नई दिल्ली: एक विश्लेषण के अनुसार, भारतीय कंपनियां विदेशों में निवेश करते समय तेजी से कम-कर वाले देशों (जिन्हें आमतौर पर टैक्स हेवन कहते हैं) का रुख कर रही हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के आँकड़ों और निवेश विशेषज्ञों के विश्लेषण के अनुसार, कंपनियां इसे केवल कर बचत के लिए नहीं बल्कि वैश्विक विस्तार और रणनीतिक निवेश के लिए भी अपना रही हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में भारतीय कंपनियों द्वारा किए गए विदेशी निवेश का लगभग 56% हिस्सा सिंगापुर, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और स्विट्जरलैंड जैसे कम टैक्स वाले देशों में गया।
इसका मतलब है कि 2023-24 में भारत के कुल 3,488.5 करोड़ रुपये के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) में से, लगभग ₹1,946 करोड़ इन देशों में लगाए गए। दरअसल, अकेले सिंगापुर (22.6%), मॉरीशस (10.9%) और संयुक्त अरब अमीरात (9.1%) ने मिलकर भारत के कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का 40% से ज्यादा हिस्सा हासिल किया।
यह प्रवृत्ति मौजूदा वित्तीय वर्ष में और भी तेज हुई है। पहली तिमाही में, इन कम टैक्स वाले देशों में भारत के कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का 63% हिस्सा गया।
यह सिर्फ टैक्स से जुड़ा मामला नहीं
भले ही दुनिया भर के देश, भारत सहित, कंपनियों द्वारा इन टैक्स हेवन में मुनाफे को स्थानांतरित करने पर नकेल कसने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन देशों को चुनना केवल टैक्स से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारतीय कंपनियों के लिए एक रणनीतिक ज़रूरत भी है।
ग्रांट थॉर्नटन भारत के पार्टनर रियाज थिंगना के अनुसार, ‘अगर भारतीय कंपनियाँ भारत के बाहर निवेश कर रही हैं, तो इन देशों में से किसी एक में कंपनी स्थापित करना बहुत मायने रखता है।’
उन्होंने समझाया कि यदि कोई भारतीय कंपनी यूरोप, अमेरिका, या किसी अन्य देश में सहायक कंपनी स्थापित करना चाहती है, तो सिंगापुर या इसी तरह के देश में एक विशेष उद्देश्य वाली इकाई के माध्यम से ऐसा करने से उन्हें रणनीतिक निवेशक प्राप्त करने में मदद मिलती है। इससे भविष्य में शेयर बेचने पर बेहतर टैक्स स्थिति भी मिलती है।
निवेश के पीछे के अन्य कारण क्या हैं?
रिपोर्ट में ईवाई इंडिया के टैक्स पार्टनर वैभव लूथरा को कोट करते हुए लिखा गया है कि आरबीआई के आँकड़े केवल पहले स्तर के बाहरी निवेश दिखाते हैं, न कि अंतिम निवेश गंतव्य। लूथरा के अनुसार, ये कम टैक्स वाले देश न केवल टैक्स लाभ देते हैं, बल्कि टैक्स स्थिरता भी प्रदान करते हैं। इसके अलावा, ये विदेशी निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों के लिए अन्य लाभ भी लाते हैं।
उन्होंने समझाया कि अक्सर, फंड जुटाने या किसी निवेशक के आने जैसी चीजों के लिए, वे आमतौर पर इन मध्यवर्ती देशों में आना पसंद करते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि बीच में एक इकाई होने से भारतीय मूल कंपनी की सुरक्षा भी होती है।
अमेरिका के कड़े शुल्क भी एक कारण
रियाज थिंगना ने यह भी कहा कि अमेरिका द्वारा भारत से आयात पर लगाए गए उच्च शुल्क के कारण भी भारतीय कंपनियाँ विदेशों में निवेश करने के लिए प्रेरित हो सकती हैं।
उन्होंने कहा, “बहुत सारी कंपनियाँ भारत के बाहर सहायक कंपनियाँ और अन्य संस्थाएँ स्थापित कर सकती हैं, जहाँ मूल्यवर्धन किया जाता है, और इस प्रकार भारत पर लगे कड़े शुल्कों से बच सकती हैं।”