श्रीनगरः जम्मू-कश्मीर में बीते कई दशकों से नेशनल कॉन्फ्रेंस निर्विवाद रूप से नंबर एक राजनैतिक पार्टी रही है। इसके संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह ने सितंबर 1982 तक, जब तक वह जीवित रहे, पार्टी पर मजबूत पकड़ बनाए रखी। वास्तव में, उनके दामाद जी एम शाह और कुछ अन्य लोगों के मामूली विद्रोह के बावजूद वह निर्विवाद नेतृत्व की बागडोर अपने बेटे डॉ. फारुक अब्दुल्ला को देने में सफल रहे। शाह और उनके समर्थक कूड़ेदान के इतिहास में समा गए हैं और आजकल की राजनीति में शायद ही कभी उन पर चर्चा होती है।
इसी तरह फारुक अब्दुल्ला ने भी एनसी पर अपनी पकड़ बनाए रखी और साल 2002 विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने बेटे उमर अब्दुल्ला को उत्तराधिकारी घोषित किया। हालांकि पार्टी उस चुनाव में दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की नवगठित पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से हार गई। जनवरी 2009 में हुए चुनाव में लेकिन पार्टी ने वापसी की और उमर अब्दुल्ला पहली बार मुख्यमंत्री बने।
नेशनल कॉन्फ्रेंस की कमजोरी
2014 में एनसी एक बार फिर पीडीपी से हार गई क्योंकि भाजपा ने विधानसभा चुनाव के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद का समर्थन किया था। एक दशक बाद 2024 में एनसी फिर से सत्ता में आई और उमर अब्दुल्ला दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
अब्दुल्ला (पिता-पुत्र की जोड़ी) की नेशनल कॉन्फ्रेंस पर पकड़ मजबूत बनी हुई है और अधिकांश पार्टी नेता उनके साथ हैं। हालांकि श्रीनगर से सांसद आगा रुहुल्ला उनके लिए कांटा बन गए हैं। उन्होंने कई मुद्दों पर उमर के रुख को खुले तौर पर चुनौती दी है, यहां तक कि उन पर अनुच्छेद- 370 और राज्य के दर्जे पर पीछे हटने का आरोप भी लगाया था। बडगाम उपचुनाव में हार, जहां आगा ने अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने से दूर रहने का फैसला किया, अब्दुल्ला की कमजोरी को दर्शाता है।
एनसी ने एक बैठक बुलाई जिसमें पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता साथ आए और अब्दुल्ला में अपना विश्वास जताया। हालांकि, इसने आगा को अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधने से नहीं रोका। अप्रत्यक्ष इसलिए क्योंकि उन्होंने उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी को निशाना बनाया और उन पर अपने ‘निजी हितों’ के लिए राजनैतिक दल बदलने का आरोप लगाया। मूल रूप से उन्होंने चौधरी को दलबदलू और दल बदलने वाला बताया, सिद्धांतवादी नहीं।
आगा रुहुल्ला ने क्या कहा?
रुहुल्ला चौधरी की उस टिप्पणी का जवाब दे रहे थे जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि एनसी सांसद को “संसद में अपनी आवाज उठानी चाहिए सड़क पर नहीं” और “सुर्खियों में आने की कोशिश करना बंद करना चाहिए।” बेशक यह चौधरी का अब्दुल्ला परिवार के प्रति अपनी वफादारी जाहिर करने का तरीका था जिनकी आगा ने बार-बार आलोचना की थी।
समाचार एजेंसी कश्मीर इनडेप्थ न्यूज सर्विस (KINS) के मुताबिक, रुहुल्ला ने पत्रकारों से कहा “मुझे ऐसे व्यक्ति को जवाब देने में कोई सार्थकता नहीं दिखती जो अपने हितों के लिए पार्टी बदलता रहता है।”
सांसद ने चौधरी की राजनैतिक स्थिरता पर सवाल उठाते हुए कहा “वह जहां भी फायदा हो और कुर्सी के लिए पार्टी चुनते हैं। कभी वह पीडीपी में थे फिर बीजेपी में और अब एनसी में।” रुहुल्ला ने कुछ सिद्धांतों पर अपनी पार्टी से “मतभेद” होने की बात स्वीकार की लेकिन जोर देकर कहा कि उनकी राजनीति निजी फायदे से प्रेरित नहीं है। आगा ने आगे कहा “कुछ सिद्धांतों पर मेरी पार्टी से असहमति है। लेकिन उपमुख्यमंत्री हमेशा सिर्फ अपने फायदे में दिलचस्पी रखते हैं।” कुछ टिप्पणीकारों ने कहा था कि अब्दुल्ला परिवार आगा के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है लेकिन फिलहाल ऐसा होना नामुमकिन लगता है।
एक समय पर उमर ने कहा था कि आगा लोकसभा सांसद एनसी की वजह से थे लेकिन बदले में उन्हें कड़ी फटकार मिली थी। एक सार्वजनिक समारोह में जहां एनसी के दूसरे लोकसभा सांसद मियां अल्ताफ भी मौजूद थे, आगा ने उमर का नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका इशारा सिर्फ उनकी ओर ही था। आगा ने कहा कि यदि एनसी से जुड़ना चुनावी सफलता की गारंटी है तो पार्टी की पहली लोकसभा सीट बारामुल्ला से होनी चाहिए थी। गौरतलब है कि उमर इसी सीट से उम्मीदवार थे और इंजीनियर राशिद से हार गए थे, जो कि लंबे समय से जेल में बंद थे।
पार्टी के अन्य बड़े नेता
संयोगवश मियां अल्ताफ कई विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं और 2024 में अपना पहला लोकसभा चुनाव भी जीते हैं। उन्हें एक मजबूत नेता माना जाता है जिनकी अपनी मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है और उन्हें अपनी जीत के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) की मदद की जरूरत नहीं है, जिस पार्टी से उन्होंने गठबंधन किया है। इसी तरह, आगा श्रीनगर और बडगाम जिलों समेत मध्य कश्मीर में एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं जो अब अब्दुल्ला परिवार को चुनौती दे रहे हैं।
अब्दुल्ला परिवार से जुड़े कुछ गरम मिजाज नेताओं ने आगा का नाम लिए बिना पार्टी में अनुशासनहीनता रोकने की सार्वजनिक मांग की लेकिन फारुक-उमर की जोड़ी ने उनसे टकराव न करने का फैसला किया। अब्दुल्ला परिवार और आगा के बीच यह अल्पकालिक समझौता कायम रहेगा या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है लेकिन पार्टी टकराव की बजाय समझौते की तलाश में हो सकती है। तीन पीढ़ियों से नेशनल कॉन्फ्रेंस पर अब्दुल्ला परिवार की मजबूत पकड़ रही है लेकिन एक बात साफ है। 2002 की शुरुआत से ही नेशनल कॉन्फ्रेंस अब अकेली ऐसी पार्टी नहीं रही जो जम्मू-कश्मीर में सत्ताधारी पार्टी होने का दावा कर सके।
2014 के बाद से भाजपा का एक मजबूत दल के रूप में उभरना भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए चिंता का विषय साबित हुआ है। ऐसा मुख्यतः इस वजह से हुआ है क्योंकि कई दशकों तक नेशनल कॉन्फ्रेंस की गठबंधन सहयोगी रही कांग्रेस अब कमजोर पड़ गई है और उसमें नाम के लायक कोई नेता नहीं बचा है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में केवल छह सीटों के साथ जिनमें से कुछ कश्मीर घाटी से हैं, कांग्रेस अपनी ही एक धुंधली परछाईं सी दिखती है।

