Saturday, October 11, 2025
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जामिया मिलिया में गैर-मुस्लिमों से भेदभाव, धर्मांतरण के लिए डाला जाता है दबाव: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में दावा

नई दिल्ली: दिल्ली की प्रतिष्ठित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय (जेएमआई) में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और धर्मांतरण के कई आरोप पर एक फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट जारी की है। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि लगभग हर गवाह ने जेएमआई में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और गैर-मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह जैसी बातों की तस्दीक की। इसमें गैर मुस्लिम में छात्रों सहित टीचिंग फैकल्टी के सदस्य भी शामिल हैं।

‘कॉल फॉर जस्टिस’ ने गठित की थी समिति

‘कॉल फॉर जस्टिस’ नाम की एनजीओ ने यूनिवर्सिटी में गैर मुस्लिमों के साथ भेदभाव, उत्पीड़न और धर्मांतरण जैसी कई सूचनाओं के मिलने के बाद इस फैक्ट फाइंडिंग कमिटी का गठन किया था।

इस समिति का अध्यक्ष दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस शिव नारायण ढींगरा को बनाया गया था। इसके अलावा इस समिति में दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव, राजीव कुमार तिवारी, एडवोटेक (दिल्ली हाई कोर्ट), नरेंद्र कुमार (आईएएस) दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव, पूर्णिमा (एडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट) और डॉ. नदीम अहमद (असिस्टेंट प्रोफेसर, किरोड़ी मल कॉलेज) शामिल थे।

65 पेज की रिपोर्ट, तीन महीने का समय लगा

फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के गैर मुस्लिम फैकल्टी सदस्य, छात्रों सहित कर्मचारियों और पूर्व छात्रों से बातचीत के आधार पर 65 पेज की इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इसमें धार्मिक आधार पर भेदभाव और गैर मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह जैसी बात कही गई है।

कुल मिलाकर 27 गवाहों के बयान इसमें डाले गए हैं। इसमें 7 प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर और पीएचडी स्कॉलर शामिल हैं। समिति ने इस रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई के लिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को भेजने का फैसला किया है। रिपोर्ट को तैयार करने में करीब तीन महीने का समय लगा।

रिपोर्ट में क्या कहा गया है?

रिपोर्ट में गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव सहित उत्पीड़न और धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव जैसी बातों का जिक्र है। रिपोर्ट के अनुसार एक महिला सहायक प्रोफेसर ने बताया कि उन्हें शुरू से ही पक्षपात महसूस हुआ और JMI के मुस्लिम कर्मचारी अक्सर गैर-मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार, ताने और भेदभाव करते थे।

सहायक प्रोफेसर के अनुसार जब उसने पीएच.डी. थीसिस जमा की, तब पीएचडी सेक्शन के एक मुस्लिम क्लर्क ने अपमानजनक टिप्पणियां की और कहा कि वह किसी काम में अच्छी नहीं है और कुछ भी जीवन में हासिल नहीं कर पाएगी।

महिला के अनुसार पीएचडी सेक्शन का वह क्लर्क जो पीएचडी थीसिस का शीर्षक तक ठीक से नहीं पढ़ पा रहा था, उसने थीसिस की क्वालिटी पर टिप्पणी करनी शुरू कर दी क्योंकि वह एक मुस्लिम था और वो गैर-मुस्लिम थी।

‘कैसे एक ‘काफिर’ को केबिन दिया गया’

जामिया मिलिया के एक अन्य गैर-मुस्लिम फैकल्टी ने समिति के सामने गवाही दी कि उनके साथ घोर भेदभाव किया जाता था। अन्य मुस्लिम सहकर्मियों को जो सुविधाएं दी जाती थीं, जैसे बैठने की जगह, केबिन, फर्नीचर आदि, वे चीजें उन्हें यूनिवर्सिटी ज्वाइन करने के बाद लंबे समय तक नहीं दी गई। आरोपों के अनुसार जबकि उनके बाद आने वाले मुस्लिम फैकल्टी को तत्काल सभी सुविधाएं दी जाती थी।

इन्होंने बताया कि वे एक एससी समुदाय से हैं। इनके अनुसार जब बाद में उन्हें सहायक परीक्षा नियंत्रक बनाया गया और उसकी वजह से उन्हें प्रशासनिक कार्य के लिए एक केबिन आवंटित किया गया, तो परीक्षा शाखा के कर्मचारियों ने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करनी शुरू कर दी कि डिप्टी रजिस्ट्रार का केबिन एक ‘काफिर’ को कैसे दिया जा सकता है।

इस्लाम अपनाने के लिए जोर दिए जाने के आरोप

जामिया के एक अन्य फैकल्टी ने बताया कि यूनिवर्सिटी में गैर-मुस्लिम छात्रों और संकाय सदस्यों के साथ बहुत उत्पीड़न और भेदभाव होता है। कई आदिवासी छात्र, जो इस उत्पीड़न को सहन करने में असमर्थ होते हैं, विश्वविद्यालय छोड़ देते हैं। कुछ धर्मांतरित मुसलमान अधिक बलपूर्वक छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों को भी इस्लाम अपनाने के लिए प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।

इन्होंने ने एक महिला फैकल्टी का भी जिक्र किया जिसने इस्लाम अपना लिया था। इस महिला ने जामिया से ही एम.एड किया था। उन्होंने बताया कि इस महिला प्रोफेसर ने कक्षा में घोषणा कर दी थी कि जब तक छात्र इस्लाम का पालन नहीं करेंगे, वह उन्हें एम.एड पूरा नहीं करने देंगी। उन्होंने अपना और अन्य लोगों (जिन्होंने इस्लाम अपना लिया था) का उदाहरण दिया, जिन्हें बाद में जेएमआई में अच्छे पद और पोस्टिंग मिली।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई गैर-मुस्लिम शिक्षकों और छात्रों ने उनके साथ हुए भेदभाव और उत्पीड़न की शिकायत की है। कई पीड़ितों ने अपनी पहचान गोपनीय रखने का भी आग्रह किया, क्योंकि उन्हें डर था कि पहचान उजागर होने से उन्हें और भी अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

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