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जैसलमेरः 190 साल पुरानी छतरियों के पुनर्निर्माण को लेकर दो पक्षों में विवाद, शांति बनाए रखने के लिए धारा 163 लागू

जयपुर: राजस्थान के जैसलमेर के बासनपीर जूनी क्षेत्र में संभावित अशांति को देखते हुए प्रशासन ने एहतियातन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 लागू की है। क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी तरह के धरना-प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई है। पोस्टर-बैनर चिपकाने या नारेबाजी पर भी प्रतिबंध है। इस संबंध में बुधवार को जैसलमेर के उपखंड मजिस्ट्रेट सक्षम गोयल ने आदेश जारी किया। 

बासनपीर जूनी क्षेत्र में 10 जुलाई को दो समुदायों के बीच विवाद हुआ था। बासनपीर में एक स्कूल के पास छतरी निर्माण के दौरान कथित तौर पर कुछ लोगों ने पथराव किया था। आरोप है कि दूसरे समुदाय के लोगों ने महिलाओं को आगे करते हुए पथराव किया था। इस घटना से वहां तनाव पैदा हुआ।

पुलिस ने दो दर्जन लोगों को किया गिरफ्तार

द फ्री प्रेस जर्नल की खबर के मुताबिक, हिंसा के दौरान कई वाहनों में तोड़फोड़ की गई। हिंसा में महिलाएं भी शामिल रहीं। पुलिस को हालात पर काबू करने के लिे लाठीचार्ज करना पड़ा।

इस घटना एक पुलिसकर्मी समेत चार अन्य लोग घायल हुए। पुलिस ने इस मामले में दो दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। इसमें 15 महिलाएं शामिल हैं। 

फिलहाल तनापूर्ण हालातों के बीच आगे कोई विवाद न हो, इसके लिए जिला प्रशासन ने प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया है।

ज्ञात हो कि इस घटना के बाद कई नेताओं ने घटनास्थल का दौरा किया है। इनमें जैसलमेर के विधायक छोटू सिंह भाटी, पोखरण के विधायक महंत प्रताप पुरी, शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी और पूर्व विधायक संग सिंह भाटी के अलावा भाजपा के भी कई नेताओं ने दौरा किया और स्थिति का जायजा लिया।

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने भी गांव में जाने की बात कही है। इसके अलावा पूर्व मंत्री हरीश चौधरी भी 19 जुलाई को दौरा कर सकते हैं।

जिला प्रशासन ने शांति-व्यवस्था बनाए रखने की अपील की

जिला प्रशासन ने आशंका जताई है कि बासनपीर जूनी गांव में उत्पन्न तनाव की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए उक्त क्षेत्र में असामाजिक तत्वों की ओर से कानून एवं शांति व्यवस्था भंग करने की कोशिश की जा सकती है, जिससे जन साधारण की सुरक्षा और शांति को खतरा पैदा हो सकता है।

जिला प्रशासन की ओर से जारी आदेश में कहा गया है, “बसनपीर जूनी की सीमा के भीतर कोई व्यक्ति किसी भी तरह का हथियार लेकर सार्वजनिक स्थलों पर लेकर नहीं घूमेगा। न ही बासनपीर जूनी की सीमा में किसी भी प्रकार की सभा, रैली, जुलूस और प्रदर्शन बिना पूर्व सक्षम अनुमति के निकाले जाएंगे। सिख समुदाय के व्यक्तियों को उनकी धार्मिक परंपरा के अनुसार नियमान्तर्गत निर्धारित कृपाण रखने की छूट रहेगी।

आदेश में कहा गया है, “कोई भी व्यक्ति साम्प्रदायिक सद्भावना को ठेस पहुंचाने वाले नारे नहीं लगाएगा और न ही इस प्रकार का भाषण देगा। कोई भी व्यक्ति बिना पूर्व अनुमति के लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं करेगा। किसी भी स्थान पर एक समय में 5 या 5 से अधिक व्यक्ति एकत्रित नहीं रहेंगे।”

जिला प्रशासन की तरफ से स्पष्ट किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करेगा तो भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के प्रावधानों के अंतर्गत अभियोग चलाए जा सकते हैं।

वहीं, एसडीएम सक्षम गोयल ने लोगों से अपील की है कि अफवाहों पर ध्यान न दें और शांति बनाए रखें। इसके साथ ही प्रशासन का सहयोग करने की भी बात की है।

1835 में हुआ था इन छतरियों का निर्माण

बासनपीर गांव में जिन छतरियों के पुनर्निर्माण को लेकर विवाद हुआ है, इनका इतिहास काफी पुराना है। ये छतरियां रियासतकालीन के वीर योद्धाओं रामचंद्र जी सोढ़ा और हदूद जी पालीवाल की याद में बनी हैं। 

यहां पर 6 साल पहले साल 2019 में भी विवाद हुआ था। आरोप है कि इस दौरान एक शिक्षक ने कथित तौर पर कुछ लोगों को इन छतरियों को तोड़ने के लिए उकसाया था और छतरियां तोड़ दी गईं थी। इसके विरोध में हिंदू संगठनों ने जिले भर में आंदोलन किया था। वहीं, झुंझार धरोहर बचाओ संघर्ष समिति ने भी इस मुद्दे पर विरोध दर्ज कराया था। 

पत्रिका की खबर के मुताबिक, पुलिस ने इस दौरान तीन लोगों को गिरफ्तार किया था और इनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था। साल 2021 में प्रशासन की मध्यस्थता से इसका निर्माण कार्य पुनः शुरू हुआ लेकिन दो दिनों बाद फिर तनाव उत्पन्न हुआ और काम रोक दिया गया। 

बासनपीर गांव में बनी ये छतरियां ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों का प्रतीक हैं। इनका निर्माण साल 1835 में महारावल गज सिंह ने कराया था। जैसलमेर और बीकानेर के बीच 1828 में युद्ध हुआ था जिसमें बासनपीर के रामचंद्र जी सोढ़ा को वीरगति प्राप्त हुई थी। 

हदूद जी पालीवाल को उनके सामाजिक योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने गांव में तालाब खुदवाकर लोगों को पानी मुहैया कराया था। इन दोनों लोगों के सम्मान में ये छतरियां बनवाईं गईं थी जो स्थानीय लोगों के लिए गौरव का प्रतीक हैं।

(समाचार एजेंसी IANS से इनपुट्स के साथ)

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