साहित्य में विशेष योगदान
भैरप्पा ने कन्नड़ साहित्य में बहुत योगदान दिया है। उन्होंने 26 उपन्यास लिखे। उनकी लिखी गई किताबों का भारतीय भाषाओं समेत अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया।
पर्व, वंशवृक्ष, तंतु, मंदरा, अवराना, गृहभंगा उनके प्रमुख उपन्यास हैं। हालांकि, लेखकों और कार्यकर्ताओं के एक वर्ग ने उन्हें दक्षिणपंथी लेखक कहकर उनकी आलोचना की गई। उनके उपन्यास आवरण से विवाद खड़ा हो गया क्योंकि इसाक विषय भारत पर इस्लामी आक्रमण था।
साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें सरस्वती सम्मान और पद्म भूषण सहित कई अन्य पुरस्कार मिले। कर्नाटक सरकार ने घोषणा की है कि उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
कन्नड़ साहित्य में उन्होंने सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखकों में अपना नाम बनाया। वर्षों तक सबसे ज्यादा किताबें बिकने वाले लेखकों की सूची में उनका नाम रहा।
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उनके लेखन में गहन दार्शनिक दृष्टि और भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव देखने को मिलता है। उनका साहित्य आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नया आयाम प्रस्तुत करेगा।
साल 2015 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। वहीं, 2016 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा राज्य स्तर पर भी उन्हें कई पुरस्कार मिले।
एस एल भैरप्पा ने साल 2019 में मैसूर दशहरा समारोह का उद्घाटन किया था। वह अपने पीछे पत्नी, सरस्वती और बेटे एसबी उदयशंकर और एसबी रविशंकर को पीछे छोड़ गए हैं।