वॉशिंगटन: अमेरिका के वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने दावा किया है कि भारत भले ही अभी कड़ा रुख अपना रहा हो, लेकिन जल्द ही उसे अमेरिका के दबाव में आकर टैरिफ पर झुकना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत, अमेरिका को लंबे समय तक नाराज नहीं रख सकता, खासकर रूस के साथ बढ़ते तेल व्यापार के मामले में।
लटनिक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने ब्लूमबर्ग टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा कि भारत का यह रुख कनाडा जैसा है, जिसने बाद में अमेरिका के साथ समझौता कर लिया था। उन्होंने कहा, भारत की यह स्थिति सिर्फ दिखावा है, क्योंकि अमेरिकी बाजार के बिना भारतीय व्यापार फल-फूल नहीं सकता।
लटनिक ने कहा कि शुरू में अच्छा लगता है बड़ी ताकत से भिड़ना, लेकिन अंत में कारोबारियों को अमेरिका के साथ समझौता ही चाहिए होता है।
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि एक या दो महीने में, भारत बातचीत की मेज पर वापस आएगा और खेद व्यक्त करेगा। फिर वे डोनाल्ड ट्रंप के साथ एक समझौता करने की कोशिश करेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि यह ट्रंप पर निर्भर करेगा कि वह पीएम मोदी के साथ कैसे डील करते हैं।
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लटनिक ने यह भी कहा कि अगर भारत अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारना चाहता है तो उसे रूसी तेल की खरीद बंद करनी होगी, ब्रिक्स का हिस्सा बनने से परहेज करना होगा और अमेरिकी डॉलर व बाजार का समर्थन करना होगा। लटनिक ने तंज कसते हुए कहा, “भारत रूस और चीन के बीच सिर्फ एक स्वर है। अगर आप वही बनना चाहते हैं तो बनिए। लेकिन फिर 50 प्रतिशत टैरिफ के लिए तैयार रहिए, देखते हैं ये कब तक चलता है।”
लटनिक ने रखीं तीन शर्तें
लटनिक ने 50 प्रतिशत टैरिफ से बचने के लिए तीन शर्तें रखीं। उन्होंने कहा, भारत को रूसी तेल खरीदना बंद करना होगा। ब्रिक्स (BRICS) का हिस्सा बनना छोड़ना होगा और अमेरिका और डॉलर का समर्थन करना होगा।
लटनिक का यह बयान ऐसे समय आया जब ट्रंप ने ट्रुथ सोशल भारतस रूस और चीन की तिकड़ी को लेकर टिप्पणी की है। उन्होंने पीएम मोदी, व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग के साथ की तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि ‘लगता है हमने भारत और रूस को सबसे गहरे, अंधेरे चीन के हवाले खो दिया है। उन्हें लंबा और समृद्ध भविष्य मुबारक।’
लटनिक ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत रूस से सिर्फ 2 प्रतिशत तेल खरीदता था, लेकिन अब यह आंकड़ा 40 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। उन्होने इसे गलत और हास्यास्पद बताया और कहा कि भारत को अब तय करना होगा कि वह किस पक्ष में है।
अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने अमेरिका की आर्थिक ताकत का हवाला देते हुए कहा, हम 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हैं। हम दुनिया के ग्राहक हैं। चीन हमें बेचता है, भारत भी हमें बेचता है। वे एक-दूसरे को नहीं बेच सकते। आखिरकार सभी को ग्राहक के पास आना पड़ेगा, और ग्राहक हमेशा सही होता है।
भारत ने पहले ही अमेरिकी आरोपों को खारिज कर चुका है। नई दिल्ली का कहना है कि सस्ता रूसी तेल लेना भारतीय जनता के हित में है और ऊर्जा सुरक्षा उसकी प्राथमिकता है। भारत ने यह भी सवाल उठाया है कि जब रूस का सबसे बड़ा खरीदार चीन है, तब केवल भारत को निशाना क्यों बनाया जा रहा है।