Friday, October 10, 2025
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Inspiring-story: झारखंड के 56 वर्षीय गंगा उरांव ने नौकरी नियमित करने के लिए पास की 10वीं, 16 साल से कर रहे दिहाड़ी मजदूरी

रांचीः खूंटी के रहने वाले 56 वर्षीय गंगा उरांव ने यह साबित कर दिया है कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती। दशकों पुराना सपना पूरा करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और झारखंड एकेडमिक काउंसिल (JAC) की 10वीं बोर्ड परीक्षा में 47.2% अंक के साथ सफलता हासिल की।

गंगा उरांव पिछले 16 वर्षों से जिला शिक्षा अधीक्षक (डीएसई) कार्यालय, खूंटी में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। लेकिन जब उन्होंने अपनी नौकरी को पक्की (सरकारी) के लिए आवेदन किया, तो अधिकारियों ने उनका आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया कि उनके पास मैट्रिक की डिग्री नहीं है।

गरीबी ने छीन लिया था सपना, लेकिन हौसले ने दिलाई कामयाबी

खूंटी सदर प्रखंड के कालामाटी गांव निवासी गंगा उरांव का सपना था कि वे पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी करें और अपने परिवार को बेहतर जीवन दे सकें। लेकिन 1983-84 में जब वे 9वीं कक्षा के बाद मैट्रिक की परीक्षा देना चाहते थे, तो मात्र 40 रुपये की परीक्षा फीस नहीं जुटा पाने के कारण उनका सपना अधूरा रह गया।

गंगा उरांव ने बताया कि मैंने कई बार अधिकारियों से नौकरी नियमित करने की गुहार लगाई, लेकिन हर बार मुझे यही कहा गया कि आपके पास मैट्रिक सर्टिफिकेट नहीं है। आखिरकार, उन्होंने खुद ही फैसला लिया कि अब परीक्षा पास करके ही दम लेंगे। 2024 में उन्होंने 9वीं की परीक्षा पास की और फिर इस वर्ष 10वीं बोर्ड परीक्षा में बैठे और पास भी हो गए।

गंगा उरांव ने बताया कि वे दिन में काम करते थे और रात में या सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करते थे ताकि काम और परिवार की जिम्मेदारियों में कोई बाधा न आए।

उनकी चार बेटियां हैं, जिनमें से दो ने 12वीं और दो ने 10वीं की परीक्षा पास कर ली है। उनकी बड़ी बेटी प्रमिला उरांव ने कहा कि यह हमारे लिए गर्व का क्षण है कि पापा ने यह साबित कर दिया कि शिक्षा के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती। उन्होंने हमें कभी अनपढ़ नहीं रहने दिया।

गांव के लिए स्कूल बनवाने की लड़ाई भी लड़ी

गंगा उरांव सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे गांव के लिए भी शिक्षा के सिपाही बनकर उभरे हैं। वर्ष 2006-07 में उन्होंने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर अपने गांव में माध्यमिक और उच्च विद्यालय की मांग की थी। गांव वालों के सहयोग से उन्होंने पहाड़ी जमीन समतल कर स्कूल निर्माण के लिए सरकार को भूमि सौंपी। अधिकारियों ने उनकी मेहनत से प्रभावित होकर स्कूल निर्माण की निगरानी की जिम्मेदारी भी उन्हें दी।

इसके बाद 2009 में उन्होंने दैनिक मजदूरी की नौकरी के लिए आवेदन किया और चयनित हुए।

अब कोई बहाना नहीं, नौकरी नियमित होने की उम्मीद

गंगा उरांव का कहना है कि अब जब उन्होंने मैट्रिक पास कर ली है, तो अधिकारियों के पास उनकी नौकरी को नियमित न करने का कोई बहाना नहीं बचा। उन्होंने कहा कि पूरा परिवार खुश है कि मैंने परीक्षा पास कर ली। अब उम्मीद है कि मेरी नौकरी भी पक्की हो जाएगी।

खूंटी की जिला शिक्षा पदाधिकारी अपूर्वा पाल चौधरी ने गंगा उरांव की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने यह साबित कर दिया कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती। एक ऐसे जिले में, जहां स्कूल ड्रॉपआउट दर बहुत ज्यादा है, एक दैनिक मजदूर ने पूरे जिले का नाम रोशन किया है।

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