Monday, October 13, 2025
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राज की बातः जब जेपी नड्डा के पिता को लालू यादव के घर चुनाव टिकट के लिए जाना पड़ा था

आज जब जगत प्रकाश नड्डा, दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष हैं, तो याद आता है कि उस दौर में उनके पिता डॉ. नारायण लाल नड्डा, पटना विश्वविद्यालय में एप्लाइड इकनॉमिक्स विभाग के प्रमुख थे।

जनता पार्टी के टिकट पर अपने जूनियर शिक्षक रामकांत पांडे को बनियापुर से उम्मीदवार बनवाने की कोशिश में वे अपनी ऐम्बेसडर कार (528 नंबर) से गार्डनीबाग पहुँचे।

चुनावों के मौसम में अक्सर ऐसे-ऐसे मोड़ आते हैं जो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लगते।

तब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर समाजवादी जनता पार्टी के मुखिया थे। राजभवन रोड स्थित पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रघुनाथ झा के बंगले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी। तभी एक पत्रकार ने बीच में टोकते हुए पूछा, “प्रधानमंत्री जी, जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, आपके मंत्री ही क्यों साथ छोड़ रहे हैं?”

चंद्रशेखर ने मुस्कुराकर पूछा, “कौन गया भला?” पत्रकार बोला, “उषा सिंह ने इस्तीफ़ा दे दिया। मुलायम सिंह यादव ने भी।”

प्रधानमंत्री ने रघुनाथ झा की ओर देखा, बोले- “का हो रघुनाथ, उषा भी छोड़ देली का?” रघुनाथ झा ने धीरे से कहा- “टीवी पर तो यही दिखा रहा था।” तभी पास बैठे मुलायम सिंह यादव, जिनकी कदकाठी छोटी थी, उठे और बोले-
“प्रधानमंत्री जी, मैं तो आपके साथ हूं।”

कई साल बाद, 2020 के विधानसभा चुनाव में पटना के होटल मौर्य में तेजस्वी प्रसाद यादव प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। महागठबंधन का घोषणा पत्र और उम्मीदवारों की सूची जारी की जा रही थी। बगल में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी बैठे थे। जब तेजस्वी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया, तो सहनी ने सबको चौंकाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच से उठकर बाहर निकल गए।

गुस्से में वे सीधे गार्डिनर रोड स्थित बीजेपी दफ़्तर पहुँचे और वहाँ पार्टी में शामिल होने का ऐलान कर दिया। बीजेपी ने तुरंत उन्हें सिमरी बख्तियारपुर सीट थमा दी, और उनकी पार्टी चार सीटें जीत गई।

2014 के विधानसभा चुनावों में भी एक अप्रत्याशित पल आया। बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने अचानक एक हेलीकॉप्टर मंगवाया, मधेपुरा से तत्कालीन उद्योग मंत्री रेनू देवी और उनके पति विजय कुशवाहा (दोनों उस समय जेडीयू में थे) को पटना बुलाया। शाम होते-होते रेनू देवी ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया और बीजेपी में शामिल हो गईं।

दो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता, रामजतन सिन्हा और अशोक चौधरी, दोनों जिन्होंने बिहार प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली थी, चुनाव प्रक्रिया के बीच ही पार्टी से किनारा कर गए। सिन्हा बीजेपी में चले गए, और अशोक चौधरी जेडीयू में।

और अब जरा लौटते हैं 1977 में। आज जब जगत प्रकाश नड्डा, दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष हैं, तो याद आता है कि उस दौर में उनके पिता डॉ. नारायण लाल नड्डा, पटना विश्वविद्यालय में एप्लाइड इकनॉमिक्स विभाग के प्रमुख थे।

पिता डॉ. नारायण लाल नड्डा के साथ जेपी नड्डा।

जनता पार्टी के टिकट पर अपने जूनियर शिक्षक रामकांत पांडे को बनियापुर से उम्मीदवार बनवाने की कोशिश में वे अपनी ऐम्बेसडर कार (528 नंबर) से गार्डनीबाग पहुँचे। वहाँ अपने एक शिष्य के घर पहुँचे, वही शिष्य जो उस समय एक अंग्रेज़ी अख़बार में रिपोर्टर था। उसने अपने प्रोफ़ेसर को लेकर सीधे जयप्रकाश नारायण के मनोनीत प्रत्याशी लालू प्रसाद यादव के एक कमरे वाले घर पहुँचा दिया।

लालू ने बायोडाटा लिया, मुस्कुराकर कहा, “ठीक है, टिकट हो जाएगा।” रामकांत पांडे को टिकट मिला और वे कांग्रेस उम्मीदवार को हराकर विधायक बने। और उस समय का एक छात्र- जगत प्रकाश नड्डा- बनियापुर की गलियों में जाकर उनके लिए प्रचार करता फिर रहा था।

इतिहास खुद को ऐसे ही छोटे-छोटे दृश्यों में दोहराता है। चेहरे बदलते हैं, किस्से नहीं।

लव कुमार मिश्र
लव कुमार मिश्र
लव कुमार मिश्र, 1973 से पत्रकारिता कर रहे हैं,टाइम्स ऑफ इंडिया के विशेष संवाददाता के रूप में देश के दस राज्यों में पदस्थापित रह। ,कारगिल युद्ध के दौरान डेढ़ महीने कारगिल और द्रास में रहे। आतंकवाद के कठिन काल में कश्मीर में काम किए।
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