Friday, October 10, 2025
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अहा टमाटर नहीं मजेदार! 2-3 रुपया किलो भी नहीं बिक रहा टमाटर: हजारों किसानों ने खेतों में छोड़ दी फसल

रांची: महीनों पसीना बहाकर टमाटर की बंपर पैदावार करने वाले झारखंड के कई किसानों ने फसलें खेतों में सड़ने के लिए छोड़ दी हैं। वजह यह है कि थोक बाजार में टमाटर मात्र दो-तीन रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है। कहीं-कहीं तो थोक खरीदारी करने वाले बिचौलिए एक रुपए प्रतिकिलो से ज्यादा कीमत देने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में किसानों की मेहनत और लागत का मूल्य भी नहीं निकल पा रहा है। 

कई किसानों ने तो तैयार फसल ट्रैक्टर से रौंद डाली है। बड़े पैमाने पर खेती करने वाले किसानों को लाखों का नुकसान हुआ है। चतरा, लातेहार, हजारीबाग, जमशेदपुर, रामगढ़, बोकारो, रांची, लोहरदगा, गिरिडीह सहित कई जिलों में हजारों एकड़ इलाके में टमाटर की खेती हुई है, लेकिन जनवरी से ही बाजार में भाव में लगातार गिरावट आ रही है।

हालत यह है कि खुदरा बाजार में भी अधिकतम पांच से दस रुपए प्रतिकिलो से ज्यादा कीमत नहीं मिल पा रही है। खेत से फसल तोड़कर बाजार तक लाने में मजदूरी और किराए पर जितना खर्च होता है, उतना पैसा भी नहीं मिल पा रहा।

टमाटर के फसल से नुकसान 

पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा निवासी किसान सोनाराम मांझी बताते हैं कि एक कैरेट में 40 से 50 किलो टमाटर आता है, जिसे थोक खरीदार सिर्फ 30 से 35 रुपए भी खरीद रहे हैं। चतरा के करनी निवासी किसान रघुनाथ महतो कहते हैं कि टमाटर की इतनी भी कीमत नहीं मिल रही, जितना खर्च इसके पौधे लगाने और सिंचाई में हुआ है। एक एकड़ में टमाटर उपजाने में 35 से 40 हजार रुपए तक का खर्च आता है और अभी टमाटर का जो भाव है, उसमें प्रति एकड़ फसल के हिसाब से आठ से दस हजार का नुकसान हो रहा है।

बीज महंगी फसल सस्ती 

लातेहार के बालूमाथ निवासी किसान पच्चु महतो ने बताया कि टमाटर का महंगा बीज लेकर खेतों में लगाया था। खाद से लेकर पटवन पर काफी खर्च हुआ और अब खरीदार रुपए-दो रुपए किलो से ज्यादा कीमत देने को तैयार नहीं हैं। हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में ऐसे कई किसान हैं, जिन्होंने अपनी फसल खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ दी है। बड़कागांव में पिछले साल के कई किसानों ने टमाटर की फसलें न बिकने पर बाजारों में सड़कों पर फेंक दी थी।

फूलगोभी, पत्ता गोभी, पालक जैसी सब्जियों के भाव में भी लगातार गिरावट से किसान मायूस हैं। चतरा के किसान रामसेवक दांगी कहते हैं कि इसी तरह साल दर साल नुकसान होता रहा तो खेती छोड़कर दूसरे धंधे में लग जाएंगे।

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